अरविंद शेखर की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

  • अफसोसनाक बात यह कि बीते दो सालों में उत्तराखंड में हिरासत में 74 मौतें
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक 2020-21 में 47‚ 2021-22 में 27 मौतें

केदार भंड़ारी की कथित रूप से हिरासत से भाग जाने या हिरासत में ही मौत की घटना पुरानी नहीं पड़़ी है‚ आलम यह है कि उत्तराखंड में उग्रवाद या आतंकी घटनाएं न होने के बावजूद हिरासत में मौते कम नहीं हो रहीं। औसतन उत्तराखंड में हर महीने तीन से ज्यादा तक मौते हो रही हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020-21 में उत्तराखंड़ में हिरासत में 47 मौते हुईं। जबकि 2021-22 में 27 मौतें हुईं। इस तरह बीते दो साल में प्रदेश में हिरासत में 74 मौतें हुई हैं। 2019-20 के आंकड़े़ संभवतः कोरोना काल की वजह से सामने नहीं आए लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स (एसीएचआर) के अप्रैल 2017से लेकर फरवरी 2018 तक के अध्ययन ‘ टॉर्चर अपडेट इंडिया’ -2018 में यह बात सामने आई थी कि 2018 में सालभर में उत्तराखंड़ में 17 मौते हुई थीं। तब देश में 1674 हिरासत में मौते हुई जिनमें 1530 न्यायिक हिरासत में जबकि 144 पुलिस हिरासत में हुई। रिपोर्ट के मुताबिक यह संख्या 2001 से 2010 के बीच हिरासत में हुई मौतें से कहीं अधिक है।

यूएन कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर–यूएनकैट हो लागू

एसीएचआर के मुताबिक भारत को संयुक्त राष्ट्र के यातना के विरुद्ध समझौते (यूएन कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर–यूएनकैट)को लागू करना चाहिए जिस पर देश ने 1997 में हस्ताक्षर हुए थे। एसीएचआर का कहना है कि केंद्र सरकार को विधि आयोग द्वारा बनाए गए यातना निरोध विधेयक –2017 को भी संसद में पेश करना चाहिए। एसीएचआर के मुताबिक भारत के पड़ोसी बांग्लादेश‚ नेपाल‚ श्रीलंका ने भी अपने यहां यूएन कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर को लागू किया है और अपने कानून बनाए हैं। अगर भारत इसे देश में लागू करता है तो इसका एक फायदा भगोड़े अपराधियों को देश में वापस लाने में भी होगा क्योंकि अक्सर देश किसी अपराधी को भारत भेजने में इसलिए मना करते हैं कि उसे यातना दी जाएगी। १९९५ में पुरुलिया में हथियार गिराने वाले डेनमार्क के किम डेवी के मामले में भी यही हुआ था और क्रिकेट के बुकी संजीव चावला ने भी भारत की जेलों के हालात का हवाला देते हुए ब्रिटेन से अपना प्रत्यर्पण रुकवा लिया था। इसी तरह विजय माल्या ने भी ब्रिटेन से प्रत्यर्पण रोकने को यही तर्क दिया था। अगर भारत यूएन कन्वेंशन अगेंस्ट टर्चर–यूएनकैट को लागू करने की कानूनी दिक्कतें दूर कर दे तो भारत के लिए भगोड़े अपराधियों का प्रत्यार्पण भी आसान हो जाएगा।

उत्तर प्रदेश में बीते दो साल में सबसे ज्यादा 952 मौतें

देहरादून: केंद्रीय गृह मंत्रालय के संसद में पेश आंकड़़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पिछले दो सालों में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। 2020-21 में उत्तर प्रदेश में हिरासत में 451 मौतें दर्ज की गईं‚ जबकि 2021-22 में यह संख्या बढ़कर 501 हो गई। आंकड़ो के अनुसार भारत में हिरासत में होने वाली मौतों की कुल संख्या 2020-21 में 1‚940 से बढ़कर 2021-22 में 2‚544 हो गई है। उत्तर प्रदेश के बाद हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें पश्चिम बंगाल में हुईं। राज्य में 2020–21 में 185 मौतें और 2021–22 में 257 मौतें दर्ज की गईं। आंकड़ों के अनुसार पिछले दो सालों में बिहार में हिरासत में कुल 396‚ मध्य प्रदेश में 365 और महाराष्ट्र में 340 मौतें हुई हैं।

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