मां देवी की उपासना का पर्व है नवरात्रि। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।

माता दुर्गा,भगवान गणेश,नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति…

नवरात्र के प्रथम दिन स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान गणेश, नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ कलश स्थापन करें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा घर के आंगन से पूर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज रखें। संभव हो, तो नदी की रेत रखें। फिर जौ भी डालें। इसके उपरांत कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें। फिर ‘ॐ भूम्यै नमः’ कहते हुए कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित रेत के ऊपर स्थापित करें।

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नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा…

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री हिमालय पर्वत की पुत्री हैं। पूर्वजन्म में ये राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं। तब इनका नाम सती था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने सभी राजा-महाराजा व देवी देवताओं को निमंत्रण दिया, लेकिन भगवान शिव का औघड़ रूप होने के कारण उन्हें निमंत्रण नहीं दिया। जब देवी सती को अपने पिता के द्वारा विशाल यज्ञ के आयोजन के बारे में पता चला तो उनका मन उस यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल होने लगा। तब उन्होंने भगवान शिव को अपनी इच्छा की अनुभूति कराई।

किसी कारण से रुष्ट होकर तुम्हारे पिता ने हमे आमंत्रित नहीं किया…

इस पर भगवान शिव ने कहा कि किसी कारण से रुष्ट होकर तुम्हारे पिता ने हमे आमंत्रित नहीं किया है, इसलिए तुम्हारा वहां जाना कदाचित उचित नहीं होगा। लेकिन देवी सती भगवान शिव की बात पर विचार किये बिना अपने पिता के यहां जाने का उनसे आग्रह करने लगीं। तब भगवान शिव ने उनके बार-बार आग्रह पर वहां जाने की अनुमति दे दी।

भगवान शिव की बात न मानकर उनसे बहुत बड़ी गलती…

जब सती वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि उनका कोई भी परिजन उनसे प्रेमपूर्वक बात नहीं कर रहा है। अपने परिजनों के इस व्यवहार को देखकर देवी सती को बहुत दुःख हुआ और तब उन्हें इस बात का आभास हुआ कि भगवान शिव की बात न मानकर उनसे बहुत बड़ी गलती हुई है। वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं और उन्होंने तत्काल उसी यज्ञ की योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया। इसके बाद देवी सती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में पुन: जन्म लिया और देवी शैलपुत्री के नाम से जानी गयीं।

पूजा लाल फूल, अक्षत, रोली, चंदन…

सर्वप्रथम शुद्ध होकर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर देवी शैलपुत्री की प्रतिमा स्थापित करें। तत्पश्चात कलश स्थापना करें। प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा लाल फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है। उसके बाद उनकी वंदना मंत्र का एक माला जाप करे तत्पश्चात उनके स्त्रोत पाठ करें। यह पूर्ण होने के बाद माता शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाएं और यह शुद्ध गाय के घी में बना होना चाहिए। माता को लगाए गए इस भोग से रोगों का नाश होता है।

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