मनमीत रावत की खोजपरक रिपोर्ट

हिमालयी राज्य उत्तराखंड की टिहरी गढ़वाल रियासत का अपना उल्लेखनीय इतिहास रहा है। लेकिन कई ऐसे दौर भी आये जब इस रियासत ने तमाम उतार चढ़ाव देखे। मसलन, गोरखाओं का हमला और 14 साल तक आतंकित करने वाला जनसंहार। लेकिन एक ऐसा दौर भी आया जब टिहरी पर एक अंग्रेज अधिकारी का पांच साल तक राज रहा। ये अंग्रेज अधिकारी आज भी टिहरी रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी प्रतापनगर महल से कुछ कदम की दूरी पर देवदार और बांज के जंगलों के बीच दफन है। टिहरी पर राज करते हुये ये अंग्रेज अधिकारी एक ऐसी बीमारी की चपेट में आ गया, जिससे उस वक्त टिहरी गढ़वाल के हजारों लोगों की मौत हुई।

घटना 25 अप्रैल 1913 से शुरू होती है। जब टिहरी रियासत के राजा कृति शाह की मौत हुई। उस समय कृति शाह का सबसे बड़े बेटे नरेंद्र शाह की उम्र महज 15 साल की थी। उस वक्त तक परंपरा थी कि नाबालिग को राजगददी पर नहीं बैठाया जाता था। ऐसा ही कृति शाह के पिता राजा प्रताप शाह के स्वर्गवास के दौरान भी हुआ था। प्रताप शाह की मौत तब हुई जब कृति शाह की उम्र महज 13 साल की थी। लिहाजा, परंपरा के अनुसार और अंग्रेजों के ऐसे मामलों में विशेष हस्तक्षेप के कारण उनकी मां और राजा प्रताप शाह की धर्मपत्नि राजमाता गुलेरिया ने राजा के चाचा विक्रम सिंह को राजकाज सम्भालने को दिया, लेकिन प्रजा के असंतोष के कारण राजमाता ने शासन की बागडोर स्वंय अपने हाथों में ले ली। उस समय अंग्रेजों के तरफ से टिहरी में पोलिटिकल एजेंट मिस्टर रासैं थे।

कई सालों बाद इतिहास ने खुद को दोहराया और ऐसी ही स्थिति कतिशाह की मौत के बाद उनकी धर्मपत्नि राजमाता नेपालिया के सामने भी आई। जैसा की पहले बताया जा चुका है कि कृति शाह का सबसे बड़ा बेटा नरेंद्र शाह की उम्र 15 साल थी और वो पढ़ाई के लिये रियासत से बाहर थे। ऐसे में, अंग्रेजों ने एक संरक्षण समिति का गठन किया। जिसकी अध्यक्ष राजमाता नेपालिया रही। संरक्षण समिति में अध्यक्ष के अलावा रियासत के प्रतिष्ठित लोग हुआ करते थे। इसके अलावा समिति में एक सदस्य अंग्रेज अधिकारी जो की आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) हुआ करता था। सचिव थे दीवान भवानी दत्त उनियाल। रियासत की मानेटरिंग अंग्रेज कुमाउं कमिश्नर करते थे, जो सीनियर आईसीएस अधिकारी हुआ करते थे। ये सभी घटना प्रतापनगर महल में ही हो रही थी। उस वक्त प्रतापनगर में पूरी राजधानी मई से अक्टूबर तक चलती थी और उसके बाद राजधानी टिहरी नगर आ जाया करती थी। नरेंद्र शाह का जन्म भी प्रतापनगर के महल में ही हुआ है।

अब हुआ ये कि संरक्षण समिति की अध्यक्ष राजमाता नेपोलिया बीमार पड़ गई। जिसके बाद कुमाउं कमिश्नर ने कलेक्टर मि एफ सी सेमियर को टिहरी रियासत संरक्षण समिति का अध्यक्ष घोषित किया और उन्हें टिहरी भेजा। इस घटना का प्रयाप्त उल्लेख प्रसिद्ध इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल की किताब में मौजूद है। वरिष्ठ पत्रकार महिपाल सिंह नेगी बताते हैं कि सेमियर इंग्लैंड के ठंडे इलाके का था तो वो शासन 2200 मीटर की उंचाई में बसे प्रतापनगर महल से चलाने लगा। अक्टूबर 1916 में जब राजधानी प्रतापनगर से अगले छह महीनों के लिये टिहरी नगर ले जाने की तैयारी चल रही थी। तब रियासत में हैजा की बीमारी फैल गई। हजारों लोग मरे। इसी दौरान एफसी सेमियर भी इसकी चपेट में आ गया। मरने से पहले उसने अपनी अंतिम इच्छा जाहिर की कि उसे प्रतापनगर में जंगलों के बीच में ही दफन किया जाये। ऐसा किया भी गया और उसकी एक सुंदर कब्र राजमहल से अब के तहसील के बीच बनी सड़क के समीप बनाई गई। कब्र के सामने हिमालय पर्वत श्रंखला साफ दिखती है। वक्त के साथ कब्र की टाइल्स और पत्थर लोगों ने अंधविश्वास के कारण उठाना शुरू कर दिया। अब उस कब्र को तलाशना काफी मुश्किल भरा काम हो गया है। कब्र के बगल में ही एक घर भी बन गया है। जहां पर एक बुजुर्ग महिला ने हमें बताया कि हम उस ओर न तो कुछ फैंकते हैं और न ही कुछ साग सब्जी उगाते है।

सेमियर टिहरी रियासत में काफी लोकप्रिय भी रहा। उसने टिहरी में थोकदारों का वर्चस्व लगभग समाप्त कर दिया। टैक्स कुछ कम किये। आम लोगों से किसी सामंति की तरह मिलने के बजाये आम इंसान की तरह मिलता। उसके नाम पर टिहरी में सेमियर डामेटिक क्लब की भी स्थापना हुई। सेमियर की मौत के बाद राजगददी नरेंद्र शाह को मिली।

Note
फ़ोटो में जो सफेद और लाल रंग के निशान है। वो कब्र है। तीसरी फ़ोटो प्रतापनगर का महल है। जो टिहरी रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी का महल था।

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