हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है। घट स्‍थापना के साथ 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्‍या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा।

ऐसा ही अजूबा 2020 में होने जा रहा है, जब…

भारत की सनातन संस्कृति प्राचीन समय से ही वेद के आधार पर संचालित होती रही है। वेद के अनुसार पंचांगों के आधार पर मनाए जाने वाले सनातनी धर्मावलंबियों के पर्व-त्यौहार में कई बार अजूबे भी होते हैं। ऐसा ही अजूबा 2020 में होने जा रहा है, जब आश्विन का शारदीय नवरात्र एक माह देर से शुरू होगा।

पितृपक्ष और नवरात्र के बीच एक महीने का अंतर…

इस बार पितृपक्ष (श्राद्धपक्ष) समाप्‍त होते ही मलमास (अधिकमास या पुरुषोत्तम मास) शुरू जाएगा जिसके कारण पितृपक्ष और नवरात्र के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। हालांकि आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना कोई नई बात नहीं है लेकिन ऐसा योग 19 वर्ष के बाद हो रहा है। आश्विन मास में मलमास लगने के कारण चार महीने का चातुर्मास इस बार पांच महीने का होगा। कुछ प्रकांड विद्वानों द्वारा कहा जा रहा है कि पितृपक्ष के एक महीना बाद नवरात्र शुरू होने का योग बन रहा है लेकिन यह पूरी तरह से गलत है।

2001 में भी आश्विन में मलमास लगने के कारण…

शताब्दी पंचांग गवाह है कि 2001 में भी आश्विन में मलमास लगने के कारण पितृपक्ष के एक महीने बाद नवरात्र शुरू हुआ था। उन्होंने बताया कि मिथिला, बनारसी एवं शताब्दी पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह में अधिकमास होगा, यानी दो आश्विन मास होंगे। शुद्ध आश्विन माह का प्रथम पक्ष यानी कृष्ण पक्ष तीन से 17 सितम्बर तथा द्वितीय पक्ष यानी शुक्ल पक्ष 17 से 31 अक्टूबर तक होगा। बीच में 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर तक अशुद्ध आश्विन माह यानी मलमास रहेगा। भादो माह की पूर्णिमा तिथि दो सितम्बर को अगस्त मुनि को तर्पण करने के बाद तीन सितम्बर से पितृपक्ष शुरू हो जाएगा तथा पिता पक्ष की मृत्यु तिथि के दिन पिंडदान और तर्पण के साथ क्रमशः यह अमावस्या को समाप्त होगी।

 17 सितम्बर को पितृपक्ष समाप्त…

जिन्हें पिता की मृत्यु की हिन्दी तिथि नहीं मालूम है, वह नवमी तिथि को पिंडदान एवं तर्पण करेंगे। 17 सितम्बर को पितृपक्ष समाप्त होने के बाद एक माह तक मलमास रहेगा तथा मलमास समाप्ति के बाद 17 अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र शुरू हो जाएगी। जिसमें 22 अक्टूबर को बिल्व आमंत्रण, 23 अक्टूबर को निशा पूजा, 24 अक्टूबर को अष्टमी व्रत तथा 25 अक्टूबर को नवमी के दिन हवन, कन्या पूजन और बलिदान तथा 26 अक्टूबर को दशहरा, विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजा और जयंती धारण कर कलश एवं भगवती दुर्गा का विसर्जन हो जाएगा।

एक सूर्य वर्ष 365 दिन छह घंटे का होता है जबकि…

इस वर्ष मां दुर्गा घोड़ा पर आ रही हैंं, जिसमें क्षत्र भंग का योग है जबकि भैंस पर होने वाली विदाई शोक और संताप कारक हो सकता है। दशहरा के बाद 25 नवम्बर को देवोत्थान एकादशी के साथ ही चातुर्मास का समापन हो जाएगा जिसके बाद विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश समेत सभी मांगलिक कार्य सुचारू रूप से शुरू हो जाएंगे। पंडित जी के अनुसार एक सूर्य वर्ष 365 दिन छह घंटे का होता है जबकि चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच के अंतर से हर तीन वर्ष में एक माह अतिरिक्त होने से उसे अधिकमास या मलमास कहा गया है। ‍इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं तथा सूर्य संक्रांति नहीं होने के कारण मलिन और अशुद्ध माना जाता है।

 

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