बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने ड्रग एंगल लेकर मुकदमा दर्ज किया है। एनसीबी मामले में रिया चक्रवर्ती, शोविक चक्रवर्ती, जया शाह, श्रुति मोदी और पुणे के रहने वाले और गोवा में सक्रिय शख्स गौरव आर्य व अन्य ड्रग डीलरों की कुंडली खंगालेगी। दिल्ली में एनसीबी डायरेक्टर के आदेश पर यह मुकदमा दर्ज हुआ है।

दिल्ली स्थित एनसीबी की ऑपरेशंस यूनिट, मुंबई एनसीबी के साथ मिलकर सुशांत सिंह केस में ड्रग्स एंगल की जांच करेगी। जिन जिन लोगों के नाम ED की FIR में है, उनके खिलाफ एनसीबी ने यह मामला दर्ज किया है, यानी कि रिया, उसके भाई व अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। 20, 22, 27, 28, 69 एनडीपीएस एक्ट में मामला दर्ज किया गया है।

जानते हैं क्या है एनडीपीएस एक्ट…

नशीले पदार्थों के सेवन, बेचने, बनाने को लेकर एक कानून है। इसका नाम है नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985। NDPS इस नाम में दो तरह की दवाएं छुपी हैं- नारकोटिक और साइकोट्रोपिक। इनके बारे में भी आपको बताएंगे मगर पहले एक्ट के बारे में जाने खास बातें इन दवाओं पर कंट्रोल करने वाले कानून को शार्ट में कहते हैं NDPS Act हिंदी में इसका नाम है स्वापक औषधि और मन प्रभावी अधिनियम, 1985। इस कानून को नशीली दवा और मादक पदार्थ अधिनियम 1985 भी कहा जाता है।

बता दें कि संसद ने साल 1985 में इसे पास किया था। यह कानून किसी एक व्यक्ति को मादक दवाओं के निर्माण, उत्पादन, खेती, स्वामित्व, खरीद, भण्डारण, परिवहन या उपभोग करने के लिए प्रतिबंधित करता है। बहुत सारे नशीले पदार्थ ऐसे होते हैं, जिनका उत्पादन जरूरी होता है। लेकिन इन पर कड़ी निगरानी भी रखनी होती है। नहीं तो बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाएगा और लोगों में नशे की लत बढ़ जाएगी। ऐसे में सरकार एनडीपीएस एक्ट के तहत नशीले पदार्थों पर नियंत्रण करती है। इस कानून में अभी तक तीन बार 1988, 2001 और 2014 में बदलाव भी हुए हैं।

 किन-किन दवाओं पर है प्रतिबंध…

NDPS Act के तहत प्रतिबंधित दवाओं की एक लिस्ट जारी होती है। यह लिस्ट केंद्र सरकार जारी करती है। यह लिस्ट समय-समय पर बदलती रहती है। इसके लिए राज्य सरकारें भी सलाह देती हैं या सिफारिश करती हैं।

पहला : नारकोटिक यानी नींद लाने वाले ड्रग्स। नारकोटिक में जो दवाएं या पदार्थ आता है, वह प्राकृतिक होता है। या फिर प्राकृतिक चीजों से बनता है। जैसे- चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन, कोकेन, मॉर्फीन आदि।

दूसरा : साइकोट्रोपिक यानी दिमाग पर असर डालने वाले ड्रग्स। साइकोट्रोपिक में जो दवाएं आती हैं, वो केमिकल बेस्ड होती है। या फिर इन्हें दो-तीन तरह के केमिकल को मिलाकर बनाया जाता है। जैसे- एलएसडी, एमएमडीए, अल्प्राजोलम आदि।

ये नशीले पदार्थ ऐसे होते हैं, जो इंसानी जीवन के लिए संकट खड़ा कर सकते हैं। इनमें वह दवाइयां भी होती हैं, जो जीवनरक्षक होती हैं। लेकिन ज्यादा लेने पर नशा होता है और जान भी जा सकती है। जैसे- अल्प्राजोलम। अक्सर यह दवा नींद न आने की शिकायत करने वाले लोगों को दी जाती है। लेकिन इनका तय सीमा से ज्यादा सेवन जानलेवा होता है। नीचे आप उन दवाओं की लिस्ट देख सकते हैं, जो बैन हैं और एनडीपीएस एक्ट के तहत आती हैं।

एनडीपीएस एक्ट में कार्रवाई कौन करता है?

इस एक्ट के तहत पुलिस भी कार्रवाई कर सकती है। इसके अलावा केंद्र और राज्यों में अलग से नारकोटिक्स विभाग भी बने होते हैं। यह नशीले पदार्थों की तस्करी और इसके अवैध तरीके से इस्तेमाल पर नज़र रखते हैं। नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों में कार्रवाई करने वाली सर्वोच्च जांच संस्था नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो है। यह केंद्रीय एजेंसी है, यानी देश में नशीले पदार्थों का मामला होने पर यह जांच कर सकती है। इसकी स्थापना 17 मार्च, 1986 को हुई थी।

एनडीपीएस एक्ट में किस तरह की सजाएं होती हैं…

एनडीपीएस एक्ट के तहत मुख्य रूप से तीन तरह की सजाएं होती हैं। यह सजाएं प्रतिबंधित पदार्थों की मात्रा के आधार पर होती है। मात्रा के आधार पर तीन तरह की सजाएं होती हैं-

अल्प मात्रा या कम मात्रा। इसमें एक साल की सजा हो सकती है। या फिर 10 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। या फिर एक साल की जेल और 10 हजार रुपये का जुर्माना, दोनों हो सकता है। इस तरह का अपराध जमानती होता है। यानी आसानी से जमानत मिल जाती है। हालांकि बार-बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है। वाणिज्यिक मात्रा (कमर्शियल क्वांटिटी) इसके तहत 10 से 20 साल तक की सजा हो सकती है। और एक से दो लाख रुपये तक जुर्माना शामिल है। इस तरह के अपराध गैर जमानती होते हैं। यानी पकड़े जाने पर जमानत नहीं मिलती।

अल्प मात्रा और वाणिज्यिक मात्रा के बीच की मात्रा होने पर 10 साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। या दोनों हो सकते हैं, ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले पदार्थ और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है।

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