देहरादून: स्कूली बच्चों की परिवहन सुविधा और सुरक्षा को लेकर परिवहन विभाग की नींद टूट गई है। परिवहन मुख्यालय ने स्कूल बस और वैन चालकों को वाहन का कुशलता और सुरक्षा के साथ संचालन का प्रशिक्षण देने का आदेश दिया है। पहले चरण में देहरादून के स्कूल बस और वैन चालकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण से स्कूली बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा।

सहायक परिवहन आयुक्त सनत कुमार सिंह की ओर से आरटीओ (प्रवर्तन) शैलेश तिवारी को दिए आदेश में बताया गया कि प्रशिक्षण स्कूल के अवकाश के दिन दिया जाए। यह प्रशिक्षण इंस्टीट्यूट आफ ड्राइविंग एंड ट्रेनिंग रिसर्च (आइडीटीआर) झाझरा में दिया जाएगा। सहायक परिवहन आयुक्त ने 30-35 चालकों के समूह बनाकर चरणबद्ध तरीके से प्रशिक्षण देने को कहा है।

बता दें कि, स्कूली वाहनों में सुरक्षा को लेकर वर्ष 2018 में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी। आयोग की रिपोर्ट में जिक्र किया गया था कि उत्तराखंड में 80 प्रतिशत निजी स्कूलों के वाहनों में बच्चों की सुरक्षा को ताक पर रखा जा रहा है। टिप्पणीं की गई थी कि ये स्कूली वाहन न सिर्फ बच्चों की जान संकट में डाल रहे, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लंघन कर रहे हैं। इस रिपोर्ट पर न कभी राज्य सरकार ने गौर किया और न ही परिवहन विभाग या प्रशासन ने। पिछले कुछ समय से देहरादून समेत देश के अन्य शहरों में स्कूली वाहनों से हुई दुर्घटना के दृष्टिगत अब विभाग की नींद टूट गई है।

स्कूली वाहनों में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट की ओर से जो भी दिशा-निर्देश दिए गए हैं, उनका अनुपालन कराने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। चेकिंग अभियान चलाकर नियम तोड़ने वाले वाहनों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है। अब परिवहन मुख्यालय ने स्कूली वाहनों के चालकों को कुशल वाहन संचालन का प्रशिक्षण देने के आदेश दिए हैं।

इसकी समय-सारणी बनाकर जल्द प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जाएगा।

शैलेश तिवारी, आरटीओ प्रवर्तन देहरादून

स्कूली वाहन में पांच से 12 साल तक के बच्चों को एक यात्री पर आधी सवारी माना जाता है। स्कूली वैन में आठ सीट होती हैं। एक सीट चालक की और सात बच्चों की। सात बच्चों का आधा यानी साढ़े तीन बच्चे (यानी चार)। कुल मिलाकर वैन में पांच से 12 साल तक के 11 बच्चे ले जाए जा सकते हैं।इसी तरह बस अगर 34 सीट की है तो उसमें पांच से 12 साल के 50 बच्चे ले जाए सकते हैं।

आटो व विक्रम भी स्कूली बच्चों को ले जा सकते हैं, मगर इनमें दरवाजे होना जरूरी है। खिड़की पर राड या जाली लगानी होती है। साथ ही सीट की तय संख्या का पालन करना अनिवार्य है। जैसे ऑटो में तीन यात्री के बदले पांच से 12 साल के केवल पांच बच्चे सफर कर सकते हैं। वहीं, विक्रम में छह सवारी के बदले उपरोक्त उम्र के कुल नौ बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इस दौरान शर्त यह है कि चालक के बगल में अगली सीट पर कोई नहीं बैठेगा। अगर इन मानकों को आटो-विक्रम पूरा नहीं कर रहे तो यात्रा के दौरान बच्चों के अभिभावकों का साथ होना जरूरी है।

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