देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा सत्र के दूसरे दिन महिला क्षैतिज आरक्षण और धर्मांतरण विरोधी विधेयक सदन में पास किए गए। अब ये दोनों ही कानून बन गए हैं। अब जल्द ही इन्हें लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। सदन में आज छह नए विधेयक रखे गए थे। वहीं पहले दिन सदन के पटल पर दस विधेयक आए थे।

उत्तराखंड सरकार ने राजकीय सेवाओं में महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के लिए विधानसभा में मंगलवार को विधेयक पेश किया था। बुधवार को इस पर चर्चा के बाद इसे पास कर दिया गया। क्षैतिज आरक्षण का लाभ उस महिला अभ्यर्थी को मिलेगा, जिसका मूल अधिवास उत्तराखंड में है, लेकिन उसने अन्य कहीं कोई स्थायी अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया है। यह लाभ उन महिलाओं को भी मिलेगा जिनके पास राज्य में स्थायी अधिवास प्रमाण पत्र है, बेशक उनका मूल अधिवास उत्तराखंड में नहीं है।

 

इसलिए लाना पड़ा था विधेयक 

उच्च न्यायालय नैनीताल ने एक याचिका पर महिलाओं को सरकारी सेवा में दिए जा रहे 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण वाले दो अलग-अलग शासनादेशों को निरस्त कर दिया था। प्रदेश सरकार ने न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। राज्य की एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इस बीच सरकार ने महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को बनाए रखने के लिए अधिनियम बनाने का निर्णय लिया। कैबिनेट ने मुख्यमंत्री को इसके लिए अधिकृत किया। सीएम के निर्देश पर कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने महिला क्षैतिज आरक्षण विधेयक का प्रस्ताव तैयार किया।

मंगलवार को संस्कृति व धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने सदन में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया था। इस विधेयक में सामूहिक धर्मपरिवर्तन का दोष सिद्ध होने पर 10 साल की गैरजमानती सजा का प्रावधान किया गया है। बुधवार को ये विधेयक पास हो गया है। उत्तराखंड में ऐसा करने पर दो से सात साल की सजा होगी और 25 हजार जुर्माना होगा। वहीं,  सामूहिक धर्मांतरण के मामले में अब तीन से दस साल तक की सजा होगी, पहले अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान था। साथ ही पीड़ितों को कोर्ट के माध्यम से पांच लाख रुपये की प्रतिपूर्ति भी मिल सकेगी। प्रदेश में धर्मांतरण का कानून अब संज्ञेय व गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आ गया  है। पहले यह असंज्ञेय अपराध था।

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