देश में कोरोनावायरस को एक साल से अधिक वक्त हो चुका है। पहली लहर में यह महसूस तो हो गया था कि यह जान पर भारी पड़ने वाली एक ऐसी महामारी है जहां से वापसी के लिए सारे बंदोबस्त शीघ्र कर लेना है। मगर वक्त के साथ जो प्रबंधन और प्रशासन स्वास्थ्य की दृष्टि से होने चाहिए वह नाकाफी रहे। चेतना के मापदंड पर भी बाकायदा कोताही रही और देश का जनमानस इसके प्रति मानो बेफिक्र हो गया था। अब दूसरी लहर के चलते सांसे टूट रही है और जिंदगी प्रतिदिन की दर से दावं पर लगी हुई है। प्रदेश सरकारे इससे निपटने के लिए कर्फ्यू और लॉकडाउन का सहारा ले रही हैं और करोना कि इस भीषण तबाही से बाहर निकलने का प्रयास कर रही है मगर दूसरी लहर है कि रूकती ही नहीं है। दूसरी लहर की पीक को लेकर भी अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं, कोई कहता है कि दूसरी लहर चल रही है और कुछ जानकारी तो यह भी है की मई के तीसरे और चौथे हफ्ते में कोरोनावायरस पीक पर होगा। जाहिर है जब अभी यह हाल है तब क्या होगा अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। इतना ही नहीं तीसरी लहर की भी संभावनाएं व्यक्त की जा चुकी है। सवाल बड़ा भी है, गहरा भी और चौड़ा भी है कि आखिर कोरोना महामारी से कब निजात मिलेगी। कब देश सुरक्षित होगा और कब इसे पूरी तरह हम दबोच पाएंगे ? गौरतलब है कि साल 2020 के 24 मार्च को जब देश में लॉकडाउन की घोषणा हुई थी तब पूरे देश में मात्र 5 सौ कोरोना संक्रमित लोग थे और पहली लहर में अधिकतम एक लाख के आसपास यह आंकडा गया था । मौजूदा समय में कोरोना पीड़ितो से जुड़े आंकड़े तीन लाख से ऊपर है और कई बार तो यह चार लाख को भी पार कर चुका है। देखा जाय तो दूसरी लहर में कोरोना पीड़ितो की बढ़ती संख्या और मौतों का उतार-चढ़ाव सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। मगर आज से 2 महीने पहले 1 फरवरी 2021 को पूरे भारत में मात्र 8587 ही केस और 94 मृत्यु का आंकड़ा था। फरवरी के अंत तक यह आंकड़ा 15 हजार से ऊपर और की मरने वालों की संख्या सौ से ऊपर रही। मार्च समाप्त होते-होते कोरोना संक्रमितों की संख्या 68 हजार से पार जबकि 295 मौत रिकॉर्ड की गई। 4 अप्रैल को यही संख्या एक लाख पार कर गई और जब की मौत का आंकड़ा 5 सौ के आसपास पहुंच गया। अप्रैल समाप्त होते-होते आंकड़ा जहां साढ़े तीन लाख के पार पहुंच गया वहीं मरने वालों की संख्या 3 हजार के आसपास रही। मौजूदा समय में यही चार लाख के आसपास रोजाना की दर से केस और 4 हजार के आसपास मौत का भीषण तबाही वाला आंकड़ा देखा जा सकता है। आंकड़े इशारा करते हैं कि कोरोना भारत से अलविदा हो रहा था मगर दूसरी लहर के रूप में इतनी भीषण तबाही के साथ वापसी कैसे हुई , यह प्रश्न आज सबके सामने है।

इसमें कोई दुविधा नहीं कि देश की राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व में कुशल रणनीति और बेहतर समर्पण हो तो चुनौतियों को कमजोर किया जा सकता है। प्रबंध और प्रशासन की पहली महिला चिंतक मेरी पार्कर फालेट का नेतृत्व पर दिया गया विचार यहां कहीं अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है । उन्होंने कहा है कि सबसे अधिक सफल नेता वह है जो उस चित्र को देखता है जो अभी तक यथार्थ नहीं बना है। जाहिर है कि आने वाली चिंताओं और घटनाओं के प्रति नेतृत्व को कहीं अधिक दूरदर्शी होना चाहिए । ताकि यदि समस्या उत्पन्न हो भी जाए तो उसे रोकने में सफलता शीघ्र मिल जाए। देश की स्थिति कोरोनावायरस के चलते इन दिनों भायवाह है। सांस उखड़ रही है करोना पीड़ितों की संख्या और उससे जुड़े आंकड़े आसमान छू रहे हैं। स्वास्थ्य सामग्री, हॉस्पिटल, दवाई और ऑक्सीजन सिलेंडर सहित तमाम कमियों से देश जूझ जूझ रहा है हालांकि विदेशी मदद चौतरफा मिल रही है मगर अभी राहत नहीं मिली। गौरतलब है कि किसी भी देश की सामाजिक आर्थिक विकास उस देश के सेहतमंद नागरिकों पर निर्भर करता है। किसी भी देश के विकास की कुंजी उस देश के स्वस्थ नागरिक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनेक रिपोर्ट से लेकर क्षेत्र विशेष हुए अनेक सर्वेक्षण से पता चलता है कि सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था के क्षेत्र में सुशासन के संदर्भ में लचीले ही रहे। हालांकि सरकार ने साल 2021- 22 के स्वास्थ्य बजट 137 फीसद की वृद्धि करते हुए यह जताने का प्रयास किया है कि स्वास्थ्य को लेकर उसकी चिंता बढ़ी है। मगर कोरोना काल में इतना व्यापक धन भी ऊंट के मुंह में जीरा है। गौरतलब है कि दुनिया के बड़े और मझोले किस्म की अर्थव्यवस्था वाले देश में स्वास्थ्य बजट के मामले में कई देश भारत से कहीं आगे हैं। भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा का जितना बजट होता है दक्षिण अफ्रीका जैसे देश कमोवेश उतने बजट स्वास्थ्य पर ही खर्च कर देते हैं। ऐसे ही कई उदाहरण दुनिया में और मिल जाएंगे जो स्वास्थ्य सुशासन के मामले में भारत से मील आगे हैं। साल 2019 के वैश्विक स्वास्थ्य सूचकांक के अनुसार 195 देशों में भारत 57वें स्थान पर है। सूचकांक से यह भी पता चलता है कि अधिकतर देश किसी भी बड़े संक्रमण रोग से निपटने के लिए तैयार नहीं है। इस सूची में केवल 13 देश ऐसे हैं जो शीर्ष पर रहे इनमें से अमेरिका पहले स्थान पर है। हालाकि मौजूदा आंकड़ों में अमेरिका में कोरोना के चलते मरने वालों की तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है। जो यह दर्शाती है कि बड़े स्वास्थ्य ढांचा से युक्त देश भी कोरोना के आगे विफल रहे हैं। इसके अलावा कई यूरोपीय देश भी करोना के झंझावात में इतनी बुरी तरफ फंसे कि उनके ढांचे भी चरमरा गए। जिन्हें दुनिया में मजबूर चिकित्सा व्यवस्था के लिए जाना जाता है। यह ध्यान देने वाली बात है कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक विश्व स्तर पर महामारी और महामारी के खतरों पर पहला व्यापक मूल्यांकन है।

विश्व भर में कोरोना के लगातार बढ़ते प्रकोप के बीच इसके संक्रमितो की संख्या लगभग 16 करोड़ आसपास हो गई है और 32 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। अमेरिका के एक विश्वविद्यालय के आंकड़े के अनुसार 192 देशों और क्षेत्रों में संक्रमितो की की संख्या बढ़कर लगभग 16 करोड़ हो गई है। वैसे देखा जाए तो कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में भारत को शुरुआती स्तर पर जो बढ़त मिली थी वह उसे गंवा चुका है। चिकित्सा से जुड़ी एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका लान्सेट ने अपने संपादकीय में दूसरे लहर के कहर पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि संक्रमण पर काबू पाने के लिए सरकार को अपने प्रयास तेज करने होंगे। गौरतलब है कि इसी पत्रिका ने यह भी कहा है कि दूसरी लहर के खतरों की बार बार चेतावनी दी जाती रही बावजूद इसके भारत में धार्मिक आयोजनों की अनुमति दी गई राजनीतिक रैलियों का आयोजन किया गया। इनमें कोरोना संक्रमण को रोकने के उपायों का सही ढंग से पालन भी नहीं किया गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोनावायरस मार्च-अप्रैल में जिस गति के गति के साथ भारत को चपेट में ले रहा था उसे गति के साथ चुनावी रैलियों और कुंभ का आयोजन भी देखा जा सकता है।हो न हो ऐसे आयोजनो की कीमत आज देश की जनता कमोबेश चुका तो रही है। समावेशी विकास की दृष्टि से देखें तो स्वास्थ्य सुशासन को मौजूदा स्थिति को देखते हुए अब चार कदम आगे होना चाहिए। स्वास्थ्य सुशासन कहता है समस्या को आने से पहले आकलन कर लेना सबसे बड़ी बुद्धिमानी है। यदि यहां चूक हो भी जाए तो उसे चिकित्सीय सुविधा के माध्यम से समाप्त कर देना चाहिए। मगर जब दोनों में चूक हो तब व्यवस्था रामभरोसे होती है ऐसे में लड़ाई जीतना अत्यंत कठिन होता है और इन दिनों देश में यही स्थिति बनी हुई है। एक तरफ बढ़ते कोरोनावायरस को रोकने में व्यवस्था कमजोर रही तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य व्यवस्थाएं मसलन चिकित्सालय और मेडिकल सुविधाएं इस पैमाने पर खरी नहीं थी कि सभी बीमारों को दबोच सके। फिलहाल इस हाहाकार के बीच में यह बात आसानी से समझ में आती है कि जिस तरह भारत पहली लहर से निपटने में दुनिया के लिए एक उदाहरण था आज वही दुनिया की ओर देख रहा है।

डॉ. सुशील कुमार सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिन्तक

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