Shakuntala Devi Review: कहानी शुरू होती है अनु से जो अपनी मां शकुंतला देवी से कानूनन अलग होना चाहती है, पर क्यों और कैसे, और कहानी 1940 के बैकग्राउंड में बनी है. बैंगलोर के पास एक गांव है जहां एक कन्नड़ परिवार की लड़की अपने तेज दिमाग से सबको चौंका देती है और ये उसके परिवार के लालन पालन का जरिया बन गया था.
एक मां एक गणितज्ञ…और दुनिया को चौंकाने वाली महिला जिसे सब कहते थे ह्यूमन कंप्यूटर. इससे ऊपर एक बिंदास और महिला की सफलता और जिंदगी के उतार चढ़ाव का ब्यौरा है फिल्म ‘शकुंतला देवी ‘. अमेजन प्राइम वीडियो पर अब ये फिल्म आ चुकी है. फिल्म काफी मजेदार है. विद्या बालन ने एक बार फिर से अपने मस्ताने अंदाज में सबका दिल जीत लिया है.
आर्यभट्ट और रामानुज के बाद शकुंतला देवी ने गणित के क्षेत्र में भारत का परचम विश्व में लहराया. ये फिल्म इसी अदभुत बुद्धि वाली महिला के जीवन का चित्रण है. तमाम बायोपिक्स अगर अमर चित्र कथायें थी, तो ये फिल्म कहानी एक अच्छी कॉमिक अंदाज में भारत की एक रियल लाइफ बुद्धिमान महिला ‘शकुंतला देवी ‘ की जीवनी है. मैरी कॉम, धोनी जैसी बायोपिक जिंदा लोगों के बारे में थी. शकुंतला देवी 1940 से साल 2000 की एक लड़की के असाधारण जीवन की कहानी है, जिसके बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं है. फिल्म का मुख्य आकर्षण है विद्या बालन जिन्होंने शकुंतला को अपने अंदाज से फिर से जी लिया है. फिल्म डर्टी पिक्चर में सिल्क स्मिता के जटिल किरदार को विद्या ने जिस सरलता से निभाया था, कुछ ऐसा ही उन्होंने यहां भी किया है.
जब शकुंतला देवी की बेटी ने मां से अलग होने का लिया फैसला
कहानी शुरू होती है अनु से जो अपनी मां शकुंतला देवी से कानूनन सम्बन्ध विच्छेद चाहती है, पर क्यों और कैसे, और कहानी 1940 के बैकग्राउंड में बनी है. बैंगलोर के पास एक गांव है जहां एक कन्नड़ परिवार की लड़की अपने तेज दिमाग से सबको चौंका देती है और ये उसके परिवार के लालन पालन का जरिया बन गया था. बिना स्कूल गए शकुंतला कठिन गणित के सवाल चुटकियों में दे देती है. उसके पिता उसकी कला को अपने लालच में बदल देते हैं. अपनी बहन की मौत शकुंतला को बागी बना देती है. लेकिन उसके मैथ्स का हुनर, जज्बा और हाजिरजवाबी शकुंतला को लंदन तक लेकर जाता और विश्व मंच पर वो बन गयी है एक ह्यूमन कंप्यूटर. नाम पैसा और शोहरत शकुंतला देवी को मिलता है लेकिन परिवार से दूर हो जाती है .
सफलता के बीच शकुंतला को कई बार प्यार होता है, दिल टूटता है और आखिरकार परितोष से शादी करके वो घर गृहस्थी में फंसकर मां बन जाती है. लेकिन मैथ्स उसको नहीं छोड़ता और वो फिर से अपने शोज में बिजी हो जाती है. लेकिन इन सब के बीच उसकी शादी टूट जाती है और वो अपनी बेटी को लेकर अलग हो जाती है. वो बेटी को पूरा प्यार देती है लेकिन अपनी बेटी को पिता से दूर कर देती है. मां और बेटी के बीच में प्यार अलगाव में बदल जाता है. सफलता के मद में शकुंतला अपनी बेटी और दामाद को भी खुद से दूर कर देती है. शंकुन्तला को तब ये एहसास होता है कि नंबर्स की ये जादूगरनी दरअसल कितनी अकेली और तन्हा है.
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फिल्म का अंदाज काफी रोचक है और निर्देशिका अनु मेनन ने फिल्म को एक स्टोरी बुक की तरह पेश किया है. खास बात ये है कि फिल्म सिलसिलेवार नहीं चलती बल्कि कहानी आगे पीछे होती रहती है और रोचकता बनीं रहती है. फिल्म में विद्या बालन के साथ उसकी बेटी अनु के रूप में सान्या मल्होत्रा और पति परितोष के रूप में जिसु सेनगुप्ता का अभिनय भी अच्छा है. शकुंतला के दामाद के किरदार में अमित साध का किरदार छोटा है लेकिन वे अपनी छाप छोड़ते हैं. दो घंटे की इस फिल्म शुरू में मजेदार पलों के साथ काफी तेजी से आगे बढ़ती है और अंत में थोड़ी कमजोर पड़ जाती है. पर कुल मिलकार दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब रहती है. संगीत औसत है लेकिन लंदन के सीन्स को काफी खूबसूरती से दिखाया गया है.