Jagat Seth Gharana – दोस्तों, ये तो हम जानते ही हैं कि ब्रिटिश शासन से पूर्व हमारा देश ‘सोने की चिड़िया’ हुआ करता था। जिसकी वजह थी यहाँ के अमीर राजा व रजवाड़े, जिनके खजाने भरे रहते थे। जनता में भी गरीबी नहीं थी। ब्रिटिशकाल के और उससे पूर्व के ऐसे बहुत से राजा हुए, जिनके बारे में आज ज्यादातर भारतीय नहीं जानते हैं।

जगत सेठ भारत के सबसे अमीर आदमी

इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो हमें ऐसे बहुत से ख़ास व्यक्तियों के बारे में पता चलेगा, जिनके बारे में हम अब तक नहीं जानते थे। इतिहास अपने आप में के रहस्य समाए हुए है, जो सदियों से लेखकों की किताबों में बंद मिलेंगे।

आज हम ऐसे ही एक घराने की बात कर रहे हैं, जिसका उदय 1700s में हुआ। यह ब्रिटिश काल के भारत का सबसे धनवान घराना (Jagat Seth Gharana) था। इस घराने के सदस्य इतने अमीर व्यक्ति थे, जिनसे अंग्रेज भी पैसों की मदद लेने आते थे। अब तक आपने यही सुना होगा कि अंग्रेजों ने भारत पर केवल हुकूमत चलाई है और उन्होंने किसी के आगे कभी सर नहीं झुकाया, लेकिन आपको बता दें कि ये सही नहीं है।

अंग्रेजों के समय में भी भारत में ऐसे शख्स थे जिनके आगे अंग्रेजी साम्राज्य सर झुकाए रहता था, वह थे बंगाल के मुर्शिदाबाद के जगत सेठ (Jagat Seth) ! जिनको Jagat Seth of Murshidabad भी कहा जाता है। उन्होंने हमारे देश में पैसों के लेन-देन, टैक्स वसूली, इत्यादि को सरल बनाया था। उस समय इनके पास इतनी धन सम्पदा व रुतबा था कि वे मुग़ल सल्तनत तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से डायरेक्ट लेन-देन किया करते थे और जरूरत पड़ने पर उनकी सहायता भी करते। चलिए आपको इनके बारे में विस्तार से बताते हैं…

वर्तमान समय में भले ही बंगाल में स्थित मुर्शिदाबाद शहर गुमनामीयों में जी रहा है, परन्तु ब्रिटिश काल में ये शहर एक ऐसा मुख्य व्यापारिक केंद्र था, जिसके चर्चे दूर-दूर तक थे और हर शख्स इस जगह से और जगत सेठ (Jagat Seth) से भली भांति परिचित था। ‘जगत सेठ’ अर्थात Banker of the World, असल में एक टाइटल है। यह टाइटल सन 1723 में फ़तेह चंद (Fateh Chand) को मुग़ल बादशाह, मुहम्मद शाह ने दिया था। उसके बाद से ही यह पूरा घराना ‘Jagat Seth’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। सेठ मानिक चंद (Seth Manik Chand) इस घराने के संस्थापक थे। यह घराना उस वक़्त का सबसे धनवान बैंकर घराना माना जाता था।

सेठ माणिकचंद 17वीं शताब्दी में राजस्थान के नागौर जिले के एक मारवाड़ी जैन परिवार में हीरानंद साहू के घर जन्मे। माणिकचंद के पिताजी हीरानंद बेहतर व्यवसाय की खोज में बिहार रवाना हो गए। फिर पटना में उन्होंने Saltpetre का बिजनेस प्रारंभ किया, जिससे उनकी अच्छी कमाई हुई। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को बहुत रुपए उधार दिए थे, साथ ही इस कम्पनी के साथ उनके बिजनेस रिलेशन भी बन गए थे।

अपने पिता के कारोबार को माणिकचंद ने खूब फैलाया। उन्होंने नए-नए क्षेत्रों में अपने व्यवसाय की नींव रखी, साथ ही ब्याज पर पैसे देने का बिज़नेस भी शुरू किया था। शीघ्र ही बंगाल के दीवान, मुर्शिद कुली खान के साथ उनकी मित्रता हो गयी थी। बाद में उन्होंने पूरे बंगाल के पैसे और टैक्स को संभालना भी शुरू कर दिया था। फिर उनका परिवार बंगाल के मुर्शिदाबाद में ही रहने लगा।

सेठ माणिकचंद के बाद फ़तेह चंद ने उनका कामकाज सम्भाला। फतेहचंद के समय में भी ये परिवार ऊंचाइयों पर पहुँच गया। इस घराने की ब्रांच ढाका, पटना, दिल्ली, बंगाल तथा उत्तरी भारत के बड़े शहरों में फैल गयी। जिसका मेन ऑफिस मुर्शिदाबाद में स्थित था। ये कम्पनी ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लोन, लोन अदा करना, सर्राफ़ा की ख़रीद व बिक्री करना, इत्यादि का लेनदेन करती थी। रॉबर्ट ओर्म ने उनके बारे में लिखा कि उनका यह हिंदू घराना मुग़ल साम्राज्य में सबसे ज्यादा धनवान था। बंगाल सरकार पर इनके मुखिया का काफी प्रभाव भी था।

इस घराने की बैंक ऑफ़ इंग्लैंड से तुलना भी की गई। बंगाल सरकार के लिए इन्होंने बहुत से ऐसे विशेष काम भी किए, जो की 18 वीं शताब्दी में बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने अंग्रेजी सरकार हेतु किए थे। बता दें कि इनकी आय भी कई स्त्रोतों से होती थी, जैसे कि वे राजस्व कर लिया करते थे तथा नवाब के कोषाध्यक्ष के तौर पर भी कार्य करते थे। इन्हीं के माध्यम से जमींदार भी अपने टैक्स का भुगतान किया करते थे। इन्हीं के द्वारा नवाब दिल्ली को अपने सालाना टैक्स का भुगतान भी करते थे। इसी के साथ ये घराना सिक्के बनाने का काम भी करता था।

जगत सेठ यानी सेठ माणिकचंद का रुतबा देखने लायक था। हालांकि वे किसी स्थान के राजा महाराजा नहीं थे। वह तो बंगाल के सबसे धनवान व प्रसिद्ध साहूकार थे। वे अकेले ऐसे साहूकार थे, जो हर व्यक्ति को पैसे उधार दिया करते थे। इतना ही नहीं, बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी उन्हीं से धन उधार लेते थे। इस वजह से जगत सेठ बंगाल के सबसे ख़ास व्यक्तियों में से एक माने जाते थे।

उनके पास 2000 सैनिकों की सेना थी। बंगाल, बिहार तथा ओडिशा में जितना भी राजस्व (Revenue) कर आता था, वह इन्हीं के माध्यम से आता था। इस बात का तो अनुमान लगाना मुश्किल है कि जगत सेठ के पास कितना सोना, चांदी व पन्ना था। हाँ, पर उस समय में उनके बारे में कहावत मशहूर थी की जगत सेठ चाहें तो सोने व चांदी की दीवार बनवा कर गंगा को भी रोक सकते हैं।

फ़तेह चंद के समय की बात करें तो उस समय में उनकी संपति लगभग 10, 000, 000 पाउंड की रही होगी, जो आज के समय में करीब 1000 बिलियन पाउंड होगी। अंग्रेजी काल के दस्तावेजों से यह भी जानकारी मिलती है कि इंग्लैंड के सारे बैंकों की अपेक्षा उनके पास अधिक धन था। सूत्रों के मुताबिक ये भी अनुमान लगाया जाता है कि 1720 के दशक में पूरी अंग्रेजी अर्थव्यवस्था भी जगत सेठों की संपत्ति के आगे छोटी पड़ती थी। इस बात की पुष्टि के लिए यह भी जान लीजिए कि-अविभाजित बंगाल की पूरी ज़मीन का करीब आधा हिस्सा उन्हीं का था, यानी वर्तमान समय के असम, बांग्लादेश व पश्चिम बंगाल को भी मिला लिया जाए, तो उनमें से आधे स्थान पर उन्हीं का मालिकाना हक था।

सन 1744 में इस घराने को फ़तेह चंद के बाद उनके पोते, महताब राय ने सम्भाला और वे एक नए ‘जगत सेठ’ बने। उस वक्त बंगाल में अलीवर्दी खान के समय में उनका व उनके चचेरे भाई, ‘महाराज’ स्वरूप चंद का काफी रूतबा था। यद्यपि, अलीवर्दी के उत्तराधिकारी, सिराजुद्दौला ने उन्हें अलग भी कर दिया था, सिराजुद्दौला ने युद्ध के ख़र्च हेतु जगत सेठ से 3 करोड़ रुपये मांगे थे। 1750s के समय में यह रक़म बहुत बड़ी थी। जब जगत सेठ महताब राय ने इतनी बड़ी रकम गेने से मना कर दिया, तो इस पर सिराजुद्दौला ने उन्हें एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया था।

इस घटना के बाद जगत सेठ को अपनी धन-सम्पत्ति की सुरक्षा की फिक्र सताने लगी थी। अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने बंगाल के अभिजात वर्ग (Aristocrats) के कुछ लोगों को अपने साथ मिलाकर सिराजुद्दौला के विरुद्ध षडयंत्र बनाया। जिससे अब उनका उद्देश्य था, नवाब सिराजुद्दौला को नवाब की गद्दी से हटवाना। इस काम को अंजाम देने के लिए जगत सेठ ने 1757 की प्लासी की लड़ाई के वक्त ब्रिटिशर्स को फण्ड दिया। फिर जब प्लासी का युद्ध हुआ तो उसमें Robert Clive की 3000 सैनिकों की सेना द्वारा नवाब सिराजुद्दौला की 50, 000 की सेना को हरा दिया गया।

इस युद्ध के बाद जब सिराजुद्दौला मारा गया तो मीर जफ़र नवाब बना, जिसकी सत्ता में महताब राय का दबदबा बना रहा। परन्तु मीर जफ़र के उत्तराधिकारी जिनका नाम था मीर क़ासिम, वे सोचते थे कि महताब राय राजद्रोही हैं। फिर सन 1764 में बक्सर की लड़ाई से कुछ समय पूर्व मीर कासिम ने जगत सेठ महताब राय व उनके चचेरे भाई महाराज स्वरूप चंद को राजद्रोह का आरोप लगाकर बन्दी बनाने का हुक्म दिया और फिर उन्हें गोली मार दी गई थी। ऐसा भी कहते हैं कि जिस वक्त महताब राय को गोली से मारा गया था तब वे पूरी दुनिया में सबसे धनी व्यक्ति थे।

माधव राय तथा महाराज स्वरूप चंद के निधन के पश्चात, इस घराने का पूरा साम्राज्य पतन में जाने लगा और उन्होंने अपनी अधिकांश जमीन पर से अधिकार गंवा दिया था। उनसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने धन उधार लिया, वह वापस भी नहीं किया। फिर बंगाल की बैंकिंग, अर्थव्यवस्था व पूरी सत्ता ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में आ गयी थी। सन 1857 की लड़ाई उनके ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ। इस प्रकार से1900s में जगत सेठ घराना मानो गायब ही हो गया। मुगल वंशजों की ही तरह अब उनके वंशज कहाँ हैं, यह कोई नहीं जानता। प्लासी की लड़ाई के बाद जो अंग्रेजी साम्राज्य कायम हुआ था, उसे खत्म होने में फिर 200 वर्षों से भी अधिक समय लगा।

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