देहरादून: बद्रीनाथ से भाजपा के विधायक रहे महेंद्र भट्ट ने भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी राजनीति पर जो नई बात कही है वह बताती है कि भारतीय जनता पार्टी जो सामने देखती वहां भीतर की राजनीति किस प्रकार की है आप भी पढ़िए महेंद्र भट्ट का यह रोचक प्रसंग
मेरे जीवन का विषय-पन्ना-20
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उत्तराँचल(उत्तराखंड)भाजपा युवामोर्चा प्रथम प्रदेश अध्यक्ष रहते मेरी भूमिका और कार्यक्रम
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उत्तराँचल(उत्तराखंड) राज्य गठन पर सन 2000 में प्रथम भाजपा युवामोर्चा अध्यक्ष बनने का शौभाग्य प्राप्त हो गया।अब प्रदेश युवामोर्चा अध्यक्ष के नाते संगठन की पूरी टीम गठित करनी थी,प्रदेश से दोनों महामंत्री अनिल बलूनी जी और गजराज जी की घोषणा हो गयी थी।पूरे देश मे पहली बार उत्तराखंड ही ऐसा राज्य था जहाँ दो महामंत्री बने तब तक संविधान में हर राज्य में एक ही महामंत्री होते थे।अब पूरी टीम बननी थी,और जिलाध्यक्ष भी घोषित करने थे,तब मैं तात्कालीन संघ के प्रान्त प्रचारक आदरणीय शिवप्रकाश जी(आज भाजपा के रास्ट्रीय सह महामंत्री संगठन)से मिला उन्होंने कहा कि एक बार पूरे प्रदेश का भ्रमण कर आओ,और हर जिले के बरिष्ठ नेताओ और अनुसांगिक संघठनो के बरिष्ठ कार्यकर्ताओ से भी मिलना,तब आपको टीम बनाने में सुविधा होगी।मैने प्रदेश अध्यक्ष पूरनदा और ज्योति जी से वार्ता कर पहले कुमाऊँ मंडल और बाद में गढ़वाल का भ्रमण किया सायद 20 दिन लगे होंगे।
पूरे प्रदेश के भ्रमण से लौटने के बाद पदाधिकारियों के लिए नाम आ गए थे,अब उच्च पदाधिकारियों से चर्चा करनी थी और घोषणा करनी थी।पर एक नया संकट आ गया था,जो नाम सूची में थे,वे तो थे ही परंतु अब बड़े नेताओं द्वारा भी कुछ नामो के लिए दबाव बनने लगा।मैं काफी परेशानी में आ गया था।पूरनदा के मन की बात तो ज्योति गैरोला जी ने मुझे बता दी थी।मैं आज जरूर बताना चाहूँगा कि मुझ पर भगतदा,निशंक जी और ज्योति जी ने किसी भी नाम के लिए दबाव नही बनाया।मेरे द्वारा सभी प्रमुख स्थानों पर चर्चा की गयी और टीम की घोषणा कर दी।मेरे द्वारा पहले प्रदेश पदाधिकारी घोषित किये और दो दिन बाद जिलाध्यक्ष घोषित किये।
आज मुझे बताते हुए खुशी है कि मेरी टीम के अधिकतर पदाधिकारी और जिलाध्यक्ष कुछ समय के बाद निर्वाचित जन प्रतिनिधि बने।कुछ महत्वपूर्ण नाम जो याद है वे है–
1-टेहरी-धन सिंह नेगी-विधायक
2-देहरादून-सुनील गामा-महापौर
संदीप गुप्ता–ऋषिकेश से पार्टी
2002 में टिकट।
रविन्द्र जुगरान–दायित्व धारी।
3-हरिद्वार-संजय गुप्ता-विधायक
4-आदेश चौहान-विधायक
5-रुद्रप्रयाग-चण्डीभट्ट-अध्यक्ष जि0प
6-चमोली-मैं स्वयं विधायक
7-उधमसिंह न0-राजकुमार ठकराल
विधायक।
–रविन्द्र बजाज -विधायक टिकिट।
8-पौड़ी-अनिल बलूनी-सांसद,और
कोटद्वार से 2002 में टिकट।
9-नैनीताल-गजराज बिष्ट जी दायित्व धारी
10-अल्मोड़ा-कैलाश शर्मा-विधायक
ललित नैनवाल-विधायक टिकिट
11-चंपावत- नगरपालिका अध्यक्ष।
12-पिथौरागढ़-राजेन्द्र रावत दो बार
नगरपालिका अध्यक्ष।
13- शमशेर सत्याल-दायित्व धारी
14-बागेश्वर-विधायक-शेर सिंह गाड़िया और कई पदाधिकारी अपने क्षेत्र में जिलापंचायत अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख और कई सभासद बने इनकी एक लम्बी सूची है।
मोर्चे द्वारा अनेको कार्यक्रम किये गये, उनमे महत्वपूर्ण था कि हल्द्वानी का प्रदेश अभ्यास वर्ग और प्रदेश की कार्यसमिति।इसमें स्वयं कुशाभाऊ ठाकरे जी और शिवराज सिंह चौहान जी भी आये थे,पूर्ण उपस्थिति का कार्यक्रम था।उस समय हर जिले में अभ्यास वर्ग का आयोजन किया गया,और प्रत्येक बूथ पर कमल वाहिनियों का गठन किया और देश मे कमल बहिनी नाम उत्तराखंड से ही दिया गया था,कई राज्यो में इसका गठन किया,यह नव मतदाता को जोड़ने के उदेश्य से बनाई गई थी।बाद में कमल वाहिनियों के सम्मेलन भी किये गए।प्रदेश बीजेपी पदाधिकारी भी इन कार्यक्रमों में गये।
उसी समय आगरा में पार्टी का अधिवेशन हुवा,उत्तराखंड से अच्छी संख्या गयी।इस अधिवेशन में कुमाऊँ का कार्य अनिल बलूनी जी और विनय उनियाल देख रहे थे।वहां से भी अच्छी संख्या आगरा पहुँची थी।उत्तराखंड की संख्या उत्तरप्रदेश, बिहार के बाद तीसरे नम्बर पर थी,इसकी घोषणा रास्ट्रीय अध्यक्ष जी ने उस समय मंच से की थी।उस समय युवामोर्चा ने देहरादून के चकराता में जनजाति युवा सम्मेलन भी किया था,जो काफी सफल रहा।उस समय इस क्षेत्र में भाजपा का काम काफी कमजोर था।श्री मूरत राम शर्मा जी और भुवन विक्रम डबराल जी का इस कार्यक्रम हेतु काफी योगदान रहा। बाद में यही के मोरी क्षेत्र जो राज्य के काफी दूरी पर था,देहरादून से ही वहाँ जाने में 9 घण्टे लगे थे।वहाँ प्रदेश पदाधिकारियों के बैठक भी हुई।बैठक में इतनी दूर पहुचकर सभी पदाधिकारियों ने एक मिशाल कायम की थी।इस बैठक में प्रदेश महामंत्री संगठन श्री ज्योति प्रसाद गैरोला जी की उपस्थिति थी।
वैसे सभी बैठके प्रभावी होती थी,पर एक प्रदेश कार्यसमिति का उल्लेख करना चाहता हूँ, जिसमे कुछ परेशानी आने लगी थी।उधमसिंह नगर के गदर पुर में यहाँ के जिलाध्यक्ष जो वर्तमान में विधायक है,श्री राजकुमार ठकराल जी के आग्रह पर प्रदेश कार्यसमिति तय की गई थी।उस समय गदरपुर के जिलामहमंत्री रविन्द्र बजाज थे,प्रदेश के सभी पदाधिकारियों का पहुँचना प्रारम्भ हो गया था,परन्तु जिलाध्यक्ष जी बैठक स्थल पर नही पहुँच पाये, मुझे लगा कोई ब्यस्तता होगी इस लिए नही पहुँचे होंगे।अगले दिन उदघाटन सत्र में उनकी उपस्थिति हो गयी,उस समय श्री विद्यासागर जी कुमायूं के भाजपा संगठन मंत्री थे,उस दिन उनकी भी उपस्थिति थी, सत्र अच्छा रहा,और अगले सत्र की तैयारी थी तो पता चला कि ठुकराल जी विद्यासागर जी के साथ बैठक छोड़ कर चले गए,मन काफी दुःखी हुवा,पता चला कि राजकुमार ठुकराल जी रुद्रपुर में श्री विद्यासागर जी के साथ एक कवि सम्मेलन की तैयारी में ब्यस्त थे,तीन दिन की कार्यसमिति में उनकी उपस्थिति केवल उदघाटन में रही।कार्यसमिति के बाद मेरे द्वारा पदाधिकारी बैठक में इस विषय को रखा तो तय हुआ कि यहाँ जिलाध्यक्ष नया नियुक्त किया जाय।और उसी दिन समाचार पत्र में समाचार चला गया कि उधमसिंह नगर के रविन्द्र बजाज अध्यक्ष बन गए।वैसे मैने ठुकराल जी को प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बना दिया था।अब उधमसिंह नगर की राजनीति में उछाल आ गया था,पूरनदा ने मुझे कहा ये क्या कर दिया तुमने, वे तो वहाँ के संगठन मंत्री जी के काफी करीबी है, पुनर्विचार करना चाहिए।बात काफी बढ़ गयी थी,उस समय ये विषय इतना गम्भीर हो गया था कि संगठन प्रभारी आदरणीय नरेंद्र मोदी जी तक बात चली गयी थी,मुझे भी उस बैठक में बुलाया गया,पूरा विषय रखा गया,अन्त में नरेंद्र भाई ने बोला पूरन जी ऐसे ही निर्णय होने चाहिए,हाँ ये तुमने अच्छा किया कि उस अध्यक्ष को अनुशासन के दायरे में नही लाये,वहीं निपटा दिया और प्रदेश कार्यसमिति में ले लिया।मुझे काफी खुशी हुई कि मेरे निर्णय को मुहर लग गई थी।
संघठन में दायित्वों का निर्णय करते समय वैसे समस्याएं काफी आती है, परन्तु मुझे उतनी समस्या नही आई थी,हरिद्वार में कुछ लगती थी,पर उस समय के हरिद्वार पार्टी अध्यक्ष आज के केबिनेटमंत्री श्री मदन कौशिक जी ने बोल दिया था,जो निर्णय होगा वो स्वीकार होगा।परन्तु देहरादून जनपद में काफी दिक्कत आ गयी थी,उस समय कार्यकर्ताओ में ऋषिकेश के संदीप गुप्ता के प्रति राय थी,परंतु उस समय देहरादून के जिलाध्यक्ष श्री प्रेमचंद अग्रवाल जी जो वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष है, वे संदीप के पक्ष में नही थे,काफी प्रयास हुए पर वे मानने को तैयार नही हुए,उन्होंने संदीप न बनें और मुझ पर भी दबाव बने मेरे ही खास मित्र संजीव शर्मा का नाम दे दिया,अब समस्या और भी गम्भीर हो गयी थी,और मेरा कार्यक्षेत्र भी ऋषिकेश ही था,काफी समय ब्यतित हो गया था,अब तो निर्णय करना ही था।एक दिन मैं प्रातःपूर्व संगठन मंत्री रहे और वर्तमान में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी के घर पर गया,उन्होंने मुझे एक मंत्र दिया,कि जब हम कुछ देने के स्थान पर होते हैं,तो उस समय अपने मित्र को आगे बढ़ाने का कार्य करना चाहिए,यही उचित होता है।

आज की परिस्थितियों में एक दिन मैने त्रिवेंद्र जी को उनकी कही यही बात सुनायी,जो अपने परिपेक्ष में थी।

ज्योति गैरोला जी का मुझे काफी सहयोग मिला वे मेरी परिस्थितियों को समझते थे,और मैने संदीप गुप्ता की अध्यक्ष की घोषणा कर दी।अगले दिन मै संदीप गुप्ता को लेकर प्रेम अग्रवाल जी के डोईवाला घर पर गया,प्रेम जी काफी गुस्से में थे,और मैने उनसे कहा कि कार्यकर्ता जीवन मे काम आते हैं, एक समय ऐसा आएगा संदीप की आपको जरूरत पड़ेगी,पर वे नही माने उन्होंने संदीप को भी काफी भला बुरा कहा पर मामला शांत कर हम वापस आ गए।संदीप ने मुझसे कहा मैं त्यागपत्र दे देता हूँ,पर मैने मना किया और बात समाप्त हो गयी,उस दिन से सन्दीप और प्रेम जी की सायद आज तक भी नही बनी, ऋषिकेश से 2002 का चुनाव संदीप लड़ा और कुछ मतों से हार गए,और अगले चुनाव से प्रेम अग्रवाल जी ऋषिकेश से विधायक है ,और संदीप ने उनके खिलाफ भी चुनाव लड़ा और पार्टी से बाहर भी किया गया,सायद आजकल पुनः पार्टी में आ गये।कहने का आशय है कि राजनीति में राजनैतिक कार्यकर्ता का विरोध की भी एक सीमा रहनी चाहिए,और वो भी एक ही दल में रहकर इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
2002 तक मे युवामोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष रहा,बाद में पार्टी ने मुझे रास्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य बनाया और मुझे महाराष्ट्र और बाद में हिमांचल प्रदेश का युवामोर्चाम प्रभारी भी बनाया।मेरा महाराष्ट्र तो केवल दो बार जाना हुवा,परन्तु,हिमांचल काफी बार गया।हिमांचल में तब महेंद्र पाण्डे जी वहाँ के प्रदेश महामंत्री संगठन थे,उसी समय जे0पी0नड्डा जी से भी परिचय आया था।
आज मैं इस बात से खुश हूँ कि युवाओ को बैचारिक संगठन से जोड़े रखना राजनीतिक क्षेत्र में कठिन है, क्योंकि उस उम्र में दलों की अदला- बदली ये युवाओं की आदत में होता है।परन्तु उस समय मंडल से प्रदेश तक के किसी भी पदाधिकारी ने पार्टी छोड़ना तो दूर पदों से भी त्यागपत्र नही दिए थे।

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