देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को टिहरी गढ़वाल में समाज कल्याण विभाग द्वारा अंतरधार्मिक विवाह को प्रोत्साहन देने का आदेश जारी करने वाले समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्ड़ियाल को पद से हटाने का आदेश जारी कर दिया है। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राज्य सरकार मजहबी उद्देश्यों और धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाली शक्तियों के खिलाफ कठोरता से कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।
सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अंतरजातीय/अंतरधार्मिक विवाह के बाद सहायता राशि देने वाली सूचना को लेकर जाँच करने के आदेश जारी करने के बाद यह फैसला लिया गया। दरअसल, जिले के सामाजिक कल्याण विभाग द्वारा अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़े को 50,000 रुपए की मदद देने की घोषणा की थी, जिसके बाद ‘लव जिहाद’ को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे।
ये भी पढ़ें:दर्दनाक हादसा: इस तरह ट्रेन की चपेट में आकर हुई आर्मी इंजीनियर की मौत
गत 18 नवम्बर को टिहरी गढ़वाल जिले के जिला समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्ड़ियाल ने एक पत्र जारी किया, जिसमें अंतरजातीय विवाह करने पर समाज कल्याण विभाग की तरफ से प्रोत्साहन के रूप में 50,000 रूपए की धनराशि दिए जाने का उल्लेख किया गया था। इस प्रकरण के चर्चा में आते ही राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रशासन को इस मामले की जाँच के आदेश दिए थे। सीएम रावत ने कहा कि इसकी जाँच की जाएगी कि किन परिस्थितियों में इस प्रेस रिलीज को जारी किया गया।
इस प्रेस रिलीज के सामने आने के बाद उत्तराखंड सरकार के आर्थिक सलाहकार आलोक भट्ट ने बताया था कि ये 1976 का उत्तराखंड का क़ानून है। उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत पहले 10,000 रुपए की सहायता राशि मिलती थी, जिसे कॉन्ग्रेस की सरकार ने 2014 में बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया। उन्होंने कहा कि राज्य में भाजपा से किसी ने भी अंतरधार्मिक विवाह को बढ़ावा देने की बात नहीं की है।
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया है और चीफ सेक्रेटरी को जाँच का आदेश दिया है। सीएम ने कहा कि जब सरकार पूरी तरह जबरन धर्मान्तरण के बाद शादी के खिलाफ है, तो किन परिस्थितियों में ये प्रेस रिलीज जारी हुआ? इसके साथ ही इस योजना को अंतरधार्मिक के बजाय अंतरजातीय विवाह तक सीमित करने के भी आदेश जारी किए गए।
उत्तराखंड राज्य ने वर्ष 2018 में ही ‘फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल’ पारित किया था। इसके तहत रुपयों के दम पर या किसी का जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने का दोषी पाए जाने पर दो साल तक की जेल का प्रावधान है। इसके साथ ही उत्तराखंड, ओडिशा, एमपी, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में शामिल हो गया, जहां दूसरे रूप में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है।