जोशीमठ की आपदा पर इस वक्त बहुत ही संयम से कार्य करने की जरूरत है। भू -धंसाव नया नहीं है यह कई वर्षों से जारी है । सतत चला आ रहा है। हम आंखें मूंदे बैठे रहे। प्रयास करने से परहेज़ करते रहे।केवल राजनीतिक दांव पेंच का खेल खेलते रहे।वनों‌का दोहन,खनन, स्मगलिंग,रातों रात धन्ना सेठ बनने की लालसा,बांध पर बांध बनाने का खेल खेलते रहे। 1976से आवाज उठती रही कि मारवाड़ी क्षेत्र भू स्खलन की जद में हैं । जोशीमठ को बचाइए।दशोली ग्राम स्वराज मंडल गोपेश्वर तथा केदारनाथ वन प्रभाग के संयुक्त तत्वावधान में 1976में गोपेश्वर महाविद्यालय के एन एस एस के छात्रों का वृक्षारोपण शिविर लगाया गया तथा मारवाड़ी क्षेत्र में वृहद वृक्षारोपण कार्य किया गया। मैं भी इस शिविर में था।1978 में दूसरी बार फिर एन एस एस का शिविर आयोजित किया गया इस बार भी मैंने प्रतिभाग किया था।इस क्षेत्र के स्पंदन को बड़े करीब से मैंने महसूस किया था। इसी बीच गढ़वाल कमिश्नर श्री एम सी मिश्रा समिति की रिपोर्ट भी सामने आई और जोशीमठ क्षेत्र को संवेदनशील बताते हुए बड़े निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई। यह भी बताया गया था कि यह क्षेत्र हिमनदों द्वारा लाये गये मोरेन पर स्थित है ।लेकिन कुछ समय तक खुसफुसाहट होती रही और बात जहां की तहां रह गई। इसके बाद भी समय समय पर इस स्थान ने भूस्खलन के कई संकेत भी दिए कि मानवीय हस्तक्षेप रुका नहीं तो कोई अनहोनी हो सकती है । लेकिन निर्माण कार्य बेधड़क चलता रहा । श्री बद्रीनाथ जी की यात्रा की संख्या में हर वर्ष बढ़ोतरी तथा औली हिम क्रीड़ा के अन्तर्राष्ट्रीय पहचान से उत्साहित यहां के व्यवसासियों ने होटल,रेस्टोरेंट्स, जैसे निर्माण कार्यों को खूब बिस्तार दिया। स्थानीय लोगों ने भी अपने पैतृक मकानों को तोड़ कर नये लैंटर वाले मकान खड़े करने शुरू कर दिए।यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। इसी बीच सरकार ने जल विद्युत योजनाओं के कई प्रोजेक्ट भी इस क्षेत्र में शुरू कर दिए। यह ऐसा हुआ जैसे कोढ़ में खाज। थोड़ा बहुत विरोध हुआ, फिर सब अपने धन्धे में मशगूल हो गए। जोशीमठ से मारवाड़ी तक की सड़कों में कई जगह धंसाव भी दिखाई देते रहे। कुछ लोग जरुर चिल्लाए लेकिन फिर ढाक के तीन पात।

श्री नरसिंह भगवान का नया मंदिर बनने के बाद जब मैं राजकीय महाविद्यालय के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने जोशीमठ गया तो भगवान नृसिंह के दर्शन हेतु मन्दिर में गया। मन्दिर के परिसर में पड़ी लम्बी दरार देखकर मैं चौंक गया। मुझे 1976के एन एस एस कैंप तथा वृक्षारोपण की याद ताजा हो गई। मैंने वहां के कुछ जागरूक लोगों से बातचीत की तथा इस सम्बन्ध में सरकार को अवगत कराने की बात भी की।इस दौरान मैं इस दरार की फोटो खींच कर लाया था और मैंने सोसल मीडिया पर एक आलेख इस बाबत पोस्ट की थी जिसमें मैंने सरकार से इस प्रकरण पर गम्भीरता से कदम उठाने की बात कही थी। मेरी इस पोस्ट पर कोई ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं आई थी।ऐसा लग रहा था उत्तराखण्ड के शुभचिंतक लोग और पत्रकार लोग इस प्रकरण‌से कोई वास्ता नहीं रखते हैं। लेकिन प्रकृति और समय किसी का इंतजार नहीं करते हैं।वहीं हुआ जो कोई नहीं चाहता था।

अब जोशीमठ की इस आपदा में बड़ा हो हल्ला मच गया है। केन्द्र से लेकर राज्य सरकार हरकत में आ गई है। जोशीमठ पत्रकारों से भर गया है। मकान की दरारों के साथ साथ कई लोगों के कैमरे चूहे के बिलों पर भी घूम रहे हैं। और तो और जिसका इस आपदा से कोई लेना देना नहीं वे लोग भी जोशीमठ बचाने के नाम पर वहां मंडराने लगे हैं।खाली भीड़ इकट्ठा करने से राहत कार्यों में बाधा हो जाती है। कई फर्जी एन जी ओ सक्रिय होकर बड़े बड़े ‌शहरों में जोशीमठ के नाम पर चन्दा और सामान इकट्ठा करने का‌ मन बना चुके होंगे। जैसे पहले के आपदाएं में होता रहा है। वहीं पुनरावृत्ति संभव है। कुछ सुझाव अपने ओर से देना चाहता हूं। यदि संभव लगे तो इन् पर भी बिचार किया जा सकता है।

1 इस विपदा की घड़ी में सबसे पहले बाहरी अवांछित लोगों पर जोशीमठ जाने से रोक लगाई जानी चाहिए।

2 विशेषज्ञों,व प्रशासन द्वारा चिन्हित क्षतिग्रस्त मकानों के लोगों और उनके सामानों को सही सलामत विस्थापित स्थानों तक पहुंचाया जाना चाहिए।

3सभी लोगों के मकानों और चल अचल सम्पत्ति की सुरक्षा के प्रबन्धन किया जाना चाहिए।

4ठन्ड से बचने के लिए महिलाओं, बच्चों तथा बूढ़ों के लिए उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए।

5 प्रभावित बच्चों, छात्र छात्राओं के पढ़ाई की। वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए।

6एंबुलेंस व स्वास्थ्य सेवाएं चौबीस घण्टे उपलब्ध होनी चाहिए।

7 केन्द्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा निर्देशित वैज्ञानिकों, भूगर्भशास्त्रियों,अभियन्ताओं व तकसीनियों को क्षेत्र के अध्ययन करने व कारणों का पता लगाने हेतु पूर्ण सहयोग दिया जाना चाहिए। उनके कार्यों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

8फिलहाल जब तक ठोस कारण सामने नहीं आ जाते क्षेत्र के सभी निर्माणाधीन परियोजनाओं सहित अन्य निजी निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।

9जोशीमठ के सर्वाधिक संवेदनशील व प्रभावित क्षेत्रों में भारी वाहनों के आने जाने पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

10 मीडिया द्वारा तथ्यहीन, अप्रमाणिक वह भ्रामिक खबरों के प्रसारण पर रोक लगनी चाहिए।

11आगामी संभावित वर्फवारी व वर्षा को देखते हुए। राहत सामग्री व आवश्यक बस्तुओं का भण्डारण कुछ चयनित केन्द्रों में किया जाना चाहिए।

12पूरे प्रभावित क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति तथा जल आपूर्ति कदापि वाधित नहीं होनी चाहिए।

13 जोशीमठ की जनसंख्या के हिसाब से अस्थाई सैल्टर व आवासीय व्यवस्था तैयार रहनी चाहिए।

14 ड्रोन से लगातार प्रभावित क्षेत्र की निगरानी की जानी चाहिए तथा सतर्कता उपकरणों के माध्यम से लोगों को जागरूक बनने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।

15 ऐसे नाज़ुक वक्त पर लोगों में विश्वास और धैर्य दिलाने के प्रयास किए जाने चाहिए।

16 फिलहाल राजनैतिक पार्टियां एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से बाज आएं। यह वक्त सहयोग करने व परिस्थितियों के समाधान ढूंढने का है।

17 ऐसे वक्त पर अवांछित तत्व व चोर उचक्के ज्यादा सक्रिय रहते हैं । सरकार जोशीमठ में ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखने के प्रयास करें।

18 जोशीमठ के आपदा के ठोस कारण आ जाने पर तदनुसार विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों,प्रशासन के अधिकारियों के सर्वसम्मति से आगे की योजना को कार्य रूप दिया जा सकता है।
19जो धनाढ्य लोग बड़े बड़े मन्दिरों को सोना चांदी से मढने की इच्छा संजोए हुए हैं मेरा उनसे विनम्र आग्रह है कि इस ज्योतिर्मठ की पावन धरती के लोगों के पुनर्वास के लिए तथा ज्योतिर्मठ के अस्तित्व को बचाने में आपका सोना चांदी काम आ सके तो इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं है।

कल्याण सिंह रावत मैती।

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