देहरादून: कैसे भूल सकते हैं वो दिन जब अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे आंदोलनकरियो के साथ दो अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में यूपी पुलिस ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी।
एक अक्टूबर, 1994 को दिल्ली के जंतर-मंतर में धरना देने के लिए उत्तराखंड से करीब दो सौ बसों में सवार महिला, पुरुष आंदोलनकारियों ने मार्च किया था, तब उप्र में मुलायम सिंह की सरकार थी। ‘आज दो, अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो’ जैसे गगनभेदी नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे सभी आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर के नारसन रामपुर तिराहे पर रोक दिया था और बसों से बाहर निकालकर उन पर अंधाधुंध लाठियां बरसाई गई। महिला आंदोलनकारियों से दुष्कर्म हुआ। मुजफ्फरनगर में दिल दहला देने वाला कांड राज्य आज भी नहीं भूला है। आंदोलनकारियों को इंसाफ की लड़ाई तब से अब तक चल रही है।
वही जब अहिंसा के पुजारी के ‘बापू’ के जन्मदिन पर जब उत्तराखंडी जनमानस सुबह उठा तो इस कांड की खबर ने अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया। इस तरह देश और दुनिया 2 अक्टूबर को बापू की जयंती मनाती है। लेकिन उत्तराखंड के हर साल पुराने जख्म हरे हो जाते हैं।
आपको बता दें कि उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति ने 1995 के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसने उस क्रूर अध्याय की जांच सीबीआई को सौंपी। इस कड़ी में मुजफ्फरनगर में उसकी कोर्ट का गठन किया गया। लेकिन तारीख पर तारीख केे सिलसिले से ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। सीधे सपाट कहें तो मुजफ्फरनगर तिराहा कांड के गुनहगारों को सजा नहीं हो पाई।