इनमे से कौन अपना ट्रैक रिकॉर्ड दिखाने को तैयार कि उसने कैसी शिक्षा दी ?

आजकल राज्य के माध्यमिक शिक्षकों के संगठन राजकीय शिक्षक संघ के चुनावों की चर्चा जोरों पर हैं I

यह एक विडंबना ही है कि स्वयं को शिक्षकों का संगठन कहने वाले इस संगठन सहित अन्य शिक्षक संगठनों का शिक्षा से जुड़े मुद्दों से दूर का नाता भी नहीं है I

सोशल मीडिया पर शिक्षक नेताओं की पोस्ट्स को पढ़ कर ज्ञात हो जाएगा कि इनके प्रमुख मुद्दे तबादला , प्रमोशन , वेतन –भत्ते जैसे वो विषय हैं जो कर्मचारियों के मुद्दे मात्र हैं I
पाठ्यक्रम ,पाठ्यपुस्तकें , पाठ्यचर्या सहित शिक्षा से जुड़े तमाम मुद्दों पर शिक्षक संगठन एवं उनके नेता मौन साधे रहते हैं I
हर वर्ष पाठ्यपुस्तकें देर से प्रकाशित होती हैं , किन्तु कभी किसी शिक्षक संगठन ने इसके लिए आन्दोलन नहीं किया I
स्कूलों में संसाधनों की कमी , रखरखाव में लापरवाही , निरंतर घटती छात्र संख्या जैसे अनेकों ऐसे मुद्दे हैं ,जिन पर शिक्षक संगठन खामोश ही रहते हैं I

एक और गंभीर प्रश्न है , सोशल मीडिया पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले शिक्षक नेताओं की भाषा अक्सर असंतोषजनक होती है I व्याकरण एवं मात्रा सम्बन्धी गलतियाँ एक आम बात हो गयी है I अक्सर शिक्षक नेताओं द्वारा अपने ज्ञापन सोशल मीडिया पर पोस्ट किये जाते हैं I


अधिकाँश ज्ञापनों में न सिर्फ भाषा सम्बन्धी गलतियाँ होती हैं , बल्कि हस्तलेख भी दयनीय होता है I मजे की बात यह है कि वरिष्ठ अधिकारियों को दिए गए इन ज्ञापनों की गलतियों और हस्तलेख को खुद शिक्षा अधिकारियों द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है I
शिक्षक संगठनों से जुड़े सोशल मिडिया मंचों को देखेंगे तो पायेंगे कि शिक्षक नेता समाज की महत्वपूर्ण गतिविधियों पर चर्चा करने से परहेज करते हैं I शायद यही कारण है कि समाज में शिक्षकों की भूमिका घटती जा रही है , उन्हें शिक्षक की बजाय महज एक राजकीय कर्मचारी मात्र माना जाने लगा है I

क्या शिक्षक संगठन और शिक्षक नेता अपनी भूमिका को समझेंगे और शिक्षा से जुड़े मुद्दों को बहस की मुख्यधारा में ला सकेंगे ? क्या शिक्षा में बदलाव लाने का दावा करने वाले शिक्षक नेता खुद में बदलाव ला सकेंगे? यह यक्ष प्रश्न हैं ,जिसका उत्तर शायद किसी शिक्षक नेता के पास नहीं है I

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