देहरादून: देवस्थानम बोर्ड को लेकर लगातार पंडा समाज का विरोध झेल रही सरकार ने साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर देवस्थानम बोर्ड को भंग नहीं किया जाएगा बोर्ड के एक्ट में लिखी गई अगर किसी धारा से पंडा समाज को आपत्ति है, तो उसका निस्तारण किया जाएगा। आपत्तियां दर्ज करने के लिए सरकार की ओर से बनाई गई उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष मनोहरकांत ध्यानी ने प्रेस वार्ता कर यह जानकारी दी है।

मनोहरकांत ध्यानी ने साफ कहा कि देवस्थानम बोर्ड के एक्ट को किसी ने भी सही तरीके से नहीं पढ़ा है। इसलिए कुछ राजनीतिज्ञों के इशारे पर पंडा समाज विरोध कर रहा है। एक्ट में किसी भी हकहकूक धारी का हक छीनने का जिक्र नहीं है। देवस्थानम बोर्ड यात्रियों की सुविधा के लिए बनाया गया है. उन्होंने बताया कि विरोध करने वाली समितियों को आपत्तियां दर्ज करने के लिए बुलाया है. जल्द ही वह आपत्तियां लेकर उनका निस्तारण करेंगे और अपनी रिपोर्ट सरकार को देंगे।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि आप कोई घर बनाते हैं और उसमें कुछ कमियां होती हैं, तो उसे सुधारने की कोशिश की जाती है न कि घर को तोड़कर जमींदोज कर दिया जाता है। उसी तरह देवस्थानम बोर्ड के एक्ट की किसी धारा में यदि पंडा समाज को आपत्ति है, तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा कर उसका निस्तारण सरकार से कराएं। यह तो समझने वाली बात है। मगर बोर्ड को ही भंग करने की मांग जायज नहीं है।

उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया। बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं। बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों के विरोध को दरकिनार करते हुए चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लागू किया था।

हर साल धामों में करोड़ों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है। ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब-किताब रखा जाएगा। यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी। इसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं।

चारधाम और उनके आसपास के 51 मंदिरों में अवस्थापना सुविधाओं का विकास, समुचित यात्रा संचालन एवं प्रबंधन के लिए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन अधिनियम को राजभवन की मंजूरी मिलने के बाद चारधाम देवस्थानम् बोर्ड अस्तित्व में आ गया है. मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया। मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को CEO की जिम्मेदारी दी गई। इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है।
क्यों शुरू हुई बोर्ड बनाने की कवायद: बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की अपनी एक अलग ही मान्यता है. यही वजह है कि हर साल इन दोनों धामों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। यह दोनों ही धाम पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद हैं, जहां सुख सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जैसी चुनौती है। क्योंकि पहले से ही बदरी और केदार धाम के लिए मौजूद बीकेटीसी के माध्यम से तमाम व्यवस्थाएं मुकम्मल नहीं हो पा रही थीं. इसके अतिरिक्त गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रही थीं।
बोर्ड करेगा धामों की संपत्तियों का रखरखाव: उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं। हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है. बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी।

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