• मीडिया डिबेट को कुत्तो की लड़ाई से तुलना

एक जमाना था जब मीडिया पर जनता आंख बंद करके भरोसा करती थी, शायद इसलिए क्योंकि उस टाइम पत्रकारिता का मतलब व्यापार नहीं बल्कि विश्वनीयता थी। उस टाइम पर इतने न्यूज़पेपर, चैनल्स भी नहीं हुआ करते थे।

लेकिन आज के दौर में देश ने जितनी तरक्की की उतने ही घोटाले भी किये है। इन्हीं तरक्की में एक नाम आता है मीडिया जिसको हम पत्रकारिता के नाम से भी जानते हैं। आज के ज़माने में मीडिया ने जनता के सामने पूरा विश्वास खो दिया है। शायद इसलिए क्योंकि अब पारदर्शिता पत्रकारिता ख़त्म होती जा रही है।अब पत्रकारिता में भी फायदा और नुकसान देखा जा रहा है। मैं ये नहीं कहती कि सारे पत्रकार या चेनल्स एक जैसे ही है, लेकिन कहते हैं ना एक खराब मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। बस मीडिया का भी वहीं हाल है।

आज किसी के द्वारा मेरे पास एक पोस्ट आई जिसको मैंने बहुत देर तक देखा और उसमें विचार किया क्या सच मे आज के दौर में पत्रकारिता को इन नजरों से देखा जा रहा है। आखिर देखी भी क्यों न जाए, जब बिना पुख्ता सबूतों को किसी को भी दोषी और किसी को भी निर्दोष साबित कर देती है ये मीडिया तो ज़ाहिर सी बात हैं, मीडिया पर विश्वास करना बहुत ही मुश्किल होगा।

सदी की सबसे बड़ी बहस… खरणव बैलस्वामी के साथ – देश के दर्जनों नंबर एक, सबसे आगे सबसे तेज , बाथरूम से लेकर बेडरूम तक…

Posted by Mukesh Prasad Bahuguna on Tuesday, 6 October 2020

लोग अब मीडिया से इस तरह दुखी हो गए हैं कि सोशल मीडिया के द्वारा इनको इनकी पहचान कर रहे हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड के एक सरकारी टीचर ने सोशल मीडिया के माध्यम से कुत्तों की लड़ाई दिखाई हैं। इसे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मीडिया को किन नज़रो से देखा जा रहा है।

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