विकासनगर: चालदा महासू देवता करीब 67 साल बाद समाल्टा के नवनिर्मित मंदिर में पूरे विधि-विधान के साथ विराजमान हुए। खत समाल्टा समेत 11 गांव के श्रद्धालु चालदा महासू देवता को लाने के लिए 21 नवंबर को मोहना गांव गए थे। चालदा महाराज (देवता) मोहना गांव मे करीब दो वर्ष से प्रवास पर थे।

मोहना गांव से चालदा देवता की देव डोली ने समाल्टा के लिए प्रवास किया था। इस दौरान डोली चकराता के ठाणा गांव में एक दिन रुक। ठाणा गांव में रात्री प्रवास के बाद अगले दिन देव डोली पुरोडी, रामताल, गार्डन और माक्टी पोखरी में श्रद्धालुओं को दर्शन देते हुए ब्रह्म मुहूर्त में समाल्टा गांव पहुंची, जहां खत समाल्टा गांव के श्रद्धालुओं ने देवडोली यात्रा का स्वागत किया।

श्रद्धालुओं ने देवडोली पर पुष्पों की वर्षा की. इसके बाद वजीर, ठाणी, पुजारी और देव माली ने देवता की डोली को मंदिर मे विराजमान किया। इस दौरान चालदा महासू देवता

के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी पड़ी थी।
मंदिर समिति समाल्टा के सदस्य रणवीर सिह का कहना है कि 67 साल बाद चालदा महाराज देवता खत समाल्टा के मंदिर में विराजमान हुए है. खतवसियों को करीब डेढ़ सालों तक देवता की सेवा का मौका मिलेगा, जिससे ग्रामीण काफी उत्साहित हैं।

बता दें कि अपनी अलग संस्कृति और रीति रिवाजों के लिए जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर पूरे देश में एक अलग पहचान रखता है। इस क्षेत्र के लोगों के कुल देवता चालदा महासू महाराज है, जो हर साल जौनसार बावर के साथ ही बंगाण और हिमाचल के बड़े भू-भाग पर भ्रमण करते हैं और किसी गांव में पहुंचने पर चालदा महाराज एक साल तक उसी गांव में प्रवास करते हैं. इस दौरान गांव से देवता की विदाई और दूसरे गांव में देवता के स्वागत का नजारा देखने लायक होता है। देवता की विदाई करने वाला गांव भरी आंखों से उन्हें विदा करते हैं तो दूसरा गांव देवता का स्वागत नाच गाने के साथ स्वागत करते हैं।
चालदा महासू महाराज क्षेत्र के अराध्य हैं। मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ के अंश कहे जाने वाले महासू महाराज इस क्षेत्र के अराध्य देवता हैं। और वो इसी तरह सदियों से इस क्षेत्र का भ्रमण कर लोगों की मन्नतें पूरी करते हैं। इस बार देवता मोहना गांव में एक साल गुजारने के बाद समाल्टा गांव पहुंचे हैं. देवता के भ्रमण के दौरान हजारों लोग उनके दर्शन के लिए पहुंचते हैं। जिससे साफ है कि लोगों में चालदा महासू महाराज के प्रति अपार आस्था और श्रृद्धा है। देवताओं के प्रति अपार आस्था आज भी उत्तराखंड के लोगों में मौजूद हैं। इसलिए ही शायद उत्तराखंड को देव भूमि भी कहा जाता है।

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