देहरादून: बदहाल सड़कें, फसल को जंगली जानवरों से नुकसान, सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति, पीने के पानी की कमी वो कारण है, जिनकी वजह से पहले उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों से पलायन होता था। आज इतने सालों बाद भी सड़कों की स्थिति में सुधार तो आया है पर बाकी स्थितियां और भी बदतर होने के साथ ही सड़कें पलायन करने को आसान बनाने का काम ही कर पाई हैं।

जी हां, उत्तराखंड में हर रोज औसतन 230 लोग पहाड़ से पलायन कर रहे हैं। 2018 से पहले तक यह आंकड़ा 138 था। पलायन आयोग की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। पलायन रोकने के लिए बने पलायन आयोग के अस्तित्व में आने के बाद उत्तराखंड में पलायन की रफ्तार और तेज हो गई है।ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग ने इसी सप्ताह 2018 से अब तक की स्थिति पर आधारित रिपोर्ट सार्वजनिक की है। आयोग के इन्हीं आकड़ों का विस्तृत अध्ययन कर, एसडीसी फाउंडेशन ने फैक्टशीट जारी की है। फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल के मुताबिक उत्तराखंड में 2008 से 2018 के बीच कुल 5,02,717 लोगों ने पलायन किया।

जबकि आयोग गठन के बाद 2018 से 2022 के बीच बीते चार वर्षों में ही यह आंकड़ा 3,35,841 पहुंच गया है, इसमें स्थायी और अस्थायी दोनों तरह का पलायन शामिल है। इस तरह उत्तराखंड में वार्षिक आधार पर 2008-2018 की अवधि में 50,272 लोगों की तुलना में गत चार वर्ष में सालाना औसत 83,960 लोगों ने पलायन किया। इस तरह बीते चार वर्षों के दौरान 67की बड़ी वृद्धि हुई है।

पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी के बताया कि 2008-2018 की अवधि में 3,83,726 लोगों ने अस्थायी पलायन किया जबकि 2018-2022 की अवधि में यह संख्या 3,07,310 रही। इसी तरह प्रथम दस साल में 1,18,981 लोगों ने स्थायी पलायन किया, जबकि पिछले चार साल में स्थायी पलायन वालों की संख्या 28,531 रही। वार्षिक आधार की तुलना में स्थायी पलायन की संख्या में 40 प्रतिशत की कमी आई है। पहले 10 वर्षों में 70.33 की तुलना में पिछले चार साल में 76.94 लोगों ने उत्तराखंड राज्य के भीतर ही पलायन किया है। इसमें 53.33ने अपने पास के शहर या अपने जिला मुख्यालय में पलायन किया है।

रिपोर्ट के अनुसार गत चार साल में राज्य के 24 और गांव पूरी तरह निर्जन हो गए हैं, इसमें सीमांत के 12 गांव भी शामिल है। इस तरह उत्तराखंड में भुतहा गांवों की संख्या 1726 पहुंच गई है। वहीं 398 गांव ऐसे हैं जहाँ लोग पलायन कर बस गए हैं।

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