देहरादून: किसी भी तरह का गैरकानूनी कार्य करने वाले अपराधियों के गुप्त संगठनों के खिलाफ उत्तराखण्ड की धामी सरकार आक्रामक नजर आ रही है। हर तरह के माफिया पर या तो शिकंजा कस लिया गया है या फिर उसका एक्शन प्लान तैयार कर लिया गया है। नकल माफिया, खनन माफिया, भूमाफिया हों या ड्रग माफिया सभी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कड़क रवैये से हलकान हैं। मिशन मोड में माफिया के नेटवर्क को तोड़कर उसे कमजोर किया जा रहा है। संगठित अपराध करने वाले गिरोह पर नकेल कसने की खुली छूट पुलिस प्रशासन को दी गई है। इस अभियान की मॉनीटरिंग मुख्यमंत्री खुद कर रहे हैं। यह पहला मौका है जब उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद हर उस संगठित गिरोह के नेटवर्क को खत्म किया जा रहा है जो आम लोगों के हिलों पर डाका डाल रहा है। निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री धामी के ये फैसले भविष्य में नजीर बनेंगे। –

ड्रग्स माफिया पर ‘एएनटीएफ’ और ‘एनकॉर्ड’ कसेगी नकेल

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी युवाओं में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति को लेकर खासे चिंतित हैं। वे अक्सर ड्रग माफिया के बढ़ते प्रभाव पर नाराजगी जताते रहें हैं। अब उन्होंने ड्रग माफिया के खिलाफ कार्रवाई के लिए स्पेशल टास्क फोर्स के गठन को मंजूरी दी है। टास्क फोर्स राज्य, जिला और थाना स्तर पर गठित होगी। राज्य में इसके हेड प्रदेश स्तर पर एडीजी अपराध एवं कानून व्यवस्था होंगे, जबकि एसएसपी एसटीएफ नोडल अफसर होंगे। जिला स्तर पर एनटीएफ चीफ एसपी क्राइम या सीओ ऑपरेशन होंगे। जिलों में पुलिस कप्तान के पर्यवेक्षण में काम करेगी। थाना स्तर पर थाना प्रभारी नोडल अधिकारी होंगे। इस टास्क फोर्स के लिए पुलिस से कर्मियों का चयन किया जाएगा। एएनटीएफ कई स्तरों पर एनसीबी की बैठकों एनडीपीएस एक्ट के आंकड़ों को इकट्ठा करेगी। इसी क्रम में पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने त्रिस्तरीय टास्क फोर्स का गठन कर दिया है। एंटी नार्कोटिक्स टास्क फोर्स (एएनटीएफ) दोनों (गढ़वाल और कुमाऊं) रेंज में काम करेगी। नार्को कॉर्डिनेशन सेंटर (एनकॉर्ड) इन दोनों यूनिट की निगरानी करेगी। एएनटीएफ ड्रग्स तस्करों पर कार्रवाई के साथ संपत्तियां भी जब्त कर सकेगी। दोनों टास्क फोर्स कई स्तरों पर जागरूकता अभियान और नशे के जाल में फंसे लोगों को निकालने का भी काम करेगी। इससे नशा तस्करों पर प्रभावी कार्रवाई करने में मदद मिलेगी। सभी जिलों में नशामुक्ति केंद्रों के प्रतिनिधियों से समन्वय बनाकर इनकी नियमित चेकिंग भी टास्क फोर्स करेगी। एनटीएफ पुराने सभी अपराधियों और ड्रग्स तस्करों का आपराधिक इतिहास तैयार करेगी। यदि जरूरत होगी तो पाबंद भी करने का काम फोर्स के जिम्मे होगा। केंद्र और राज्य स्तरीय अन्य विभागों और नशा मुक्ति केंद्रों से समन्वय स्थापित कर मादक पदार्थों की रोकथाम करना ही इस टास्क फोर्स का सबसे अहम काम होगा। एनकॉर्ड सचिवालय की तरह काम करेगा। इसका सेंटर एसटीएफ कार्यालय में होगा। यह कई स्तरों पर लिए गए निर्णयों की समीक्षा करेगा। इसके अलावा पारदर्शिता बनाने के लिए एएनटीएफ में नियुक्त कर्मचारियों पर भी नजर रखेगा। यदि उनकी अपराधियों के साथ संलिप्तता पाई जाती है, तो कार्रवाई की जाएगी। हर माह पुलिस महानिदेशक एएनटीएफ और एनकॉर्ड के कार्यों की समीक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री धामी का मानना है कि वर्तमान में नशा तस्करी करने वालों ने शिक्षण संस्थानों को मकड़जाल में फंसाया हुआ है। ऐसे में जरूरी है कि इस जाल को तोड़ा जाए। इसके लिए शिक्षण संस्थानों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे। इसके अलावा इन संस्थानों के पास इंटेलीजेंस को भी सक्रिय किया जाएगा, ताकि जो लोग इन्हें टार्गेट बनाते हैं, उन तक आसानी से पहुंचा जा सके।

खनन माफिया की उड़ी ‘नींद’

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माफिया के खिलाफ एक और ऐसा काम कर दिखाया है जो अभी तक उत्तराखण्ड का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं कर पाया। धामी ने बाहरी राज्यों से उपखनिजों के आयात पर रोक लगाकर खनन माफिया को जोर का झटका दिया है। ये खनन माफिया हमारे राज्य के नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के हैं। धामी सरकार के इस कदम से उत्तराखण्ड को सालाना लगभग 40 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होने से बचने की उम्मीद है। सरकार के इस आदेश पर सख्ती से अमल हुआ तो यमुना जैसी नदियां उत्तराखण्ड राज्य के लिए ‘पैसों का पेड़’ साबित होंगी। धामी सरकार की इस कारवाई से खनन माफिया की नींद उड़ी हुई है।

हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के खनन माफिया वर्षों से उत्तराखण्ड की खनन सामग्री पर सरेआम लूट रहे हैं। पिछले एक दशक से पछवादून क्षेत्र में यमुना नदी पर इन खनन माफिया का कब्जा बरकरार है। स्थिति यह है कि उत्तराखण्ड की सीमा में यमुना के किनारे उपखनिज का भण्डार है लेकिन हिमाचल के खनन माफिया इसे लूटकर ले जाते हैं और हरियाणा के खनन कारोबारियों के नाम पर काटी गई फर्जी रसीदों के जरिए यह माल बेचने के लिए फिर से उत्तराखण्ड में लाया जाता है। इस काले कारोबार में उत्तराखण्ड के सम्बंधित महकमों के कुछ अफसर और सफेदपोश भी शामिल हैं। सिर्फ पछवादून क्षेत्र की ही बात करें तो टैक्स चोरी के इस धंधे से हमारे राज्य को सालाना 40 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगता आया है।
यमुना को गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी माना जाता है। यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना नदी देहरादून जिले के पछवादून क्षेत्र के लगभग 15 किलोमीटर हिस्से से होकर गुजरती है। यहां नदी के बायें छोर पर उत्तराखण्ड और दांये में हिमाचल प्रदेश की सीमा स्थित है। पहाड़ी इलाके से निकली यमुना जब इस क्षेत्र में पहुंचती है तो अपने दोनों तटों में उपखनिजों का भण्डार भर देती है। खराब पॉलिसी के कारण अब तक उत्तराखण्ड सरकार इस प्राकृतिक संसाधन को समुचित दोहन नहीं कर पाई है। जबकि हिमाचल प्रदेश के खनन माफिया इस पर अपना एकाधिकार जमाए हुए है। हिमाचल प्रदेश की सीमा खोदरी से बहराड़ गांव तक यमुना नदी से सटी हुई है जबकि इसी हिस्से के दूसरे छोर पर डाकपत्थर से धौलातप्पड़ तक उत्तराखण्ड की सीमा स्थित है। पिछले 10 वर्षों में हिमाचल प्रदेश ने निजी पट्टों पर लाइसेंस जारी कर यमुना के किनारे 22 स्टोन क्रशर स्थापित करवाए हैं जबकि उत्तराखण्ड की सीमा में हमारी सरकार ने एक भी स्टोक क्रशर की अनुमति नहीं दी है। इतना ही नहीं वर्ष 2009 से उत्तराखण्ड की सीमा में यमुना पर खनन पट्टे के लाइसेंस जारी नहीं किए गए और न ही खनन लॉट नीलाम किए गए। जबकि दूसरे छोर पर पर्याप्त उपखनिज न होने के बावजूद 22 स्टोन क्रशर संचालित हो रहे हैं। हो यह रहा है कि नदी में पानी कम होने के कारण हिमाचल के खनन माफिया उत्तराखण्ड की सीमा में प्रवेश कर उपखनिज की लूट कर रहे हैं। हमारी सीमा से रॉ मटीरियल ले जाकर स्टोन क्रशर में रोड़ी, गिट्टी और डस्ट तैयार की जा रही हैं। चूंकि इन स्टोन क्रशर संचालकों के पास अपनी वैध खनन सामग्री नहीं है लिहाजा वे हरियाणा के खनन कारोबारियों के फर्म की रसीद बुक इस व्यवसाय में इस्तेमाल कर रहे हैं। जिनके जरिये ये माल उत्तराखण्ड पहुंचाया जा रहा है। ये रसीद बुक भी फर्जी बताई जा रही हैं।
बस यहीं से उत्तराखण्ड के राजस्व का चूना लगाने का खेल शुरू हो जाता है। हिमाचल प्रदेश से कुल्हाल बैरियर होते हुए उपखनिज से लदे ट्रक देहरादून लाये जाते हैं। ट्रक निर्धारित भार क्षमता और जीएसटी कटी रसीद के साथ उत्तराखण्ड में प्रवेश करें और उसका अभिगमन शुल्क जमा करें इस पर निगरानी के लिए कुल्हाल में वन विभाग और पुलिस चौकी का बैरियर लगाया गया है। लेकिन होता यह है कि इस बैरियर व चौकी पर तैनात कार्मिक ओवरलोडेड ट्रकों (डम्फर) को फर्जी दस्तावेजों के साथ उत्तराखण्ड में प्रवेश करने देते हैं। प्रत्येक वाहन से सिर्फ निर्धारित भार क्षमता पर ही अभिगमन शुल्क लिया जाता है जबकि वास्तव में वे ओवरलोडेड होते हैं। यहां पर जीएसटी कटी वैध रसीदों की अनदेखी और पर्याप्त अभिगमन शुल्क न वसूले जाने के कारण उत्तराखण्ड सरकार को राजस्व की भारी क्षति हो जाती है।
एक अनुमान के मुताबिक कुल्हाल के रास्ते प्रतिदिन उपखनिज से लदे 600 डम्फर उत्तराखण्ड की सीमा में प्रवेश करते हैं। इनकी अनाधिकृत एंट्री से रोजाना लगभग 12 लाख रुपये की चपत उत्तराखण्ड को लगती है जो साल का 40 करोड़ से ऊपर बैठता है। जानकारों का मानना है कि यदि उत्तराखण्ड सरकार पूर्व की भांति यमुना तटों पर खनन लॉट खोल दे और उनकी नीलामी करे तो उपखनिजों की यह लूट काफी हद तक बंद हो जाएगी। स्टोन क्रशर का लाइसेंस देने से हमारे राज्य में लोगों को उपखनिज सस्ते दामों पर उपलब्ध होगा और साथ ही प्रदेश के राजस्व में खासी बढ़ोत्तरी होगी। सूत्रों की मानें तो उत्तराखण्ड में खनन पट्टों की नीलामी न होने देने के पीछे भी हिमाचल के खनन माफिया का ही हाथ है। कुछ नौकरशाहों और सफेदपोशों से मिलकर पिछले एक दशक से वह यह खेल खेल रहा है। पछवादून क्षेत्र ही क्या, हिमाचल का माफिया पूरे देहरादून में स्टोन क्रशर नहीं लगने देता। यह बात दावे के साथ इसलिए कही जा सकती है कि अभी तक देहरादून जनपद में एक भी स्टोन क्रशर नहीं लगा है। अपने पिछले कार्यकाल में धामी सरकार ने स्टोन क्रशर के कुछ लाइसेंस जारी किए लेकिन हिमाचल के माफिया के इशारे पर कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इस मामले को उलझा दिया गया। अब जबकि धामी सरकार को यह खेल समझ में आया है तो मुख्यमंत्री के निर्देश पर बाहरी राज्यों से उत्तराखण्ड में उपखनिज के आयात पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए बाकायदा तेजतर्रार अधिकारियों की एक कमेटी भी बनाई गई है। बीते 4 अप्रैल को जारी इस आदेश के बाद कुल्हाल बॉर्डर पर अब तक सैकड़ों डम्फरों को सीज कर दिया गया है। इसके अलावा कई अन्य ओवर लोडेड डम्फरों से करोड़ों रूपए अर्थदण्ड के रूप में वसूले जा चुके हैं। ये कार्रवाई बदस्तूर जारी है।

भूमाफिया का बन रहा ‘डाटाबेस’, खुलेगी ‘हिस्ट्रीशीट’

धामी सरकार भूमाफिया पर शिकंजा कसने की ठोस योजना बना चुकी है। यहां भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। गृह विभाग ने पुलिस से उत्तर प्रदेश की व्यवस्था को देखते हुए ड्राफ्ट मांगा है। फोर्स गठित होने के बाद भूमाफिया के नाम घोषित होने के साथ-साथ उनकी अवैध संपत्ति को भी जब्त और नष्ट किया जा सकेगा।
उत्तराखंड में अभी तक भूमाफिया पर शिकंजा कसने की व्यवस्था नहीं है। यहां भूमि पर कब्जे, धोखाधड़ी आदि के मुकदमे दर्ज होते हैं, लेकिन आरोपियों की संपत्ति को न तो जब्त किया जाता है और न ही नष्ट। हाल ही में यशपाल तोमर गिरोह के कारनामे सामने आने के बाद यहां भी इसकी जरूरत महसूस हुई। बीते दिनों एसटीएफ ने यशपाल तोमर नाम के गैंगस्टर को हरिद्वार से गिरफ्तार किया था। उसके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे। जांच में पता चला कि उसने अवैध रूप से करोड़ों की संपत्ति अर्जित की है। उसकी 153 करोड़ की संपत्ति को कुर्क भी किया गया था। वर्तमान में उसे राज्य स्तर का भूमाफिया घोषित करने की तैयारी चल रही है।
अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शासन को निर्देशित किया है कि भूमाफिया पर अंकुश लगाने को कोई ठोस कार्ययोजना तैयार करें। इसी कड़ी में गृह विभाग ने उत्तर प्रदेश एंटी भूमाफिया टॉस्क फोर्स की तरह ड्राफ्ट तैयार करने को कहा है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर पुलिस भी भूमाफिया को लेकर एक्टिव हो गई है। इधर, पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने सरकारी, निजी भूमि व भवनों पर अवैध कब्जा करने वाले भू-माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश पुलिस कप्तानों को दिए हैं। पुलिस ऐसे भूमाफियाओं को चिन्हित कर उनके विरूद्ध मुकदमा दर्ज करते हुए गुण्डा एक्ट के अन्तर्गत जिला बदर करने और गैंगेस्टर एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही करते हुए अवैध रूप से अर्जित की गयी सम्पत्ति का अधिग्रहण करने की कार्रर्वाई करेगी। इतना ही नहीं इनकी हिस्ट्रीसीट खोले जाने एवं इनके लाईसेन्सी शस्त्रों को भी निरस्त करने के निर्देश समस्त जनपद प्रभारियों को दिए गए हैं। चिन्हित भू-माफियाओं का थाना, जनपद तथा परिक्षेत्र स्तर पर रजिस्टर (डेटाबेस) तैयार किया जाएगा। जनपदीय प्रभारी उन पर सख्त कार्रवाई करेंगे और हर महीने इसकी सूचना पुलिस मुख्यालय को उपलब्ध कराएंगे। ऐसे भू-माफियाओं के विरूद्ध निजी सम्पत्ति के सम्बन्ध में जनता की शिकायत पर तत्काल मुकदमा दर्ज करने तथा सरकारी एवं लावारिस भूमि, नदी, सार्वजनिक सड़क आदि के सम्बन्ध में सम्बन्धित विभाग को सूचित किया जाएगा। इन मामलों में जनपद के पुलिस प्रभारी जिला मजिस्ट्रेट से समन्वय स्थापित कर तत्काल प्रथम सूचना दर्ज कराकर सख्त कार्रवाई करेंगे।

नकल माफिया का ‘नेटवर्क’ ध्वस्त –

पुष्कर राज में उत्तराखण्ड में तमाम तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। पारदर्शी सरकार और सुशासन के साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जोर भ्रष्टाचार और भयमुक्त महौल बनाने पर भी है। इसके लिए सबसे बड़ा वार नकल माफिया पर किया गया है। उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाओं में नकल माफिया का सीधा कब्जा बना हुआ था। नौकरियां बेची जा रही थीं। पैसे वाले नौकरी खरीद रहे थे। होनहार गरीब बच्चों का अधिकार छीना जा रहा था। राजनेताओं, नौकरशाहों और माफिया के गठजोड़ से ये खेल पिछले एक दशक से खेला जा रहा था। धामी की सख्ती से इस नापाक गठबंधन को खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही है। अब तक गिरोह के 34 सदस्य सलाखों के पीछे जा चुके हैं। आयोग के सचिव को भी सस्पेंड किया जा चुका है। इसी तरह विधानसभा में पूर्व अध्यक्षों ने अपने अपनों को नौकरी की जो रेवड़ी बांटी है उन पर भी उच्चस्तरीय जांच बैठा दी गई है। जांच की आंच सत्ता पक्ष और विपक्ष से जुड़े हर दोषी पर आनी तय मानी जा रही है।
अगर पुष्कर सिंह धामी इन तमाम फैसलों को धरातल पर उतार गए तो निश्चित रूप से भाजपा हाईकमान की नजर में वह भविष्य के नेता बन जाएंगे
दीपक फर्स्वाण की कलम से

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