देहरादून: जंगलों की आग ने पहाड़ की हवा को दूषित कर दिया है। वनाग्नि की घटनाओं के बाद यहां ब्लैक कार्बन की मात्रा में आश्चर्यजनक ढंग से 12 से 13 गुना वृद्धि हुई है। सामान्य दिनों में अलकनंदा घाटी में ब्लैक कार्बन की मात्रा 1,000 से 2,000 नैनोग्राम प्रति घन मीटर रहता है। यह आंकड़ा अब 13,250 पहुंच गया है।

ब्लैक कार्बन से ग्लेशियरों को रहे नुकसान के प्रति वैज्ञानिक काफी बार ध्यान खींच चुके हैं। खास बात यह है कि ब्लैक कार्बन के उत्सर्जन में जंगलों में आग की सबसे ज्यादा भूमिका दिख रही है। इसके बावजूद वनाग्नि को रोकने लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विवि के भौतिकी विभाग में भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के सहयोग से वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की गणना के लिए एथेलोमीटर स्थापित किया है। विभाग के डॉ. आलोक सागर गौतम ने बताया कि मंगलवार को ब्लैक कार्बन का औसतमान 12,213 नैनोग्राम प्रति घन मीटर रहा। इसका उच्चतम स्तर 13,250 दर्ज किया गया।

इसमें बायोमास बर्निंग (वनाग्नि) की 57.6 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यानी ब्लैक कार्बन में बढ़ोतरी के लिए सबसे अधिक वनाग्नि जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि यह भविष्य के लिए ठीक नहीं है। पिछले साल इसी दिन ब्लैक कार्बन 2992.15 नैनो प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था। पिछले साल वनाग्नि की घटनाएं कम हुई। इसलिए ब्लैक कार्बन का स्तर भी काफी नीचे रहा था। ब्लैक कार्बन के ज्यादा उत्सर्जन से जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक उष्णता की घटनाएं सामने आएंगी।

गढ़वाल विवि के पर्यावरण विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. आरके मैखुरी के अनुसार वर्तमान में स्थिति बेहद चिंताजनक है। ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों को नुकसान तो पहुंचाएंगे ही। स्थानीय स्तर पर भी इसके दुष्परिणाम सामने आएंगे। इससे जैव विविधता नष्ट हो रही है। ग्लेशियर जब पिघलेंगे, तो इस पर जमा ब्लैक कार्बन पानी के साथ बहेगा। इससे पानी प्रदूषित हो जाएगा।

ब्लैक कार्बन से पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचने के साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम होगी। यदि आग पर काबू पाया नहीं गया, तो इसकी मात्रा बढ़ती जाएगी। ब्लैक कार्बन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से स्वास्थ्य सहित जल, जंगल और जमीन को काफी नुकसान पहुंचाएगा। आग बुझाने के लिए वन विभाग को त्वरित कार्रवाई करनी होगी। साथ ही पर्यावरण संरक्षण की नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन होना चाहिए।

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