बेड़ू नाम सुनते ही लोगों के जेहन में राज्य का मसहूर गीत बेड़ू पाको बारामासा आने लगता है। लेकिन उत्तराखंड में पाया जाने वाला बेड़ू वृक्ष मानव ही नहीं पशु-पक्षियों के लिए भी लाभकारी है।

इसके फलों का स्वाद काफी स्वादिष्ट होता है। वहीं दुधारू जानवरों के लिए इसका चारा काफी पौष्टिक होता है। चौड़ी पत्ती वाले प्रजाति का यह पेड़ पर्यावरण संरक्षण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राज्य के मध्य हिमालयी क्षेत्र में इसका पेड़ 1500 से 2200 मीटर की ऊंचाई में पाए जाते हैं। उत्तराखंड में जहां इसे बेड़ू या ब्यौड़ नाम से जाना पहचाना जाता है, वहीं आंध्र प्रदेश में मनमजोरी, हिमाचल प्रदेश में पोंगरा तथा गुजरात में पेपरि नाम से जाना जाता है। यह फलदार पेड़ जंगलों व आबादी से दूर रहने के बजाय आबादी के आसपास ही होते हैं। दिसंबर-जनवरी में गिरने वाली इसकी पत्तियां अप्रैल-मई तक निकल आती है। इसके फल लट्टू के आकार के होते हैं। प्रारंभिक अवस्था में यह हरा रंग लिए होते हैं। बाद में पक जाने पर यह जामुनी व बैंगनी रंग के हो जाते है। पके हुए फलों का स्वाद लाजवाब होता है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए लाभकारी इस पेड़ की पत्तियां चौड़ी व खुरदरी होती हैं। इसकी पत्तियां काफी पौष्टिक होती हैं, जिसे गाय, भैंस, भेड़ व बकरियां बड़े की चाव से खाते हैं। इसके कच्चे फलों से सब्जी भी तैयार की जाती है, जो काफी स्वादिष्ट होती है। दुधारू पशुओं को इसका चारा खासतौर से खिलाया जाता है। पहाड़ में ईधन की कमी होने पर इस पेड़ की लकड़ियां जलावन के तौर पर भी उपयोग में लाई जाती है।

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