चमोली : वैसे तो उत्तराखंड के हर गांव से देश की सरहद की सुरक्षा को जवान तैनात है, लेकिन भारत- -तिब्बत-चीन सीमा से लगे चमोली जिले के सवाड़ गांव के ग्रामीणों में देश सेवा का जज्बा अनूठा है। इस गांव के हर घर से कोई न कोई देश की रक्षा को सरहद पर मुस्तैद है। प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर देश की आजादी के लिए हुए आंदोलनों में इस गांव के सैनिकों की भूमिका इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है। तो चलिए आपको इस गांव के बारे में बताते हैं…

चमोली जिले के सुदूरवर्ती देवाल विकासखंड में बसे सवाड़ गांव के ग्रामीणों में देश सेवा का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ है। ये गांव सैनिक बाहुल्य गांवों में सुमार है। देश की आजादी से पहले की बात करें तो प्रथम विश्व युद्ध में इस गांव के 22 सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा ले दुश्मन सेना को पछाड़ने का काम किया। इस दौरान गांव के दो सैनिक वीरगति को भी प्राप्त हुए।

देश सेवा के प्रति यहां के ग्रामीणों का जज्बा ही है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा तो उस युद्ध में भी ब्रिटिश सेना की ओर से इस गांव के 38 व्यक्तियों ने हिस्सा लेकर अपनी वीरता का लोहा मनवाया। भारत की आजादी के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हुई लड़ाइयों में भी इस गांव के वीर सैनिकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

देश की आजादी के लिए चले पेशावर कांड में सवाड़ गांव के 17 सैनिकों ने भाग लिया। आज भी इस गांव के 106 व्यक्ति सेना में तैनात होकर देश की सरहदों और आंतरिक सुरक्षा में जुटे हुए हैं। यहां से प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने वाले वीरों की याद में शिलापट्ट भी लगाया गया है, जो अमर शहीद स्मारक के रूप में जाना जाता है।

 

देवाल से 14 किमी की दूरी पर स्थित सवाड़ गांव 317.95 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ गांव है। वर्तमान में इस गांव की आबादी 1400 के करीब है। सवाड़ गांव की प्रधान कंचना बिष्ट कहती हैं कि उनके गांव के हर घर के व्यक्ति में देश सेवा का जज्बा है। वह कहती हैं कि उनके पूर्वजों ने देश की सेवा कर इतिहास में अपना नाम दर्ज किया। पूर्वजों की प्रेरणा से ही आज गांव के हर व्यक्ति में देश की सेवा का जुनून है।

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