देहरादून: देश की सरहद से लगे चमोली जिले की डीएम स्वाति एस भदौरिया इन दिनों अपनी आक्रामक कार्यशैली के चलते सुर्खियों में हैं। हाल ही में उनकी एक कार्रवाई के समर्थन और विरोध से सोशल मीडिया अटा पड़ा है। डीएम ने उन लोगों पर कार्रवाई की है जो नगरपालिका से आवंटित दुकान (व्यापार संघ भवन सहित), कार्यालय और आवास के किराये का भुगतान लम्बे समय से नहीं कर रहे थे। लेकिन जिस तत्परता से अभियान के तौर पर यह कार्रवाई की गई है उसे लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। कुछ ही घण्टों की मोहलत देकर दुकानों का आवंटन रद्द करने और फिर अन्य व्यक्तियों को नए सिरे से उनका आवंटन करने के पीछे कहीं न कहीं दुर्भावना की बू आ रही है।

कहा जा रहा है कि कुछ व्यापारियों और पत्रकारों से डीएम नाराज चल रही हैं, यह कार्रवाई उसी का प्रतिफल है। दरअसल, जनहित से जुड़े किसी मसले पर व्यापारियों ने डीएम का पुतला फूंका था और पत्रकारों ने वह खबर छापी और दिखाई भी। बस, उसी के बाद ‘मिशन सिस्टम सुधार’ शुरू हुआ।
जिला प्रशासन के मुताबिक गोपेश्वर में कुछ लोगों को वर्ष 2016 में दुकानें व कार्यालय कक्ष आवंटित किए गए थे। इन लोगों ने नगर पालिका से आवंटित दुकानें किसी अन्य व्यवसायी को अधिक किराए पर दे रखी थीं। बावजूद इसके नगरपालिका का किराया इनके द्वारा जमा नहीं कराया जा रहा था, इसलिए डीएम के आदेश पर नगरपालिका ने दुकानों को पहले सील किया और फिर अन्य व्यक्तियों के नाम उनका नए सिरे से आवंटन कर दिया गया। यदि ऐसा है तो यहां जिला प्रशासन से कुछ सवाल तो बनते हैं। पहला, वर्ष 2016 के बाद ये कार्रवाई अभी ही क्यों की गई ? पिछले 4-5 साल से नगरपालिका प्रशासन क्या सो रहा था ? अभी ही उसकी नींद क्यों खुली? उसका कारण क्या है ? दूसरा, यह करवाई सिर्फ चुनिंदा दुकानों को लेकर ही क्यों की गई ? क्या नगरपालिका और जिला पंचायत की अन्य सम्पत्तियों का निर्धारित किराया लगातार मिल रहा है ? तीसरा, आवंटित दुकानों और कार्यालय कक्षों का किराया अचानक कई गुना बढ़ा दिया गया ताकि आरोपित व्यक्ति चाहकर भी नोटिस अवधि में उस राशि का भुगतान न कर पाएं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि किराया राशि नगरपालिका बोर्ड ने नहीं बल्कि जिला प्रशासन ने बढ़ाई जो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इतना ही नहीं, मामले से जुड़े एक पत्रकार की शिक्षिका पत्नी को न सिर्फ अटैचमेंट समाप्त कर उन्हें उनके मूल विद्यालय में भेज दिया गया बल्कि एक के बाद एक कई बार विद्यालय में एसडीएम समेत अन्य अधिकारियों के छापे मारवाकर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। मामूली चूक को सस्पेंशन का आधार बनाया गया। साफ है इस कार्रवाई का एकमात्र उद्देश्य है, लोकतांत्रिक व्यवस्था और स्वतंत्र पत्रकारिता के घुटने तोड़ना। ऐसा नहीं है कि नियम का उल्लंघन कर रहे व्यापारियों और पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन दुर्भावना के चलते नहीं। सिस्टम सुधारना मकसद है तो अभियान एक कोने से दूसरे, तीसरे और फिर चौथे कोने तक चलना चाहिए। किसी को बख्शा नहीं जाना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार-दीपक फर्स्वाण

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