देहरादून: लव जिहाद और धर्म धर्मान्तरण की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में इसे लेकर एक अध्यादेश को मंजूरी दी है। मध्यप्रदेश सरकार ने कानून बनाने का ऐलान किया है, इधर उत्तराखंड सरकार ढाई साल पहले ही सख्त कानून बनाकर इस ओर कड़ा कदम उठा चुकी है।
24 मार्च 2018 को गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र में ‘उत्तराखण्ड धर्म स्वतंत्रता विधेयक’ ध्वनिमत से पारित हुआ था। इस कानून में छल-प्रपंच, धोखे, लालच और जबरन धर्म परिवर्तन करवाने पर 7 साल तक की जेल का प्रावधान है।
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मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के दिशानिर्देश पर बनाया गया ‘उत्तराखण्ड धर्म स्वतंत्रता विधेयक’ बेहद सख्त है। प्रलोभन (नगद, रोजगार, निशुल्क शिक्षा, बेहतर जीवन, दैवीय कृपा), धमकाना (कोई व्यक्ति यदि किसी को डारा-धमका कर धर्मान्तरण को विवश करता है) और षड़यंत्र (धर्मांन्तरण कराने के लिए किसी की सहायता करना, मनौवैज्ञानिक दबाव या फिर साजिश करना, इसमें पारिवारिक सदस्य भी होंगे तो वे भी दायरे में आयेंगे) से यदि किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन किया जाता है तो दोषियों पर इस कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की जाती है। इसमें 5 साल की सजा का प्रावधान है।
यदि कोई अवयस्क महिला या फिर एससी-एसटी जाति के लोगों का धर्म परिवर्तन गैर कानूनी ढंग से करवाया जाता है तो सजा 7 साल तक हो सकती है। कोई व्यक्ति यदि अपना धर्म परिवर्तन करने का इच्छुक है तो उसे कम से कम एक माह पहले जिलाधिकारी को शपथ पत्र देना होगा, जिसमें उल्लेख होगा कि वह स्वयं की इच्छा से अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है। धार्मिक पुजारी भी सामूहिक धर्म परिवर्तन कराएंगे तो उन्हें भी एक माह पहले डीएम से अनूमित लेगनी होगी। डीएम और एसपी ऐसे आवेदनों की जांच के बाद ही धर्म परिवर्तन की अनुमति देंगे।
(वरिष्ठ पत्रकार दीपक फर्सवाण)