क्या विधानसभा नियुक्तियों की अनुमति “विचलन” याने departure के माध्यम से देकर मुख्यमंत्री धामी ने पूर्व मुख्यमंत्री निशंक की भांति अक्षम्य गलती कर दी है ?

कल सुबह पायनियर अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र सिंह जी नेगी द्वारा उत्तराखंड विधानसभा की अवैध नियुक्तियों के संबंध में विधानसभा द्वारा उच्च न्यायालय की डबल बेंच में दायर याचिका के संबंध में पड़ी ।

कुछ खबरें हजारों में एक होती हैं। ऊँपर से इस खबर को पड़ कर लगेगा कि तथ्यों के आधार पर लिखी ये खबर विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री धामी या सरकार के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है पर है।

लेकिन मैं नेगी जी को बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने इस याचिका के साथ संलग्न कागजातों द्वारा ये लिखा कि वित्त और कार्मिक विभाग की अप्पतियों के बाबजूद भी नियुक्तियों को अनुमति मुख्यमंत्री धामी ने विचलन के माध्यम से दी को पकड़ा।
विचलन शब्द पर नजर पड़ते ही मेरी रुचि जागी और मैंने भी कागजात मंगवाए ये सच निकला। ये सरकारी प्रक्रिया का बहुत तकनीकी शब्द है और इसे रिट के बिंदु 17 में अंग्रेजी में deviation लिखा है जो गलत है इसकी अंग्रेजी departure होती है। यदि कोई विधानसभा वाला इसे पड़ रहा हो तो सुधरवा ले वरना उच्च न्यायालय में फिर डांट खाओगे।

अब पहले ये जान लें कि विचलन क्या होता है ?

जितने भी बड़े निर्णय सरकार करती है उनको Rules of bussiness के अनुसार 3 तरीकों से लिया जाता है-
1- कैबिनेट में जिसके प्रथम मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री होते हैं में मंत्रियों द्वारा चर्चा के बाद सर्वसम्मति या बहुमत से निर्णय लेते हैं।
2- सर्कुलेशन द्वारा बिषय को मंत्रियों को भेजा जाता है और वे उसे निश्चित समय में अपने मत के साथ वापस भेजते हैं। यंहा भी बहुमत से निर्णय होता है।
3- विचलन या departure द्वारा यंहा सारी कैबिनेट की ताकत मुख्यमंत्री अपने हाथ में ले लेते हैं और अकेले निर्णय लेते हैं। अति संकट में इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है।
अब विधानसभा की भर्तियों को कैसे अति संकट में लिया निर्णय सिद्ध किया जाएगा यह देखना बाकी है।
इससे पहले भी एक बार “विचलन” ने राज्य की राजनीति को बिचलाया था। सरकार भाजपा की ही थी मुख्यमंत्री निशंक जी थे उन्होंने तब स्टूर्डिया जमीन मामले और पावर प्रोजेक्ट आबंटन के दो निर्णय विचलन द्वारा लिए थे । इन दोनों अनुमतियों को जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती मिली थी।
इसी दौरान मैंने “तहलका” में इन दोनों विषयों पर आर्टिकल किया था और ” विचलन ” शब्द की जिम्मेदारी की व्याख्या मैने इनमें की थी। बाद में दोनों मामलों में उच्च न्यायालय के निर्णय आने से पहले सरकार ने “विचलन ” से दी दोनों स्वीकृतयों को निरस्त कर अपनी जान आंशिक रूप से छुड़ाई । पर निशंक जी के दामन पर दाग लग ही गए थे।
हालांकि ये पत्रवालियाँ उनके पहले से चल रही थी और दोनों मामलों में सुख लेने वालों में भाजपा के उत्तराखण्ड के तत्कालीन सह प्रभारी जैन सहित कई और के परिवार थे। पर सारा ठीकरा विचलन से लिए गए निर्णय के कारण निशंक साहब पर फूटा था ।
मैं गजेंद्र भाई को कागजों में से बिचलन शब्द को पकड़ने के लिए बधाई देता हूँ। इस खबर का राजनीतिक और सामाजिक असर दूर तक जाएगा।
साथ ही युवा मुख्यमंत्री धामी जी को सलाह भी कि ऐसे ऐसे अक्षम्य राजकीय पाप करने की सलाह उन्हें जिसने भी दी उनसे आजीवन बचें ।

मनोज रावत,
पूर्व विधायक, केदारनाथ ।

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