देहरादून: मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। 9,800 से ज्यादा कांग्रेस नेताओं ने वोट दिया था। इनमें से 7,897 वोट खरगे के पक्ष में पड़े। वहीं, उनके विरोधी शशि थरूर को एक हजार से ज्यादा वोटों से ही संतोष करना पड़ा। 416 वोट खारिज कर दिए गए। थरूर ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। उन्होंने ट्वीट करके खरगे को जीत की बधाई दी। इसके साथ ही उन्होंने इसे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र की जीत बताया।

नए अध्यक्ष की रेस में शुरुआत से ही मल्लिकार्जुन खरगे को आगे बताया जा रहा था। इसका बड़ा कारण ये है कि गांधी परिवार से लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का समर्थन खरगे को मिला था। खरगे की जीत के बाद सवाल उठता है कि इससे कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा? क्या पार्टी में बदलाव हो पाएगा? क्या वाकई गांधी परिवार का एकाधिकार कांग्रेस पार्टी से खत्म हो पाएगा? आइए समझते हैं…

अब मल्लिकार्जुन खरगे के बारे में जान लीजिए

खरगे का जन्म कर्नाटक के बीदर जिले के वारावत्ती इलाके में एक किसान परिवार में हुआ था। गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर यहां सरकारी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। यहां वह स्टूडेंट यूनियन के महासचिव भी रहे। गुलबर्गा के ही सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद वकालत करने लगे। 1969 में वह एमकेएस मील्स कर्मचारी संघ के विधिक सलाहकार बन गए। तब उन्होंने मजदूरों के लिए लड़ाई लड़ी। वह संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली नेता रहे।

1969 में ही वह कांग्रेस में शामिल हो गए। पार्टी ने उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें गुलबर्गा कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया। 1972 में पहली बार कर्नाटक की गुरमीतकल विधानसभा सीट से विधायक बने। खरगे गुरमीतकल सीट से नौ बार विधायक चुने गए। इस दौरान उन्होंने विभिन्न विभागों में मंत्री का पद भी संभाला। 2005 में उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। 2008 तक वह इस पद पर बने रहे। 2009 में पहली बार सांसद चुने गए।

खरगे गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाते हैं। इसका समय-समय पर उनको इनाम भी मिला। साल 2014 में खरगे को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया। लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद कांग्रेस ने उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया। पिछले साल गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म हुआ तो खरगे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया।

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