हमारी बिटिया समृद्धि (पीहू) ने ब्राइटलैंड स्कूल देहरादून से आईसीएसई बोर्ड कक्षा 10 में 93% मार्क्स प्राप्त कर परिवार को गौरवान्वित किया है।

इस अवसर पर मुझे अपना हाईस्कूल का परीक्षाफल याद आता है । सन 1992 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद का कक्षा 10 का परीक्षा परिणाम 14% था।

उन दिनों मैं परीक्षा देने के बाद अपने ग्राम चुरानी विकासखंड रिखणीखाल जिला पौड़ी गढ़वाल में अपनी मां तथा छोटे भाई बहनों के साथ रह रहा था। 1 जुलाई से स्कूल खुल चुके थे और मेरे पिताजी और मेरा बड़ा भाई धर्मेंद्र सिंह मेरे गांव से लगभग 150 किलोमीटर दूर जनता इंटर कॉलेज सीकू में थे। फोन की कोई सुविधा नहीं थी । बरसात शुरू हो चुकी थी। उन दिनों खेतों में धान की रोपाई का काम चल रहा था । काम से सभी लोग थके रहते थे ।

14 जुलाई 1992 को रिजल्ट घोषित हुआ था। हमारे घर में रेडियो था और हमने अपराहन 7:20 पर उत्तरायण कार्यक्रम के बाद लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित समाचार में परीक्षाफल घोषित होने की सूचना को सुना था और बहुत उत्सुक हुए।

तब रिजल्ट अखबार में छपता था। हर विद्यालय के निकटवर्ती क्षेत्र के कुछ लोग अखबार को खरीदने निकटवर्ती बाजार जाते थे । हमारे गांव क्षेत्र से मेरे गांव के श्री सत्येंद्र सिंह भी अखबार लेने कोटद्वार गए थे जो 15 जुलाई 1992 में लगभग दोपहर 2 बजे के समय गांव पहुंचे थे । सभी छात्र छात्राओं ने अपना परीक्षा परिणाम देखा। कुछ खुश हुए तो कुछ दुखी। यह भी उल्लेखनीय रहा कि उस समय अधिकांश छात्र-छात्राएं फेल हो गए थे और पूरे क्षेत्र में लगभग गमगीन माहौल था । इसी वर्ष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह सरकार द्वारा नकल विरोधी अध्यादेश पारित किया गया था।

मैं जनता इंटर कॉलेज सीकू जनपद पौड़ी गढ़वाल का छात्र था । मैंने भी उत्सुकता के साथ अपना रोल नंबर सत्येंद्र भाई को बताया लेकिन काफी प्रयास करने के बाद मेरा रोल नंबर अखबार में नहीं मिला । मेरे विद्यालय के 74 छात्र-छात्राएं उस वर्ष 10वीं की बोर्ड परीक्षा में सम्मिलित हुए थे किंतु किसी का रोल नंबर अखबार में नहीं छपा हुआ था। जो बहुत आश्चर्यजनक लग रहा था और बहुत दुख दे रहा था लेकिन बोर्ड का रिजल्ट 14% रिजल्ट होने के कारण विद्यालय का नाम अखबार में न आना भी कोई आश्चर्य नहीं दे रहा था।

जब अखबार में रोल नंबर नहीं मिला तो आसपास खड़े हुए सभी लोगों ने कहा कि तुम तो गए और फेल हो गए हों। सभी लोगों की बातें सुनकर मैं बहुत दुखी हो गया और लगभग रोने से लगा। सारे गांव में यह संदेश फैल गया था कि मैं भी फेल हो चुका हूं ।
लेकिन मुझे इस रिजल्ट की कतई उम्मीद नहीं थी और मैं अभी भी उम्मीद बनाए हुए था।

अगले दिन जब श्री सत्येंद्र सिंह भाई साहब ने अपना लाया हुआ अखबार को पूरी तरह से उपयोग में ला दिया और वह उनके किसी काम का नहीं रहा तो मैंने ₹20 देकर उनसे यह अखबार खरीद लिया। फिर मैंने 1- 1 अनुक्रमांक से चेक किया। कहीं जाकर हमारे विद्यालय का नाम मिला। उसमें मात्र 5 अनुक्रमांक छपे हुए थे। इसमें एक मेरा भी अनुक्रमांक था । मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । मैं पास हो गया था। उल्लेखनीय रहा कि मेरे साथ उत्तीर्ण होने वालों में तीन लड़कियां और एक लड़का भी शामिल थे ।

विधि का विधान देखिए कि जो लड़का मेरे साथ उत्तीर्ण हुआ , उसका अनुक्रमांक क्लास में सीटिंग अरेंजमेंट के अनुसार ठीक मेरे दाहिनी ओर था। मेरा नाम शैलेंद्र सिंह और उसका नाम विनोद सिंह था । वह कक्षा का बहुत शरारती लड़का था। वह पूर्व की कक्षाओं में फेल होता रहा और काफी लंबा चौड़ा था। उनकी बहुत सी भेड़ और बकरियां थी और अधिकांश समय वह उन्हीं को चराने में व्यतीत करता था । उसने मुझे पहले दिन ही कह दिया था कि तू पढ़ने में तेज है और मैं तो खत्म हूं किंतु अपनी कॉपी में अपना हाथ मत रखना। तू दाढ़ी वाले गुरु जी का लड़का है । मेरी हेल्प करना यार । मैं हाइट में लंबा होने के कारण तेरी कॉपी से कुछ उतार लूंगा और यही हुआ। उसने शायद कुछ अपनी मेहनत से आंसर लिखे होंगे और कुछ answer उतार लिए। उसका परीक्षा परिणाम उसके सामने रहा कि वह तृतीय श्रेणी में पास हो गया ।

बाद में नियति कुछ ऐसी बनी कि विनोद सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया और 15 गढ़वाल राइफल्स का जवान होकर सीमा पर तैनात रहा। लगभग 7-8 साल सेवा देने के बाद उसके साथ एक बहुत बड़ी घटना घटी। जम्मू कश्मीर में तैनाती के दौरान उस पर आरोप लगा कि उसने अपने सर्विस राइफल से अपने दो या तीन साथी जवानों को मार दिया है। जिस कारण उसे पहले लेह तथा बाद में कोट बलाबल जम्मू जेल में रखा गया। संभवत कोर्ट मार्शल एवं न्यायालय सुनवाई के पश्चात उसे आजीवन कारावास की सजा हुई।

इसी बीच उसने अपनी लगभग 8- 9 साल की सजा पूरी की । तभी उसके जीवन में एक नया अध्याय जुड़ गया। उस दौरान भारत पाकिस्तान के मध्य सरबजीत सिंह के पाकिस्तान में बंदी होने के दौरान मृत्यु का मुद्दा गरमाया।

समाचार पत्रों के माध्यम से यह भी प्रकाश में आया कि पाकिस्तान का एक खूंखार आतंकवादी जम्मू जेल में बंद है। जिसका नाम सनाउल्लाह है। विनोद सिंह और सनाउल्लाह के बीच जेल के अंदर सरबजीत सिंह के मसले पर चर्चा होने के दौरान विवाद हुआ और विनोद सिंह ने उस खूंखार आतंकवादी को आपसी झगड़े में ईट से वार कर मार गिराया।

इस घटना के बाद विनोद सिंह पुनः तथाकथित देशभक्त की श्रेणी में शामिल हो गया। उसके परिवार को स्वयंसेवी संस्थाओं ने सहारा दिया। उसकी दो बालिकाएं स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से देहरादून के किसी विद्यालय में पढ़ने लगी । उसकी पत्नी , जो ग्राम सीकू में आंगनबाड़ी में सहायिका के रूप में कार्य कर रही थी, को भी स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से सहारा मिल गया और वह देहरादून में किराए के भवन पर शिफ्ट हो गई। इसी के साथ विनोद सिंह भी कोट बलाबल जम्मू जेल से देहरादून जेल में शिफ्ट हो गया। जहां वह अभी भी अपनी सजा भुगत रहा है।।

2-3 साल पहले विनोद सिंह पैरोल पर घर आया था और उसने कहीं से मेरा मोबाइल नंबर लिया होगा तो मुझे कॉल किया कि शैली तू एसडीएम बन गया है । मेरी मदद कर। लेकिन शायद वह मेरी मजबूरी नहीं जान सकता है कि मेरी सीमा क्या है और उसका अपराध एवं सजा क्या है? मैं क्या कर सकता हूं और क्या नहीं। मैं जानता हूं कि मैं उसको छुड़ा तो नहीं सकता हूं लेकिन उससे मिलने जरूर जा सकता हूं । यही मेरे हाथ में है।

फोन पर विनोद सिंह ने मुझे यह भी बताया कि जब तेरा सिलेक्शन हुआ और तुमने पीसीएस परीक्षा में टॉप किया तो प्रतियोगिता दर्पण और अन्य माध्यमों से उसको जम्मू जेल में यह खबर मिल गई थी। तब उसने मेरे बारे में अपने साथी कैदियों के साथ उस पत्रिका या अखबार को लेकर खूब चर्चा की थी । वह कह रहा था कि मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरा साथी आगे बढ़ गया है। इन बातों को सुनकर वह काफी भावुक हो गया था और मैं भी। भले ही वह एक फौजी की तरह अपने गम को छुपा रहा था लेकिन उसकी बातों में उसको हो रहे पछतावे को भी मैं साफ-साफ महसूस कर रहा था। नियति के आगे कर भी क्या सकते हैं। समय बलवान है।

भले ही मेरे विद्यालय का हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम लगभग 6.7% के लगभग रहा हो किंतु मेरे साथ उत्तीर्ण हुए छात्र विनोद सिंह की कहानी हमेशा के लिए यादगार बन गई। उसकी कहानी अभी भी गूगल में सर्च करने पर मिल जाती है।

अपनी बिटिया का हाईस्कूल परीक्षा परिणाम देखकर मुझे अपनी हाईस्कूल उत्तीर्ण करने की कहानी याद आ गई।

शैलेन्द्र सिंह नेगी एस डी एम Doiwala देहरादून

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