देहरादून: द कश्मीर फाइल्स पर पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी बड़ा बयान दिया है। कहा कि पंडितों का हुआ नरसंहार हुआ था। रावत ने मांग की है कि भाजपा सरकार को वापसी कराने का साहस दिखाना होगा। 1990 में कश्मीर में बर्बरतापूर्ण अत्याचार घटित हुआ। रावत कहते हैं कि यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि जिस तरीके से कश्मीरी पंडितों को चुन-चुन करके मारा गया, नरसंहार हुआ, महिलाओं पर अत्याचार हुये, उनको अपने घर-गांव, अपनी उस प्यारी-प्यारी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा जिसकी स्मृतियां आज भी उनके मानस में अंकित हैं।
#TheKashmirFiles #दि_कश्मीर_फाइल्स, 1990 में कश्मीर में बर्बरतापूर्ण अत्याचार घटित हुआ। जिस तरीके से कश्मीरी पंडितों को चुन-चुन करके मारा गया, नरसंहार हुआ, महिलाओं पर अत्याचार हुये, उनको अपने घर-गांव, अपनी उस प्यारी-प्यारी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा…1/2 pic.twitter.com/gseNGkxoJ9
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) March 19, 2022
‘कश्मीर फाइल्स, उसका एक कथानक है, इस पर राजनीतिक विवाद की गुंजाइश नहीं है। मैं उस समय संसद में था और हमने निरंतर इन घटनाओं को उठाया। तत्कालीन गवर्नर जगमोहन जी की गलत नीतियों, तत्कालिक केंद्र सरकार जिसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद गृहमंत्री थे, उनकी ऐतिहासिक भूलों पर बहुत कहा गया। दुर्दांत आतंकवादियों को छोड़ा गया।’ हरीश रावत।
रावत अपने सोशल मीडिया एकाउंट में द कश्मीर फाइल्स पर पोस्ट करते हुए कहते हैं कि वीपी सिंह जी की सरकार थी, भारतीय जनता पार्टी का उस सरकार को समर्थन हासिल था। मुझे याद है कांग्रेस पक्ष की तरफ से चुनौती देते हुए कहा गया था कि आप ऐसी निकम्मी सरकार से जो कश्मीरी ब्राह्मणों के नरसंहार को नहीं रोक पा रही है, उससे समर्थन वापस लीजिये। समर्थन तो कालांतर में भाजपा ने वापस लिया, लेकिन जब मंडल कमीशन के जवाब में कमंडल उठाने की आवश्यकता पड़ी तो मंडल-कमंडल की लड़ाई के लिये भाजपा ने तत्कालिक सरकार से समर्थन वापस लिया। इतिहास के इस दर्दपूर्ण अध्याय को कोई भी झुठला नहीं सकता है। कहीं न कहीं पर आतंकवाद का जो नया स्वरूप कश्मीर में देखने को मिला है, उसको समझने में चूक हुई है।
रावत का कहना है कि हम उत्तराखंड के लोगों ने भी मुजफ्फरनगर में इसी तरीके का एक दर्द पूर्ण भयावह अत्याचार को झेला है, जब सत्ता ही हम पर टूट पड़ी थी। दर्द पूर्ण पृष्ठ भुलाये जा सकते हैं, उत्तराखंड को राज्य मिला और हमने उस दर्द को अपनी छाती में सजो लिया और आगे की तरफ देखा। कश्मीर में भी आगे की तरफ देखने की आवश्यकता है और उसके लिए आवश्यक है कि आतंकवाद के खात्मे के लिए पूरी राष्ट्रीय शक्ति लगाई जाए।
पूर्व सीएम हरीश रावत की मांग है कि जहां भी ये आतंकवाद पनप रहा है, वहीं उसको नष्ट किया जाए। यदि भारतीय पराक्रम बंगला स्वाभिमान की रक्षा के लिए एक नया इतिहास बना सकता है तो यहां भी आतंकवाद रूपी कायरता को समाप्त करने के लिए इतिहास बनाने में हमको संकोच नहीं करना चाहिए। हम सब साथ हैं, पूरा देश साथ रहेगा।
रावत कहते हैं कि आज कश्मीरी पंडितों को शाब्दिक सांत्वना की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हमको चाहिए कि हम एक संकल्पपूर्ण तरीके से कश्मीरी पंडितों को कश्मीर की घाटी में जहां वो थे, वहां बसाएं, उसके लिए भारतीय गणतंत्र की पूरी ताकत लगा दें। कुछ कदम सरकार ने उठाए हैं, एकाध कदम के विषय में हमारी समझ भिन्न हो सकती है, मगर उसके बावजूद भी कदम तो उठे हैं और देश ने साथ दिया है।
यह काम बाकी है, कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने का! साहस करिए और वहां उनको बसाइये। इतिहास दोष देने के लिए ही नहीं होता है, इतिहास सबक लेने के लिए भी होता है और मैं, देश के समस्त प्रबुद्ध वर्ग व बुद्धिजीवियों से प्रार्थना करना चाहूंगा हमारे भारतीय इतिहास के इस कलंकपूर्ण अध्याय की कटु स्मृतियों को भुलाने के लिए आवश्यक है कि वह आगे आएं और कश्मीर में सौहार्द का एक नया पृष्ठ प्रारंभ करना ही जवाब है।
पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपील की है कि फारूक अब्दुल्ला सहित कश्मीर के राष्ट्रवादी नेतृत्व का कर्तव्य है कि वो इसके लिए आगे आकर एक वातावरण पैदा करें और कश्मीरी पंडित, भाइयों को कश्मीर में पुनः वापस आने के लिए प्रेरित करें, उनकी संपत्तियां, सुरक्षा व सम्मान उन्हें मिले इसको सुनिश्चित करें। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से हम मिलजुल कर ही लड़ सकते हैं और उसे प्राप्त कर सकते हैं।