उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने एक दार्शनिक पोस्ट अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर की है आप भी पढ़िए

जय जैनेंद्र ….

विश्व मैत्री दिवस पर साधु सेवा समिति पंचपुरी हरिद्वार द्वारा क्षमावाणी महापर्व का आयोजन हुआ। इस दौरान ज्ञात-अज्ञात अथवा भूलवश हुई गलती की क्षमा भी मांगी गयी। साथ ही अन्य को ही क्षमा दी गयी।

परम पूजनीय रत्नाकर आचार्य 108 श्री विबुद्ध सागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन कर किया। इसके बाद ब्रम्हचारिणी आभा दीदी कि चरण स्पर्श किये गए।

जहाँ मान अभिमान का क्षय नाश हो जाता है, वहीं सच्ची क्षमा प्रकट होती है। क्षमा माँगते समय छोटा और बड़ा, अमीर और गरीब नहीं देखा जाता, अपनों को पहिचान पहिचान कर क्षमा नहीं मांगी जाती, जिनसे संबंध पहले से ही मधुर उनसे क्षमा नहीं मांगी जाती। क्षमा तो उससे मांगी जाती है जिनसे आपके संबंध बिगड गये हों, फिर वह छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब अभिमान को त्यागकर, विनय भाव से उसी से क्षमायाचना की जाती है।

क्षमावाणी पर्व आपस में मित्रतापूर्ण व्यवहार को अपनाने की सीख देता है। यह पर्व हमें सीखाता है कि वाणी में ही नहीं प्राणी में भी क्षमा आनी चाहिए। सभी प्राणियों के प्रति मित्रता का भाव आना ही इस पर्व का प्रयोजन है। संसार में रहने वाले समस्त चराचर प्राणियों के प्रति क्षमा का भाव धारण करना और उन्हें अपनत्व आत्मीयता प्रदान करना अपने हृदय शुद्धि की पराकाष्ठा है।

जिन्हें हम अपना कहते जब उन्हीं से संबंध बिगड़ जाते है तो घर में, मन में उथल-पुथल मच जाती है, एक-दूसरे के दुश्मन हो जाते है, आपस में बैर बंध जाता है। कहा कि ऐसे क्रोध बैर और कनुष्ता, दुश्मनी, कटुता के परिणामों को धोने के पर्व को ही क्षमा वाणी पर्व कहा जाता है।

क्षमा केवल मैसेज की या मात्र वाणी की नहीं होनी चाहिए। क्षमा हदय से निकलना चाहिए। क्षमा मांगते समय जो अपने से बड़े हो तो चल कर क्षमा याचना करना चाहिये और यदि कोई छोटे हों तो सीने से लगाकर उनका सम्मान रखना चाहिए।

ज्ञात-अज्ञात, जानबूझकर या भूलवश भाव से हुये समस्त वचन, विचार और व्यवहार के प्रति कष्टदायक परणति की आलोचना करना और पाश्चाताप प्रायश्चित करते हुए क्षमा समता का भाव धारण करना आंतरिक शुद्धि है।

क्षमा मांगते समय जो आनंद की अनुभूति होती है उसे मात्र वही अनुभव कर सकता है, जिसने अभिमान त्यागकर अपनी आत्मा में क्षमा को धारण किया। जब तक अहंकार नहीं टूटता तब तक क्षमाभाव आत्मा में नहीं आ सकता। मुँह ये क्षमा मांग लेना सरल है किन्तु मन से ह्रदय से क्षमा माँगना वीरों का ही काम है – क्षमा वीरस्य भूषणाम। घर परिवार में अथवा समाज के किसी व्यक्ति से कोई भूल हो जाए तो उसे क्षमा कर देना, यही सामाजिक जीवन जीने की कला है।

जय जैनेंद्र…..

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