Harela 2022: देव भूमि कहा जाने वाला उत्तराखंड दुनियाभर में तीर्थ स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां ही संस्कृति में कई विविधताएं दिखाई देती हैं जो कि लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। (Harela Pujan Vidhi) उत्तराखंड में कई महत्वपूर्ण लोक पर्व हैं और इनमें से एक है ‘हरेला’। (Harela 2022 Date) उत्तराखंड में सावन की शुरुआत हरेला पर्व से मानी जाती है। इस पर्व का विशेष महत्व होता है और इस साल यह पर्व आज यानि 16 जुलाई को मनाया जा रहा है।
आज है हरेला पर्व….
उत्तराखंड में हरेला पर्व आज यानि 16 जुलाई को मनाया जा रहा है। उत्तराखंड के प्रत्येक वासी के लिए यह दिन बेहद खास होता है और यहां इस दिन से ही सावन की शुरुआत मानी जाती है। जबकि देश के अन्य हिस्सों में सावन माह का आगमन हो चुका है। यह पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है। कहा जाता है कि उत्तराखंड में देवों के देव महादेव का वास है और इसलिए हरेला का महत्व और भी बढ़ जाता है।
ऐसे मनाते हैं हरेला पर्व….
हरेला का अर्थ हरियाली से है और इस पर्व के आने से 9 दिन पहले घर के मंदिर में सात प्रकार के अन्न जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट को रिंगाल की टोकरी में रोपित किया जाता है। इसके लिए रिंगाल की टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है और इसमें अन्न के बीज डाले जाते हैं। बाद में मिट्टी डाली जाती है और फिर से बीज डाले जाते हैं। इस प्रकिया को करीब पांच से छ बार दोहराया जाता है।
इसके बाद 10वें दिन हरेला त्योहार के दिन इसे काटा जाता है। फिर घर के मुखिया इसका पूजन करते हैं और इसे हरेला पतीसना कहा जाता है। फिर यह देवता को अर्पित किया जाता है और घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती है। हरेला लगाते वक्त एक गीत गाया जाता है जो कि इस प्रकार है।
जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो.
परिवार में एकता का संदेश है हरेला….
हरेला का पर्व परिवार को एकजुट करने का संदेश देता है।परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते हैं।