देहरादून: सरकारी स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई को अंग्रेजी में ही कराए जाने की बाध्यता को खत्म कर दिया गया। अब शिक्षक छात्रों की सुविधा एवं उनकी मांग के अनुसार हिंदी या अंग्रेजी किसी भी भाषा में विज्ञान विषय पढ़ा सकते हैं। महानिदेशक-शिक्षा बंशीधर तिवारी ने सभी सीईओ को नई व्यवस्था लागू करने के आदेश दे दिए। बकौल तिवारी, शासन से भी इसकी औपचारिक अनुमति ली जा रही है।

कक्षा तीन से अंग्रेजी में विज्ञान की पढ़ाई शुरू करने का फैसला कुछ जल्दबाजी भरा भी रहा। सरकारी स्कूलों में पहली, दूसरी और कक्षा में भाषाई रूप से अपेक्षाकृत कमजोर रहने वाले छात्र-छात्राओं पर अंग्रेजी का एकाएक बड़ा बोझ आ गया। शिक्षक भी इसे लेकर काफी असहज थे। विभिन्न स्तर पर यह मुद्दा उठने पर शिक्षा विभाग ने फीडबैक जुटाया। इसमें भी पाया गया कि विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाने से व्यवहारिक कठिनाइयां आ रही हैं।

हिंदी माध्यम से विज्ञान की पढ़ाई करने पर इंटरमीडिएट के बाद छात्रों को प्राइवेट स्कूल के छात्रों के साथ कड़ा मुकाबला करना पड़ता है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षाएं और बाद उच्च शिक्षा में अंग्रेजी का बोलबाला है। ऐसे में सरकारी स्कूलों के छात्र अक्सर पिछड़ जाते हैं। एक अधिकारी ने बताया कि सैद्धांतिक रूप से भले ही मातृभाषा, स्थानीय भाषा की पैरवी की जाती है, लेकिन वास्तविकता में उच्च व तकनीकी शिक्षा में वर्चस्व अंग्रेजी का ही है। ऐसे में छात्रों के सामने खुद को साबित करने की चुनौती होगी।

राज्य में वर्ष 2017 में सरकारी स्कूलों में कक्षा तीन से लेकर 12 वीं तक विज्ञान की पढ़ाई को अंग्रेजी माध्यम से कर दिया गया था। इसके पीछे मंशा छात्रों को 12 वीं के बाद मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि विभिन्न करियर क्षेत्रों में भाषाई रूप से मजबूत करने की थी। यह व्यवस्था पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे की प्राथमिकता में शामिल थी।

सभी सीईओ को आदेश दे दिए गए हैं। अंग्रेजी में पढ़ाई को प्रतिबंधित नहीं किया गया है बल्कि छात्र और शिक्षकों को हिंदी में पढ़ाई का भी विकल्प दे दिया गया है।

-बंशीधर तिवारी, महानिदेशक-शिक्षा

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