देहरादून:प्रेम, सद्भावना और आस्था के प्रतीक श्री झंडेजी के भव्य आरोहण हो गया है। पुराने झंडे जी को उतार दिया गया है, और उन्हें पंचामृत से नहलाकर उनपर सनील लिहाफ चढ़ाया गया। इसके साथ ही झंडेजी मेला शुरू हो गया है। कोरोना संक्रमण के चलते इस बाद श्री दरबार साहिब और श्री झंडेजी मेला प्रबंधन कमेटी ने मेला दो दिन तक ही सीमित रखना तय किया है।

रविवार को नगर परिक्रमा के बाद धार्मिक मेला संपन्न हो जाएगा। आज दोपहर के बाद नए झंडे जी का आरोहण हो गया है। एसपी सिटी सरिता डोबाल मातहतों व प्रसाशनिक अफसरो के साथ सुबह से मौके पर मौजूद है। चार अप्रैल को सूक्ष्म स्वरूप में नगर परिक्रमा होगी। इसके साथ ही मेला संपन्न हो जाएगा। श्री झंडेजी मेला आयोजन समिति के व्यवस्थापक केसी जुयाल ने बताया कि देश के विभिन्न राज्यों में दोबारा तेजी से फैलते कोरोना के चलते एहतियातन कई कदम उठाए गए हैं।

 

उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों से आने वाली संगतों को आरटी-पीसीआर नेगेटिव रिपोर्ट लेकर आना अनिवार्य है। आरोहण स्थल पर भी सीमित संख्या में श्रद्धालुओं से आने की अपील की जा रही है। हालांकि, इस साल संगतों में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या पिछले सालों के मुकाबले कम ही है।

जानिए झंडा मेले का इतिहास…

झंडा मेला या झंडे का मेला उत्तरी भारत में सबसे बड़ा मेल है जो हजारों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है , यह मेला देहरादून में मनाया जाता हैं| इसे श्री गुरु राम राय जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो सिखों के सातवें गुरु के सबसे बड़े पुत्र हैं – श्री हर राय जी। इस मेले में 1733 में इस दिन डून घाटी में आने के लिए एक विशाल ध्वज (झांडा जी) फहराया गया है। झंडा मेला चैत्र के पांचवें दिन मनाया जाता है जो होली के पांचवें दिन भी है।

पंजाब, यूपी, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के पड़ोसी राज्यों के हजारों भक्त झंडा मेले में झंडा उछाल समारोह से कुछ दिन पहले देहरादून आते हैं।एकादशी की पूर्व संध्या पर,

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