देहरादून: देहरादून स्थित सीएसआईआर-भारतीय पेट्रोलियम संस्‍थान देहरादून (आईआईपी) के बनाए स्वदेशी बायो-जेट ईंधन को वायु सेना के विमानों में प्रयोग के लिए औपचारिक स्‍वीकृति मिल गई है। इससे पहले वायुसेना इसका ट्रायल कर चुकी है। अब वायुसेना के विमान बायोजेट फ्यूल से उड़ान भर सकेंगे।

सेना उड़न योग्यता तथा प्रमाणीकरण केंद्र (सीईएमआइएलएसी) के समूह निदेशक आर कमलकन्नन ने अंतरिम प्रमाण-पत्र सीएसआईआर-आईआईपी के प्रधान वैज्ञानिक सलीम अख्तर फारूकी को सौंपा। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्‍टन आशीष श्रीवास्तव और विंग कमांडर ए सचान, सीईएमआइएलएसी के आर शण्मुग्वेल भी उपस्थित थे। यह प्रमाणन विमानन बायोफ्यूल क्षेत्र में भारत के बढ़ते विश्‍वास और आत्‍मनिर्भर भारत की ओर महत्वपूर्ण कदम है। यह प्रौद्योगिकी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की राष्‍ट्रीय प्रयोगशाला भारतीय पेट्रोलियम संस्‍थान (सीएसआआईआर-आईआईपी) ने विकसित की है। पिछले तीन वर्षों में इस पर कई प्रायोगिक परीक्षण तथा ट्रायल किए गए हैं। आईआईपी के निदेशक डॉ. अंजन रे ने खुशी जताते हुए बताया कि इस स्‍वीकृति के बाद भारतीय सेनाएं स्‍वदेशी प्रौद्योगिकी से निर्मित इस बायोजेट ईंधन का अपने सभी कार्यकारी विमानों में प्रयोग कर पाएंगी। साथ ही बायोजेट के व्यावसायिक उत्‍पादन में मदद मिलेगी।

सफलतापूर्ण परीक्षण के बाद मिला प्रमाणपत्र

एयरबोर्न सामग्री का परीक्षण एक जटिल और अत्‍याधिक सतर्कतापूर्ण प्रक्रिया है। इसमें सघन जांच-पड़ताल और परीक्षणों के साथ उच्‍चतम स्‍तर की फ्लाइट सेफ्टी को सुनिश्चित किया जाता है। अंतर्राष्‍ट्रीय विमानन मानक इस कठोर मूल्‍यांकन को परिभाषित करते हैं। 26 जनवरी 2019 को गणतंत्र दिवस पर बायोजेट ईंधन मिश्रित ईंधनयुक्त सेना के एएन-32 मालवाहक विमान ने राजपथ पर उड़ान भरी थी। इसके बाद 30 जनवरी 2020 को एक रूसी विमान लेह हवाई अड्डे पर सफलता पूर्वक उतरा और उड़ान भरी। इतनी ऊंचाई और अत्याधिक शीत परिस्थितियों में भी बायोजेट ईंधन का यह प्रयोग सफल रहा। इसके अतिरिक्त इस बायोजेट ईंधन का एक और सफल परीक्षण किया गया, जब 27 अगस्‍त 2018 को बायोजेट ईंधन मिश्रित ईंधन से प्रचालित स्‍पाइस जेट की सिविल, व्‍यावसायिक प्रदर्शन उड़ान सफलतापूर्वक दून से दिल्‍ली पहुंची।

यूज्ड कुकिंग ऑयल से बना फ्यूल

बायोजेट ईंधन का निर्माणप्रयोग किए खाने के तेल, वनस्‍पति तेल, अल्पकालीन तिलहन फसलों तथा खाद्य तेल प्रसंस्‍करण इकाई के अवशिष्‍ट अर्क से किया गया है। पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में गंधक की मात्रा कम होने से वायु प्रदूषण भी कम होता है व भारत के शून्‍य कार्बन उर्त्‍सजन के लक्ष्‍य की प्राप्ति में सहायता मिलेगी। साथ ही यह अखाद्य तेलों-संग्रह, उत्‍पादन से जुड़े किसानों तथा आदिवासियों की आजीविका के संवर्धन भी करेगी।

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