पूरे भारत में कोरोना की दूसरी लहर से जहां लोगों में दहशत का माहौल है और पूरे देश में कोरोना ने त्राहिमाम त्राहिमाम मचा रखा है। वही पूरे देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। और कई लोग ठीक होकर स्वस्थ भी हो रहे हैं लेकिन यह माना जा रहा है कि कोरोना से लगाम लगाने के लिए सिर्फ और सिर्फ वैक्सीन एक उपाय है जिससे कोरोना से लड़ा जा सकता है वही इस बीच एक राहत भरी खबर आ रही है कोरोना महामारी से लड़ने के लिए डीआरडीओ की एंटी-कोविड मेडिसन, 2 डीजी अगले एक-दो दिनों में मरीजों को मिलनी शुरू हो जाएगी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन आज डीआरडीओ की इस दवा की पहली खेप को रिलीज करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, हैदराबाद की डॉक्टर रेड्डीज़ लैब में 10 हजार डोज़ बनकर तैयार हो गई हैं।

मिली जानकारी के मुताबिक, इन 10 हजार डोज़ के बाद डीआरडीओ के कहने पर डॉक्टर रेड्डीज़ लैब जून के महीने से हर हफ्ते एक लाख डोज़ बनना शुरू कर देगी। इसके बाद पानी में घोलकर पिलाने वाली ये दवाई जल्द ही दूसरे अस्पतालों में भी उपलब्ध हो सकती है।

आपको बता दें कि कोरोना महामारी के बीच पिछले हफ्ते डीआरडीओ ने एक बड़ी राहत की खबर दी थी। डीआरडीओ ने एंटी-कोविड दवाई बनाने का दावा किया था। डीआरडीओ का दावा है कि ग्लूकोज़ पर आधारित इस दवाई के सेवन से कोरोना से ग्रस्त मरीजों को ऑक्सजीन पर ज्यादा निर्भर नहीं होना पड़ेगा और जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे. डीआरडीओ ने एंटी-कोविड मेडिसन 2-डिओक्सी-डी-ग्लूकोज़ (2डीजी) को डाक्टर रेड्डी लैब के साथ मिलकर तैयार किया है और क्लीनिकल-ट्रायल के बाद ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने इस दवाई को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए हरी झंडी दे दी है।

डीआरडीओ की दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन ऐंड एलाइड साइंसेज (इनमास) ने हैदराबाद की रेड्डी लैब के साथ मिलकर इस दवाई को तैयार किया है. डीआरडीओ का दावा है कि क्लीनिक्ल-ट्रायल के दौरान ये पाया गया कि जिन कोविड-मरीजों को ये दवाई दी गई थी, उनकी आरटीपीसीआर रिपोर्ट जल्द नेगेटिव आई है।

डीआरडीओ की इस दवाई को लेकर खुद रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक तौर से जानकारी देते हुए बताया था कि ये एक जैनेरिक मोल्कियूल है और ग्लूकोज का एक ऐनोलोग है, इसलिए ये भरपूर मात्रा में मार्केट में उपलब्ध है। ये एक सैशे में पाउडर फॉर्म में मिलती है और पानी में घोलकर पी जा सकती है।

अप्रैल 2020 से इस दवाई पर चल रहा काम

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पिछले साल यानि अप्रैल 2020 से इस दवाई पर काम चल रहा था। क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल ही डीआरडीओ यानी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाईजेशन को कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया था। इसके बाद डीआरडीओ ने खुद इस 2डीजी दवाई का थेरेपियेटिक इस्तेमाल किया और लैब में इस पर परीक्षण किया। ये परीक्षण हैदाराबाद की सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के साथ किए गए थे और इसमें पाया गया कि सार्स-कोविड-2 वायरस के खिलाफ ये सही काम करता है और वायरल-ग्रोथ को रोकने में कामयाब है. इन परिणामों के बाद डीसीजीआई यानि ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने इस दवाई के फेज-2 क्लीनिकल ट्रायल की इजाजत दी।

डीआरडीओ ने इसके बाद हैदराबाद की अपनी इंडस्ट्री-पार्टनर, डाक्टर रेड्डी लैब के साथ मई 2020 से लेकर अक्टूबर तक दूसरे फेज के क्लीनिकल ट्रायल किए। इस दौरान पाया गया कि ये कोरोना से ग्रस्त मरीजों पर कारगर साबित हो रही है. फेज-2ए के ट्रायल छह बड़े अस्पतालों में किए गए. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, फेज-2बी के ट्रायल 11 अस्पतालों में 110 मरीजों पर किए गए।

डीआरडीओ की मानें तो फेज-2 के सभी ट्रायल में ये पाया गया कि कोरोना से ग्रस्त मरीजों को जो स्टैंडर्ड ऑफ केयर (एसओसी) यानि जो दूसरे इलाज के तरीके थे उनके मुकाबले 2डीजी दवाई के मरीज ढाई दिन पहले ही सही हो रहे थे। इन परीणामों के आधार पर डीसीजीआई ने डीआरडीओ को फेज-3 यानि आखिरी चरण के क्लीनिकल ट्रायल की इजाजत दी, जो दिसम्बर 2020 से शुरू होकर मार्च 2021 तक चले।

फेज-3 के ट्रायल कुल 220 मरीजों पर किए गए

रक्षा मंत्रालय की मानें तो फेज-3 के ट्रायल कुल 220 मरीजों पर किए गए. ये परीक्षण दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजराज, राजस्थान, आंध्रा-प्रदेश, तेलंगाना, कनार्टक और तमिलनाडु के कुल 27 अस्पतालों में किए गए। इन ट्रायल के परिणाम डीसीजीआई के सामने प्रस्तुत किए गए. इन परिणामों में पाया गया कि जिन कोविड मरीजों को 2डीजी दवाई दी जा रही थी उन्हें ऑक्सीजन देने की जरूरत बेहद कम पड़ रही थी। तीसरे दिन से ही मरीजों में इस दवाई का असर दिखाई देने लगा था। जबकि इसी दौरान जो दूसरी दवाईयां कोविड मरीजों को दी जा रही थी उन्हें आर्टिफिशियल-ऑक्सीजन देनी की जरूरत पड़ रही थी. इसी तरह के परिणाम 65 साल से अधिक आयु वाले कोविड मरीजों में भी देखने को मिले।

इन क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों के बाद 1 मई को डीसीजीआई ने इस 2डीजी दवाई को कोरोन से ग्रस्त मोडरेट और सीरियस (गंभीर) मरीजों को एडजंक्ट थेरेपी के तौर पर इस्तेमाल की परमिशन दे दी।

डीआरडीओ के एक साईंटिस्ट ने बताया कि ये 2डीजी दवाई कोविड से ग्रस्त मरीज के शरीर में वायरस के साथ घुल जाती है। इसके चलते वायरस की ग्रोथ नहीं हो पाती. इसके वायरस के साथ मिल जाना ही इस दवाई को अलग बना देता है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब मरीजों को ऑक्सीजन की बेहद जरूरत है, ऐसे में इस दवाई से ऑक्सीजन पर निर्भरता बेहद कम हो जाएगी।

डीआरडीओ के एक अधिकारी ने बताया कि क्योंकि इस दवाई को डीसीजीआई ने इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी है। ऐसे में अभी ये सिर्फ अस्पतालों में ही मरीजों को मिल सकेगी, मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलेगी।

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