चारों ओर हिंदू-मुस्लमान मंदिर मस्जिद के प्रायोजित शोर के बीच पढिये
पुराणी टीरी कु मोहर्रम

ब्याली थोडा -भौत चिताई त थौ,पर विजया दशमी कु उलार कुछ जादा थौ , पर जब कुडा अगाड़ी कु सरकारी बैंक आज भी बंद दिखेणि तब याद आई कि, आज त बळ मोहर्रम छ ? अर फिर पुराणी टीरी अर वख़ कु मुहर्रम याद आई. हमारा मुहल्ला बिटि बजार जाणकु शौर्टकट रस्ता वाया मुस्लिम मुहल्ला ह्वेक ही जांदु थौ, अगर हम अपणा तप्पड ह्वेक जांदा था अर अगर पशु- अस्पताल वाला रस्ता बिटि भी जांण, त तब भी मस्जिद का अगाड़ी बिटि ही जाणु पडदु थौ ? पुराणी टीरी की अर हमारा अहलकारी मुहल्ला की या खाशियत थै कि, मानल्या तुमन कसम खाईं कि ना, मुस्लिम मोहल्ला बिटि नि जाण त जा फिर पुरब्याणा बिटि जा ? रस्तों की बड़ी भरमार थै पुराणी टीरी म . कक्खी बिटि कक्खी निकल जा ?

पर अब य सब बोल्न –बतौणकी छुईं रेगिन हम सुबेर तप्पड़ म पहुंच्या नी कि, हमारा मुसलमान दोस्त,कोढ़ी-माच्द सामणी दिखे जांदा था. अबे ओ बेटा——-( बाप का नाम लेकर ), खेल रा क्या ? उंकु पैलु सवाल. सुबेर राति-कालि ऊंकि पिल्ला दाणि नितर गुल्लीडंडा शुरू.अबे बाद में ले आणा दूध उंकु हैक्कु सुझाव ? अब अगर कुई प्रलोभन म ऐगी त समस्या या छ कि खिसा पर गोळी नी (घर म लुकैक रखण पडदि थै, घरवाला मारदा था कि, हाफपैंट का खिस्सा फट्दन ). उंम न खेळ पांण की मजबूरी बताई त, समस्या कु हल हाजिर “ बेटा चल उधार ले ले,पर बाद में लौटा दियो, स्याम को ”. ईद का दिनु म उंकी बड़ी चहल-पहल रंदी थै. सुबेर 3 -4 बजी उंका फ़कीर गाणं लग जांदा था . वु कखी भैर- देस बिटि औंदा था.

मोहर्रम, ईद का कई दिन बाद औंदु थौ पर ताजिया कु जिकर कई दिन पैलि बिटि होंण लग्दु थौ, वु ये बाबत आपस म बात करदा अर हम बस खाली सुणदि रंदा था. हमारा मन म भी उत्सुकता रंदि थै ताजिया देखण की पर कखन जाणु थौ ? हमन ऊ वै दिन ही देखण थौ, जै दिन मुहर्रम होंण थौ .ताजिया इमामबेग – नत्थी ( मुरखलि वालु ) कौंका घर का बगल म जुम्मी मौसी अर कादिर कौंका हत्ता / चौक भितर बणदु थौ . ऊं दिनु हमारा मुसलमान दगड़यों भी रात घर बिटि भैर रणकु वन्नी परमिट मिल्जांदु थौ, जनु हम तैं रामलीला का टैम पर मिल्दु थौ . वु रात म ताजिया बणोंदा, वैका का धोरा बैठिक कुछ किताब बांचदा या कुछ मुखाखर बोल्दा था अर बहुत बाद म पता लगी कि, वैक तराबी या नात यन्नी कुछ बोल्दान सैद ?

मर्सिया,मातम,फतवा,कलाम,तलाक,अल्पसंख्यक वगैरा शब्द हमुन भौत बाद म सुणी था .तबरी टेलीविजन भी नि थौ , आज कु अख़बार भी भोळ औंदु थौ ,बस रेडियो कु ही सारु थौ . अर पांचाँ- सातां का नौन्याल कख सुणदा था खबर, जनरल नौलेज पता नी कै नालि –सांदी रंदु थौ पडयुं ? ऊंका बारा म बस हम मुसलमान, मियांजी, नमाज, मस्जिद,कब्रस्तान ,इतना ही जांणदा था. हमारी दोस्ती भी स्कूल, तप्पड तक ही सीमित रंदी थै. कैका डेरा कुई जांदु नि थौ. तब कखन देखण थौ ताजिया बंणदु

अब होंदा –करदा आज कु दिन, तबरी भी ऐजांदु थौ, मुहर्रम कु दिन—- शोक कु दिन ,मातम कु दिन, हजरत ईमाम हुसैन की शहादत कु दिन अर वै दिन ताजिया ब्याखन 4-5 बजी का करीब भैर सड़की म ऐजांदू थौ. रंगीन कागजु अर चमकीली पन्नियों कु बणयूँ, दुमंज ला कुडा जतना ऊंच्चु, वैपर वना लाल –हरा कागज भी रंदा था लग्याँ जना मेंला म मिल्नवाला कागज का चश्मा पर रंदा था लग्याँ. ताजिया दुई होंदा था,एक छोटु ताजिया भी रंदु थौ सैद ? बैंड बाजा भी रंदा था बजणा अर पटाका भी फुटणा रंदा था त हम ये एक त्यौहार ही समझदा था . हम भी ताजिया का निस छिरिक, वैका ओर –पोर जाँदा था, पता नि किलै पर यू खूब माने जांदु थौ ? कुछ लोग लाठी चलौंण कु करतब भी दिखोंदा था अर कुछ छाती पिट्दा था अर या अली ——- या हुसैन का नारा भी लगदा था . कई नौनी – जनानी सड्किम बाल्टयों न पाणी भी ढोल्दी थै. बाद म पता चलि कि यु हजरत हुसैन अर ऊंकी गैली भुक्का –तिस्सा रैक शहादत देंण वाला प्यासा लोगु की अधूरी प्यास का निमित्त होंदु थौ. पुराणी टीरि का ताजिया कु सफ़र जादा लम्बु नि होंदु थौ अर ताजिया कखी दायाँ –बायाँ न जैक, अपणा सामा रस्ता चल्दु थौ. बाद म वै कब्रस्तान म दफ़न कर दिए जांदु थौ.

पुराणी टीरी की जगा अब नई टेहरी ह्वेगी. वख भी आज मुहर्रम रई होलु, ताजिया भी निकलि होलु बस खाली मन्खी अर चेहरा बदलगी होला, थोडा परंपरा भी अर कुछ चंद पुराणा साथीदार भी रै होला ? बाकी त अब कुई सिरीनगर –पौड़ी बसगी,कुई देरादून त कुई उत्तरकाशी अर अब पुराणी टीरी का मोहर्रम की बस याद ही रैगी ?

राकेश मोहन थपलियाल जी कलम से

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