क्रांति भट्ट:

रैणी तपोवन क्षेत्र में 7 फरवरी को आयी हिमस्खलनीय आपदा और हिमालय पर जानकारी रखने के दावा करने वाले वैज्ञानिक जानकार , भूगर्भ वेता और अन्य स्वनाम धन्य ग्लेशियर वेता ( सभी नहीं कतिपय ) एक हकीकत

7 फरवरी को सुबह 10 बजकर 10 मिनट के लगभग रैणी के शीर्ष पर ऋषि गंगा के जलागम क्षेत्र से ग्लेशियरी तूफान आने की खबर आयी । और तेजी से जल सैलाब उमड़ने की खबर आयी । मैंने देहरादून में एक महत्वपूर्ण पद पर बैठे और सांइटिफिकल जानकारी रखने और हिमालय के लिये महत्वपूर्ण पद बैठे महोदय को घटना की जानकारी देते हुये पूछा ! सर रैणी के ऊपरी हिस्से से ग्लेशियर टूटने की खबर है । क्या कहेंगे आप इस पर !
उन्होने उस समय कहा ” रैणी के ऊपरी क्षेत्र क्या आस पास दूर तक कोई ग्लेशियर नहीं हैं । मैं जाने कितनी बार घूम गया हूं इस इलाके में । फिर भी पूछता हूं । मेरा एक शिष्य है उधर । रैणी के ऊपर ग्लेशियर न होने की बात उन्होने बड़ी सशक्तता और आत्म विस्वास से कही ।
पर आश्चर्य तब हुआ जब घटना के दूसरे दिन हिमालयी विशेषज्ञ के रूप में इन्ही वैज्ञानिक जानकारी , हिमालय के बारे में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी रखने वाले महोदय का अखबारों में तीन चार कालम का बयान छपा जिसमें उन्होने इस क्षेत्र में उक्त घटना के लिये ग्लेशियर के टूट कर झील में आने और झील का जल स्तर बढ़ने की बात कही ।
मैं लगातार उक्त घटना से सम्बंधित स्पाट रिपोर्टिग कर रहा हूं । हिमालय में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा आने के बाद हिमालय के किताबी जानकारों की प्रतिक्रिया आती है ।

यह भी सही है कि बहुत से जानकारों , वैज्ञानिकों , भूर्गभ वेताओं , ग्लेशियर की प्रवृति को जमीनी तौर पर जानने और अध्ययनवेताओं की तर्क और सुझाव महत्वपूर्ण होता है । उन्हे इस हिमालय में दीर्घ अवधि से कार्य करते , करीब से देखा है ।

पर कतिपय ऐसे भी हैं जो हिमालय में इस प्रकार की घटना घटित होने पर जाने कहां से “बड़े बड़े वैज्ञानिक शब्दों को ढूंढ कर वैज्ञानिक जानकारी का छोंक का बघार “देकर हिमालय के जानकार होने का दावा करते हैं

हिमालय और हिमालय की प्रवृति के बारे में जमीनी जानकारी के लिये हिमालय के करीब रहने वाले स्थानीय लोगों के अनुभव जन्य ज्ञान को भी स्वीकार करने की जरूरत है ।

एक बार पुन’ यह कि ऐसा भी नहीं कि हिमालय की प्रकृति , इसकी प्रवृति , यहां के ग्लेशियर , भूर्गर्भीय हलचल , मौसम पर वैज्ञानिक एप्रोच रखने वाले जमीनी तौर पर अध्ययन , परीक्षण , तथ्य नहीं जुटाते । ऐसे बहुत से डाउन टू अर्थ हिमालयी विषयों को जानकार हैं ।
पर हिमालय में किसी आपदा के बाद कुछ बड़े बड़े जानकारों की प्रतिक्रिया बैठे बिठाये पढ़ने और सुनने को मिलती है । तो आश्चर्य तो होता है ।

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