सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर जनपद पौड़ी के कफोलस्यूं पट्टी के ग्राम अणेथ में पूर्व नयार के तट पर स्थित हैं। मां ज्वाल्पा का यह धाम भक्तों और श्रद्धालुओं के वर्षभर खुला रहता है। धाम में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में पूजा-अर्चना का विशेष विधि-विधान है।

इतिहास

सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर की स्थापना वर्ष 1892 में हुई। मंदिर की स्थापना स्व. दत्तराम अण्थवाल और उनके पुत्र बूथा राम अण्थवाल ने की। मंदिर में माता अखंड जोत के रूप में गर्भ गृह में विराजमान है। मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है। मां के धाम के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, मां काली मंदिर भी स्थित हैं। केदार खंड के मानस खंड में कहा गया है कि इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सुची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी। सूची के तप से मां ने खुश होकर ज्वाला के रूप में उन्हें दर्शन दिए। तब से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रूप में भक्तों और श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण करती है।

यह भी मान्यता है कि सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर स्थल को पुरातन काल में अमकोटी नामक स्थान के रूप में जाना जाता था, जो कफोलस्यूं, खातस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाड़स्यूं, घुड़दौड़स्यूं, गुराड़स्यूं पट्टियों के विभिन्न गांवों के ग्रामीणों के रुकने (विसोणी) का स्थान था। एक दिन इस स्थान पर एक कफोला बिष्ट ने अपना सामान (नमक से भरे कट्टे) इस स्थान पर रखा, जिसे वह आराम करने के बाद दोबारा नहीं उठा पाया। कट्टा खोलने पर उसने देखा कि उसमें मां की मूर्ति थी, जिसके बाद वह मूर्ति को उसी स्थल पर छोड़कर चला गया। जिसके बाद एक दिन अणेथ गांव के दत्त राम के सपने में मां ज्वाल्पा ने दर्शन देकर मंदिर बनाए जाने को कहा।

ऐसे पहुंचें मंदिर

सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे प्रचलित मार्ग है। ज्वाल्पा देवी मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 30 किमी और कोटद्वार से लगभग 72 किमी दूरी पर कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, जहां कोटद्वार-सतपुली-पाटीसैण और श्रीनगर-पौड़ी-परसुंडाखाल होते हुए पहुंचा जा सकता है। राजमार्ग से मात्र 200 मीटर नीचे उतरकर मां का दिव्य धाम है।

ज्वाल्पा धाम मंदिर के संरक्षक पं. राजेंद्र अण्थवाल ने बताया कि मां के दर्शन मात्र से ही तमाम मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। दूरदराज के लोगों की भी मां में बड़ी आस्था है व श्रद्धालु नवरात्रों पर मां के दर्शन पाकर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं।

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