पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिन औरतें हर साल करवा चौथ का व्रत रखती हैं। आदि काल से चले आ रहे इस व्रत की परंपरा के साथ आज भी हिन्दू धर्म में गहरी आस्था है।कहते हैं कि यह व्रत देवताओं की पत्नियों ने भी रखा था और तो और महाभारत काल में भी इस व्रत का प्रसंग मिलता है।
तो आइए जानते हैं कि आखिर यह व्रत शुरू कैसे हुआ? और सबसे पहले यह व्रत किसने रखा था…
सबसे पहले यह व्रत शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए रखा था। इसी व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ा था। लाख उपायों के बावजूद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल पा रही थी और दानव थे कि वह हावी हुए जा रहे थे। तभी ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा। उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने से उनके पति दानवों से यह युद्ध जीत जाएंगे। इसके बाद कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी ने व्रत किया और अपने पतियों के लिए युद्ध में सफलता की कामना की। कहा जाता है कि तब से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई।
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करवा चौथ व्रत की एक और कथा महाभारत काल की मिलती है कि एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे। उसी दौरान पांडवों पर कई तरह के संक्ट आ गए। तब द्रोपदी ने श्रीकृष्ण से पांडवों के संकट से उबरने का उपाय पूछा। इसपर कन्हैया ने उन्हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करने को कहा। इसके बाद द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडवों को संकटों से मुक्ति मिल गई।
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान करने गया था। उसी समय एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। इसपर उसने मदद के लिए करवा को पुकारा। तब करवा ने अपनी सतीत्व के प्रताप से मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास पहुंची। करवा ने यमराज से पति के प्राण बचाने और मगर को मृत्युदंड देने की प्रार्थना की। इसके बाद इस पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्यु नहीं दे सकता। तभी करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्हें नष्ट होने का शाप दे देगी। इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिला और मगरमच्छ को मृत्युदंड।