कनॉट पैलेस में कार्यालय के आ जाने पर काम में वृद्धि होने लगी मैंने दिल्ली के पर्यटन स्थलों के भ्रमण हेतु दिल्ली दर्शन कार्यक्रम की शुरुआत की थी। बाहर से आने वाले पर्यटकों को पर्यटक को से दिल्ली देखने का अच्छा माध्यम मिल गया था। दिल्ली दर्शन का कार्यक्रम बहुत ही लोकप्रिय बनता गया और इसकी सफलता के कारण मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया काम के बढ़ने के साथ नए अधिकारियों और कर्मचारियों की भी नियुक्ति होने लगी।

वर्ष 1965/66 में पीएन श्रीवास्तव की नियुक्ति मेरे कार्यालय में सहायक मैनेजर के पद पर हो गई श्रीवास्तव उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के दामाद थे श्रीमती ललिता शास्त्री जी ने अपने भाई या बहन की एक लड़की को अपने घर में पाला था उसी लड़की से श्रीवास्तव की शादी हुई। श्रीवास्तव बहुत सरल सीधे प्रवृत्ति के व्यक्ति थे दस जनपथ पर प्रधानमंत्री के घर में ही रहते थे कई बार मैं उनको अपनी गाड़ी से छोड़ने दस जनपथ गया शास्त्री जी एक महान पुरुष थे प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने साधारण जिंदगी बिता कर एक निष्पक्ष ईमानदार व्यक्ति का उदाहरण दिया।

श्रीवास्तव बताते थे कि बापू जी (शास्त्री जी) बार-बार पूछते थे कि उनकी नियुक्ति साक्षात्कार के माध्यम से हुई या दामाद होने के कारण, उनको बताना पड़ा की नियुक्ति नियमानुसार साक्षात्कार के आधार पर हुई जबकि बात ऐसी नहीं थी। यदि शास्त्री जी को इस बात की जानकारी हो जाती तो संभवत वे श्रीवास्तव की इस नियुक्ति को निरस्त करवा देते।

घर में विश्वसनीय ढंग से आर्थिक तंगी भी रहती थी एक दिन श्रीवास्तव प्रांत मेरे कक्ष में आकर बोले की माताजी श्रीमती ललिता जी का टेलीफोन आया है कि गांव से कुछ लोग घर आए हैं 22 लोग हैं उनके लिए भोजन सामग्री हेतु 100 चाहिए उन दिनों 100 बहुत होते थे। इतने पैसे श्रीवास्तव के पास भी नहीं थे हम दोनों ने 100 पुल किए और श्रीवास्तव जाकर माता जी को दे दिए।

आया आज जब में इस घटना का उल्लेख कर रहा हूं तो मेरे स्वयं का मन विश्वास नहीं कर रहा कि राष्ट्र के प्रधानमंत्री के घर की स्थिति ऐसी हो सकती थी उस दिन मैं वेतन भोगी था और जानता था कि प्रधानमंत्री भी वेतन भोगी हैं और माता जी को आर्थिक कठिनाई होगी इस सत्य की पुष्टि श्रीवास्तव द्वारा की जा चुकी थी। तो फिर सोचता हूं कि क्या पाठक भी विश्वास करेंगे की माता जी जो भारतवर्ष के प्रधानमंत्री की पत्नी थी के पास मेहमानों के लिए पैसे नहीं थे लेकिन यह बात सही थी क्योंकि शास्त्री जी प्रधानमंत्री बनने के साथ बहुत बड़े संत थे विशुद्ध जीवनशैली महापुरुष महान योगी संसार में रहते हुए भी महान सन्यासी विरक्त और सर्वोपरि।

एक बार पंडित नेहरू ने शास्त्री जी को जब वे किसी विभाग में मंत्री थे अपने साथ मास्को ले जाने का निर्णय लिया सर्दी का समय था पंडित जी के पूछने पर शास्त्री जी ने कहा कि मास्को में ठंड के लिए उनके पास गरम कोट नहीं है।

पंडित जी ने तुरंत अपना एक ओवर कोड निकाल कर दरजी बुलाया और काट छांट कर उसे शास्त्री जी की साइज का बनवाया यह किस्सा मैंने विश्वस्त सूत्रों से सुना था ऐसे शास्त्री जी के परिवार का श्रीवास्तव भी पूर्ण रूप से उन्हीं के पद चिन्हों पर चलने वाला व्यक्ति था। शास्त्री जी के पश्चात हमने कई प्रधानमंत्री देख लिए हैं। किस प्रधानमंत्री के परिवारिक सदस्य इस तथ्य को स्वीकारेंगे कि ललिता जी को मेहमानों का खर्च उठाने के लिए ऐसे दामाद से पैसे लिए बोलना पड़ा जिसके स्वयं के पास इतने पैसे नहीं थे।

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है जिसे स्वीकार ने में आज के राजनेताओं को कठिनाई होगी शास्त्री जी लंबे समय तक रहते तो देश अमीर होता लेकिन प्रधानमंत्री गरीब ही रहते लेकिन मेरे भारत में आज बात बिल्कुल उल्टी है इस दौरान दोनों होटल अशोक और जनपथ बनकर तैयार हो गए थे आईटीडीसी के होटल अनुभव की भी शुरूआत होनी थी इसलिए बढ़ते काम को देकर एक डिविजनल मैनेजर के पद की स्वीकृति मिली।

भारत के उस समय के राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन के दामाद श्री खान दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन के किसी वरिष्ठ पद पर कार्यरत थे। उन्होंने डिविजनल मैनेजर के पद पर आईटीडीसी में लाया गया में केवल मैनेजर उत्तर भारत के पद पर था आईटीडीसी के काम में प्रगति हो रही थी। अब होटलों का काम भी आ चुका था। मुंबई में भी ट्रांसपोर्ट कार्यालय मेरे द्वारा खोला जा चुका था। दिल्ली के अतिरिक्त अन्य शहरों में भी होटल बनाने की योजनाएं तैयार हो रही थी। 1966 के अगस्त में मुझे विश्व पर्यटन संस्थान IUOTO के वर्कशॉप में भाग लेने हेतु प्रयाग चेकोस्लोवाकिया जाना था अतः आईटीडीसी से वापस पर्यटन विभाग में जाना पड़ा।

 

लेखक केदार सिंह फोनिया उत्तर प्रदेश_ उत्तराखंड मे चार बार विधायक और मंत्री रह चुके हैँ उनकी आत्मकथा बदलते पहाड़ और बदलता जीवन से साभार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here