चमोली /गैरसैंण: मेरे साथ तस्वीर में नजर आ रहे आप हैं अरुण थपलियाल यह चमोली जिले के गैरसैण मार्ग में पड़ने वाले पौराणिक आदिबद्री मंदिर में पुजारी हैं
लेकिन अरुण जी की कहानी जरा अलग है
दरअसल हज़ारों वर्ष पुराने आदिबद्री में अरुण थपलियाल के परिवार से ही मंदिर में पुजारी रहें हैं लगभग 8 से 12 वी शताब्दी में मन्दिर का निर्माण बताया जाता है ।
पुजारी अरुण थपलियाल बताते हैं हजारों वर्ष पहले से ही उनके परिवार से आदिबद्री मंदिर में सेवा पूजा की जाती रही है जो सिलसिला बादस्तूर आज भी जारी है ….उनके पिता चक्रधर थपलियाल अब स्वस्थ नहीं रहते तो इसलिए वह मंदिर में अपने पिता का सहयोग करते हैं ….
अरुण बताते हैं कि वह तो दिल्ली में एक बड़ी क्राफ्ट कम्पनी में मैनेजर थे …वो घर में अपनी परम्परा से कुछ अलग करना चाहते थे शायद वह पुजारी नहीं बनना चाहते थे … लेकिन अचानक उनके पिता को हार्ट अटेक आया वो जब घर आए तो पिता के कहने पर मंदिर में पूजा आरती सेवा में लग गए ….
पुजारी अरुण मेरे साथ मंदिर की सीढ़ी पर बैठकर फुर्सत से बताते हैं उनको लगा की जब पिता का स्वास्थ्य ठीक हो जाएगा तो वापस दिल्ली चले जाएंगे …. लेकिन मंदिर की सेवा में ऐसा मन रमा की अब वो मंदिर के अलावा कहीं जाना नहीं चाहते … पुजारी अरुण लंबी सुकून वाली सांस लेते हुए कहते हैं कि …. भगवान विष्णु ने ही उनको मंदिर की सेवा के लिए यहाँ बुलाया है …
मंदिर से जुड़ी घर की परम्परा और मंदिर की सेवा का जिम्मा अब पुजारी अरुण थपलियाल निभा रहें हैं !
ज्ञात हो कि आदिबद्री मंदिर को 1966 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने अधीन कर लिया था
अब इस मंदिर के आस पास सो मीटर के दायरे में निर्माण या पुनर्निर्माण करने के लिए ASI की ज़रूरत होती है मंदिर बहुत प्राचीन अद्भुत पौराणिक है विष्णु मंदिर के साथ सोलह अवशेष स्थापित हैं यहाँ भगवान विष्णु साक्षात विराजमान हैं
मान्यता है कि जो बद्रीधाम नहीं जा पाते वह आदिबद्री में विधिविधान के साथ पूजा कर वहीं पुण्य अर्जित कर सकता है जो बद्रीधाम में पुण्य मिलता हैं !
जय आदिबद्री !
राव सफात अली वरिष्ट पत्रकार