यह बात लगभग 28 वर्ष पुरानी होगी पूरा गाँव खेती-पशुपालन व् अन्य कार्यो में एक-दूसरे का हाथ बंटाता था (कैकु लुणाकु सेर अर कैकु पीनकु) जिस कारण आज हम अपने को गाँव वासियों का ़ऋणी समझते हैं।

दीवाळी कु दिन छौ माँ धै-पर-धै (बार-बार जोर-जोर से आवाज लगा रही थी) लगा रही थी कि अब त घार आ जाओ। हम दोनों भाई देर रात तक अपने खेतों में पानी चारते (सिंचाई) रहे।

फागुण (फरवरी-मार्च) कु मैना आयी मोळ-पाणी (खाद-पाणी स्पेशयली बकरियों के गोबर से बनी खाद) से हमारे आलू के खेत मानो जैसे नृत्य कर रहे हों कि इस बार रस्याण (मजा) आ गयी। सुबह माँ के साथ लोग आलू निकालने लगे। पांच छः घंटे में एक तरफ आलू निकलते और हम इसे घर सारते (छोड़ते) रहे। इस बम्पर पैदावार में 17 बड़े कट्टे यानी लगभग 5 कुन्टल लल्गाँ (लाल-लाल कलर के) आलू हुये। अन्य चार खेतों में भी लगभग इसी के समकक्ष पैदावार रही ।

अगले ही दिन सकनोली गाँव के लोगों को खबर लगी कि इस बार ‘‘TANGOLI’’ में आलू की बम्बर पैदावार हो रखी है फिर जिसने भी नही आना था वह भी अगले ही दिन आलू खरीदने आ गया। दो तीन परिवार वेड़गाँव और भैड़गाँव से भी आये। आपकी जानकारी में लाना चाहूँगा कि सकनौली गाँव बड़े-ब़ड़े मूला के घिंड़का (बड़े आकार की स्वादिष्ट मूली) के उत्पादन के लिये प्रसिद्ध गाँव था लेकिन अब वह बात नही रही न मूला उत्पादन करने वाले रहे न खाने वाले। एक बात और आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा कि उत्तराखण्ड में 26 किलो का मूला उगाने वाले कृषि पंडित विद्यादत्त शर्मा जिन्हें लोक त्यौहार ‘‘हरेला’’ के समापन पर कुछ दिन पहले ही ‘‘जशेदा देवी नवानी’’ (कृषि एवं स्वावल्म्बन के क्षेत्र में दिये जाने वाला सम्मान) से सम्मानित किया गया था एवं जिनकी डॉक्यूमेंटरी ऑस्कर के लिये चयनित हुई थी भी इसी क्षेत्र सांगुड़ा के निवासी है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि मूळा का सेवन पथरी रोग की अचूक दवा है (Consumption of radish is the perfect medicine for stone disease) I यह नुक्सा मैने वर्षो पूर्व अपने गाँव की छोटे बच्चों की वैद्य बूथी वोडी जिनके पिताजी बहुत ही जानकार वैद्य थे एवं तीन वर्ष पूर्व मुझे चौथी पीढ़ी के वैद्य श्री रामकृष्ण पोखरियाल जी ने भी बताई।

दो या तीन रूपये किलो आलू उस समय हमने बेचे होगें। मुरारी के पिताजी (नाम घ्यान नही है) ने मेरी माँ को कहा ‘‘बबा सुनकि पुगड़ि छन तुमरि’’ (बहू तुम्हारे खेत सोने के हैं)। किसान की फसल जब अत्यधिक उत्पादन देती है तो उसके लिये सही मायने में यही दीवाली होती है। इस पैसे से हमारे घर की मुख्य जरूरतें पूरी हुई कुछ पोस्ट ऑफिस में रख दिये फिक्स डिपॉजिट में तब संम्भवतः पाँच वर्ष में दुगने पैसे हो जाते थे।

पिछले वर्ष से मेरी पत्नी और मैं मुख्य रूप से छोटे-बच्चों को ध्यान में रखते हुये उत्तराखण्डी फास्ट फूड (कल्यौ ‘‘अल्प व जल्दी खाये जाने वाला सुबह व शाम (तीन-चार बजे) का नाश्ता‘‘) पर रिसर्च एवं डेवलेपमेंट कर रहे हैं।

इसी क्रम में अपने गाँव-खेत और उन सभी लोगों के सम्मान में जिन्होंने हमारे आलू परचेज (खरीद) किये थे हमने ‘‘सोना आलू’’ नाम से एक डिश तैयार की है। यह स्टीम और फ्राइड (तली) हुई फार्म में होगी और चरचरी-बरबरी चटनी और दही के साथ सर्व की जायेगी (बच्चों के लिये यह चटनी नही होगी)। जिस पर तैयार होने के उपरान्त शुद्ध घी की कोंटिंग करने का प्रयास रहेगा यह ‘‘सोना आलू’’ कम्पलीटली फाइवर (रेशा) वेस्ड अर्थात मैदा या ग्लूटिन फ्री होगा। मैदा व ग्लूटिन हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं। फाइवर पचने में आसान होता है और इससे मोटापा भी कम होता है।

आपके सहयोग से हमारा प्रयास रहेगा कि हमारे द्वारा बनाये जा रहे कम से कम 10 प्रकार के आइट्म को अपने उत्तराखण्ड के स्ट्रीट फूड के रूप में Established (स्थापित) कर कृषि सुदृढ़िकरण (Betterment), Local for Vocal एवं नया रोजगार (New Startup) सृजन करने में हमारा सहयोग करेंगे।
सादर!
Kapil Dobhal
9634542086

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