देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों पर सबकी नजर टिकी हुई है। 14 फरवरी को संपन्न हुए मतदान के बाद से ही लोगों को बेसब्री से नतीजों का इंतजार है। आज होनी वाली मतगणना के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। मतगणना सुबह 8 बजे से शुरू होगी। दोपहर तक काफी कुछ परिदृश्य स्पष्ट हो जाएगा कि मैदान में उतरे 632 प्रत्याशियों में से किन 70 की किस्मत चमकने जा रही है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पांचवें विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के मध्य कांटे का मुकाबला है।

उत्तराखंड की मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या ने बताया कि सभी 13 जिलों के लिए मतगणना के लिए सभी तैयारी हो गई हैं। प्रत्येक विधानसभा के लिए 3 हॉल हैं जिनमें 2 में EVM और एक में पोस्टल बैलेट की गिनती होगी। 3-लेयर सिक्योरिटी और CCTV कैमरे लगाए गए हैं। मतगणना केंद्र में मोबाइल फोन की अनुमति नहीं है। गौरतलब है कि है पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की विधानसभा में कुल 70 सीटें और सरकार बनाने के लिए 36 सीटों की जरूरत होगी। एग्जिट पोल में उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार के वापसी का अनुमान जताया गया है।

 

इन सीटों पर रहेगी नजर….

खटीमा विधानसभा सीट…

खटीमा विधानसभा सीट सूबे की सबसे हॉट सीट बनकर उभरी है। पुष्कर सिंह धामी के उत्तराखंड के 11वां मुख्यमंत्री बनने के बाद से ये सीट सुर्खियों में है। सीएम धामी की सीट होने के कारण सभी की निगाहें इसके परिणाम पर टिकी होंगी। इस बार सीएम पुष्कर सिंह धामी और कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी के बीच कांटे की टक्कर है। खटीमा की पहचान देश के एकमात्र क्रोकोडाइल ईको पार्क को लेकर भी है। पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल से आते हैं और राजपूत जाति से हैं, ऐसे में खटीमा में उनका बड़ा जनाधार है।
खटीमा विधानसभा सीट के राजनीतिक अतीत की बात करें तो 2002 और 2007 के चुनाव में कांग्रेस के एडवोकेट गोपाल सिंह राणा विधायक निर्वाचित हुए थे। 2012 के चुनाव में बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी के मुख्यमंत्री रहते समय उनके ओएसडी रहे पुष्कर सिंह धामी को उम्मीदवार बनाया। बीजेपी के पुष्कर सिंह धामी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के देवेंद्र चंद्र को 5,394 वोट से हरा दिया और पहली बार विधायक निर्वाचित हुए।

इस विधानसभा क्षेत्र में महाराणा प्रताप के वंशज माने जाने वाले राणा-थारू परिवारों के साथ ही पिथौरागढ़, मुन्स्यारी, लोहाघाट, चंपावत इलाके से आए पर्वतीय लोग भी निवास करते हैं। यहां अच्छी तादाद देश विभाजन के समय आए सिख परिवारों और मुस्लिमों की भी है। 1984 के दंगों के दौरान पंजाब से भागे लोगों ने बड़ी तादाद में यहां के जंगलों में बसेरा बनाया था।

लालकुआं विधानसभा सीट…..

यह विधानसभा सीट उत्तराखंड के कद्दावर नेताओं में शुमार हरीश रावत की वजह से सुर्खियों में है. पिछले चुनाव में दो सीटों से हारे हरीश रावत इस बार कोई चूक नहीं करना चाहते हैं. स्थानीय लोग लालकुआं की लड़ाई स्थानीय बनाम सीएम के चेहरे की बता रहे हैं. लालकुआं सीट पर हरीश रावत और बीजेपी प्रत्याशी मोहन बिष्ट के बीच लड़ाई है.
विधानसभा सीट के तौर पर लालकुआं इस बार यह तीसरा चुनाव देख रहा है. लालकुआं विधानसभा सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. पूर्व सीएम हरीश रावत के मैदान में आने से इस सीट पर अब पूरे प्रदेश की नजर है. 2012 के चुनाव में दुर्गापाल 25 हजार से अधिक वोट लेकर यहां निर्दलीय चुनाव जीते थे. 2017 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर नवीन दुम्का विधायक चुने गए. लालकुआं विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और राजपूत बिरादरी के मतदाताओं की बहुलता है. अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के मतदाता भी लालकुआं विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

गंगोत्री विधानसभा सीट…

प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के नाम वाली इस सीट पर राज्य गठन के बाद हुए चुनावों में जनता ने भाजपा और कांग्रेस को बारी-बारी से मौका दिया है. आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरा रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल के गंगोत्री सीट से चुनाव मैदान में उतरने से यह वीआईपी सीट बनकर उभरी है. इस बार गंगोत्री सीट पर आप प्रत्याशी अजय कोठियाल, बीजेपी प्रत्याशी सुरेश चौहान और कांग्रेस नेता विजयपाल सजवाण के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है.
गंगोत्री विधानसभा सीट का मिथक यूपी से लेकर उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक जारी है. स्वतंत्रता के बाद से पिछले चुनाव तक जिस भी पार्टी का प्रत्याशी जीत कर आया उसकी सरकार बनी है. उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विजयपाल सजवाण ने जीत दर्ज की थी. 2007 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर गोपाल सिंह रावत चुनाव जीते और प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी. 2012 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2017 के चुनाव में बीजेपी से गोपाल रावत चुनाव जीते थे. 2022 के चुनाव में इस सीट पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के साथ आप ने जोर लगाया हुआ है.

चकराता विधानसभा सीट….

उत्तराखंड के देहरादून जिले की एक विधानसभा सीट है चकराता. चकराता ब्रिटिशकालीन शहर होने के साथ ही मशहूर पर्यटन स्थल भी है. चकराता अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही नृत्य कला, अपने पर्व और अनूठी संस्कृति के लिये भी देश-दुनिया में अलग पहचान रखता है.
चकराता विधानसभा सीट पर उत्तराखंड राज्य गठन के बाद कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. 2002 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के प्रीतम सिंह विधायक बने. 2002 से लेकर अब तक लगातार प्रीतम सिंह ही विधायक हैं. प्रीतम सिंह ने 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों को चुनावी रणभूमि में पटखनी दी. कांग्रेस का ये मजबूत किला भारतीय जनता पार्टी कभी भेद नहीं पाई. हालांकि इस बार बीजेपी बॉलीवुड के मशहूर गायक जुबिन नौटियाल के पिता रामशरण नौटियाल के जरिए इस किले में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है.

श्रीनगर विधानसभा सीट….

 

श्रीनगर विधानसभा सीट इसीलिए हॉट सीट में तब्दील हो गई है क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और बीजेपी के कद्दावर नेता डॉ धन सिंह रावत के बीच टक्कर है. श्रीनगर के लोगों का भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में गहरा जुड़ाव रहा. यहां पर 1930 में जवाहर लाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित जैसे नेताओं का आगमन हुआ था.
इस सीट पर 2002 में कांग्रेस से सुंदर लाल मंद्रवाल ने जीत दर्ज की थी. 2007 में भाजपा से बृजमोहन कोतवाल ने 13,551 मतों के साथ कांग्रेस के सुंदर लाल मंद्रवाल को हराया था. 2012 में इस सीट पर कांग्रेस के गणेश गोदियाल ने 27,993 मतों के साथ भाजपा के डॉ. धन सिंह रावत को हराया था. 2017 में भारतीय जनता पार्टी से डॉ. धन सिंह रावत ने कांग्रेस के गणेश गोदियाल को 8698 मतों के अंतर से हराया था.
डॉ. धन सिंह रावत उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और पौड़ी जिले के पैठनी गांव के रहने वाले हैं. धन सिंह रावत राम जन्मभूमि आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं. उत्तराखंड राज्य के लिए आंदोलन में भी वो काफी सक्रिय थे. इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

चौबट्टाखाल विधानसभा सीट…

उत्तराखंड में 2022 के चुनाव में यह सीट काफी चर्चाओं में है. इसका सबसे बड़ा कारण सतपाल महाराज का यहां से चुनावी मैदान में होना है. इस सीट के समीकरण में बदलाव हुए हैं. 2002 से लेकर 2012 तक इस सीट का ज्यादातर हिस्सा बीरोंखाल विधानसभा क्षेत्र में शामिल था.
बीरोंखाल सीट से 2002 और 2007 में सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत लगातार विधायक रहीं. 2012 के परिसीमन के बाद चौबट्टाखाल पहली बार अस्तित्व में आया और यहां से भाजपा के तीरथ सिंह रावत पहले विधायक बने.
2016 में मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश के लिए सतपाल महाराज कांग्रेस से भाजपा में आ गए. हालांकि यहां भी उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं मिल सका. 2017 के चुनाव में सतपाल महाराज ने यहां से जीत तो हासिल की लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. इस सीट की बात करें तो यहां पूर्व सैनिक ज्यादा संख्या में मतदाता हैं. इस बार कांग्रेस ने पिछली बार नंबर दो पर रहे प्रत्याशी को बदलकर नए चेहरे पर दांव लगाया है और केसर सिंह नेगी को चुनावी मैदान में उतारा है. सतपाल महाराज एक राजनीतिक व्यक्ति होने के साथ-साथ धार्मिक संत की भी हैसियत रखते हैं. हालांकि इस बार उनके लिए कहीं ना कहीं चुनौतियां ज्यादा हैं.

हरिद्वार विधानसभा सीट….

धर्मनगरी हरिद्वार मां गंगा और राजा दक्ष की नगरी की वजह से आस्था का केंद्र है. हरिद्वार विधानसभा सीट भाजपा का मजबूत किला है, जिसमें पिछले 20 सालों से भाजपा का कब्जा रहा है और बीजेपी के टिकट पर लगातार मदन कौशिक जीतते रहे हैं.
मदन कौशिक ने राजनीतिक पारी बीजेपी से ही शुरू की थी. वे 2000 में हरिद्वार से जिला महामंत्री और फिर जिला अध्यक्ष बने. इसके बाद 2002 में हरिद्वार सीट से विधायक चुने गए. तब से वे लगातार चार बार जीत हासिल कर चुके हैं. मदन कौशिक राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं. यही वजह है कि वे हरिद्वार सीट पर पिछले 20 सालों से एकतरफा कब्जा जमाए हुए हैं.
साल 2022 के चुनाव में हरिद्वार सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक 5वीं बार जीत के रिकॉर्ड के लिए मैदान में हैं. इस बार मदन कौशिक के सामने कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी मैदान में हैं. 2002 में हुए चुनाव में बीजेपी के मदन कौश‍िक के सामने कांग्रेस के पारस कुमार जैन थे. तब मदन कौशि‍क ने 2900 से अध‍िक मतों से जीत दर्ज की.
2007 में हुए दूसरे चुनाव में मदन कौश‍िक ने सपा के अंबरीश कुमार को 26 हजार से अध‍िक मतों से हराया. 2012 में मदन कौशि‍क ने सतपाल ब्रह्मचारी को 8 हजार से अध‍िक मतों से हराया. 2017 के चुनाव में मदन कौश‍िक ने कांग्रेस के ब्रह्मस्‍वरूप ब्रह्मचारी को 35 हजार से अध‍िक मतों के हराया. इस तरह मदन कौशिक का इस सीट पर रिकॉर्ड दबदबा रहा है.

बाजपुर विधानसभा सीट..

उत्‍तराखंड की राजनीत‍ि में यशपाल आर्य क‍िसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उत्तराखंड की दल‍ित राजनीत‍ि का बड़ा चेहरा माने जाने वाले यशपाल आर्य अपनी सौम्‍यता के ल‍िए भी लोकप्रि‍य हैं. कांग्रेस एवं बीजेपी सरकार में कैब‍िनेट मंत्री का दाय‍ित्‍व न‍ि‍भा चुके यशपाल आर्य की वजह से ये सीट चर्चाओं में है.
2022 के चुनाव से ठीक पहले यशपाल आर्य अपने बेटे के साथ वापस कांग्रेस में शामिल हो गए थे. ऐसे में इस बार आर्य कांग्रेस के टिकट पर चुनावी ताल ठोंक कर रहे हैं. परिसीमन में बाजपुर विधानसभा क्षेत्र कुंडेश्वरी तक विस्तारित हुई और इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया. पूर्व सीएम एनडी तिवारी भी बाजपुर से जीत हासिल करते रहे थे.
2012 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई बाजपुर सीट से यशपाल आर्य लगातार दो बार विधानसभा पहुंचे. एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार भाजपा से उन्हें यह मौका मिला. उनके कद को देखते हुए दोनों बार कैबिनेट मंत्री का ओहदा मिला तो बाजपुर भी वीआईपी सीट बनकर उभरी. बाजपुर वर्तमान कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय का पुराना गढ़ रहा है. 2002 में भाजपा के अरविंद पांडेय विधायक बने. तब उन्होंने निर्दलीय जनकराज शर्मा को हराया था. 2007 में कांग्रेस प्रत्याशी जनकराज की मृत्यु के चलते हुए उपचुनाव में अरविंद पांडेय ने उनकी पत्नी कैलाश रानी शर्मा को हराया. 2012 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए और 2017 में बीजेपी के टिकट पर यशपाल आर्य ने मैदान मारा.

लैंसडाउन विधानसभा सीट…

ये विधानसभा सीट पौड़ी गढ़वाल जिले की एक विधानसभा सीट है. लैंसडाउन क्षेत्र पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित नाम है. लैंसडाउन में ही गढ़वाल राइफल रेजिमेंट का मुख्यालय भी है. लैंसडाउन विधानसभा सीट उत्तराखंड की सियासत में महत्वपूर्ण स्थान रखती है.
इस बार हरक सिंह रावत की पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं के चलते यह सीट सुर्खियों में है. अनुकृति की प्रारंभिक शिक्षा लैंसडाउन के आर्मी पब्लिक स्कूल में 12वीं तक हुई है. दरअसल, अनुकृति साल 2018 से ही लैंसडाउन विधानसभा सीट पर सोशल वर्क का काम कर रही हैं जो उन्हें जीत के प्रति आश्वस्त करता है.
अनुकृति गुसाईं के ससुर हरकर सिंह रावत 2002 में लैंसडाउन सीट से चुनाव जीते थे. 2007 में भी वह लैंसडाउन से चुनाव जीते. 2012 में उन्होंने रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और जीता. 2017 में वह कोटद्वार विधानसभा सीट से चुनाव जीते. वहीं, 2017 के चुनाव में भी बीजेपी ने दलीप सिंह रावत को चुनाव मैदान में उतारा था. इस बार दलीप सिंह रावत और अनुकृति गुसाईं के बीच टक्कर है.

टिहरी विधानसभा सीट…

इस विधानसभा चुनाव में टिहरी सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प है. टिहरी सीट पर कांग्रेस का जो चेहरा था, वह अब भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ता नजर आया. वहीं भाजपा का चेहरा अब कांग्रेस की तरफ से इस चुनाव में लड़ा. अदला-बदली की इस राजनीति से टिहरी की सीट काफी चर्चा का विषय बनी है. दरअसल, टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस से नाराज होकर किशोर उपाध्याय बीजेपी में शामिल हो गए थे. वहीं, टिकट कटने पर बीजेपी नेता धन सिंह नेगी कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
टिहरी उत्तराखंड का एक प्रमुख हिल स्टेशन है. टिहरी बांध के लिए भी प्रसिद्ध है. यह पर्यटन के नक्शे पर अलग पहचान रखता है. टिहरी अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए सैलानियों के पसंदीदा टूरिस्ट स्पॉट में से एक है.
टिहरी विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट उत्तराखंड राज्य गठन के बाद शुरुआती दशक में कांग्रेस का गढ़ रही. समय के साथ इस सीट पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ती चली गई. 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर किशोर उपाध्याय विधायक निर्वाचित हुए थे.
टिहरी विधानसभा सीट से 2012 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश धनै ने कांग्रेस के किशोर उपाध्याय का विजय रथ रोक दिया था. टिहरी विधानसभा सीट से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के धन सिंह नेगी ने जीत हासिल की.
टिहरी विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. टिहरी विधानसभा क्षेत्र में शहरी इलाके के मतदाता हैं तो ग्रामीण इलाकों के मतदाता भी चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में सामान्य वर्ग के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं.

 

राज्य में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 57 सीट जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. जबकि विपक्षी दल कांग्रेस को महज 11 सीटें मिली थीं. त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन बाद में उन्हें हटाकर बीजेपी ने पहले तीरथ सिंह रावत और महज कुछ महीने बाद पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का सीएम बनाया था.

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत समेत कई नेताओं की साख दांव पर लगी है. हरीश रावत इस बार कुमाऊं के लालकुआं से चुनावी मैदान में हैं तो वहीं हरक सिंह रावत ने चुनाव के ठीक पहले भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति गुसाईं ने कांग्रेस के टिकट पर लैंसडाउन से चुनाव लड़ा है. रावत पर बहू को जिताने का दबाव है.

 

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों पर सबकी नजर टिकी हुई है. 14 फरवरी को संपन्न हुए मतदान के बाद से ही लोगों को बेसब्री से नतीजों का इंतजार है. आज होनी वाली मतगणना के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं. मतगणना सुबह 8 बजे से शुरू होगी. दोपहर तक काफी कुछ परिदृश्य स्पष्ट हो जाएगा कि मैदान में उतरे 632 प्रत्याशियों में से किन 70 की किस्मत चमकने जा रही है. उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पांचवें विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के मध्य कांटे का मुकाबला है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here