देहरादून: सरकार जोशीमठ में हो रहे भूंधसाव से प्रभावित परिवारों को मुआजवा बांटना चाहती है लेकिन इसमें एक “जमीनी” पेंच फंस सकता है। वो पेंच है राज्य में वर्ष 1960 से भूमि बंदोबस्‍त का न होना। जोशीमठ में ऐसे भी परिवार हैं जो दशकों से भूमि पर काबिज हैं, वहां उनके घर हैं, वो खेतीबाड़ी भी करते हैं, उनके बाग बगीचे हैं लेकिन सरकारी दस्तावेजों में भूमि उनके नाम पर दर्ज नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्हेंं अपनी भूमि पर स्वामित्व का दावा साबित करना मुश्किल होगा और वह मुआवजे के अधिकार से वंचित रह सकते हैं।

उत्तराखण्ड के क्षेत्रफल का कुल 71 फीसदी हिस्सा वन भूमि श्रेणी का है। प्रबंधन के लिहाज से यह भूमि 70.46% वन विभाग, 13.76% राजस्व विभाग, 15.32% वनपंचायत व शेष अन्य संस्थाओं के अधीन है। कई परिवार ऐसी भूमि पर दशकों से काबिज हैं पर भूमि उनके नाम के बजाए गोल खाते में दर्ज है। भूमि की स्थिति स्पष्ट करने के लिए भूमि का बंदोबस्त होना पहली जरुरत है लेकिन यह काम बहुत बड़ा है। इसके लिए बड़ी तादात में मैन पॉवर, बजट, समय, प्रबंधन और निगरानी की जरूरत है।

लिहाजा अब तक की सरकारें इस पर हाथ डालने से बचती रही हैं। उत्तराखण्ड में हुए भूमि प्रबंधन के इतिहास पर नजर डालें तो यहां ब्रिटिश काल में 11 और आजादी के बाद सिर्फ एक बार सन 1960 (सम्मिलित उत्तर प्रदेश) में Land Settlement हुआ। 1960 से 1964 के बीच हुए भूमि बंदोबस्त में ही यहां की 90% जमीन भूराजस्व की देनदारी से मुक्त हो पाई थी। तब से अब तक भूमि को नहीं मापा गया। इसका नुकसान जनता ही नहीं सरकार को भी हो रहा है। एक ओर सरकार कई बार विकास परियोजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए भी अपनी पर्याप्त भूमि तलाश नहीं कर पाती। दूसरी ओर, आपदा अथवा अधिग्रहण के वक्त प्रभावित जनता मुआवजा पाने से वंचित रह जाती है। लंबे समय से भूमि बंदोबस्त न होने का सवाल अभी जोशीमठ आपदा की वजह से उठ रहा है। प्रभावित परिवार आशंकित हैं, भयभीत भी हैं कि इस आपदा में कहीं ऐसा न हो वो बेघर न हो जाएं और उन्हें मुआवजे से भी हाथ धोना पड़े। सरकार को चाहिए कि इन परिवारों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए उन्हें भूमि का स्वामी माना जाए। इस जायज मांग को ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ भी पुरजोर तरीके से उठा रही है। हालांकि, मुख्यमंत्री Pushkar Singh Dhami आपदा से प्रभावित परिवारों के प्रति संवेदनशील हैं।

उन्होंने ऐलान किया है कि “भूधंसाव से जो भी परिवार प्रभावित हुए हैं उनको मार्केट दर पर मुआवजा दिया जाएगा। मार्केट की दर हितधारकों के सुझाव लेकर और जनहित में ही तय की जाएगी। मुआवजा निर्धारण में स्थानीय लोगों की आजीविका और अन्य सभी हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा”।
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दीपक फरस्वान की कलम से

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