प्राचीन भवन शैली के कारीगरों के लिए उनके पास आने वाले दस वर्षो का है रोजगार!

– दम तोड़ती प्राचीन भवन काष्ट कला में कुड़ियाल ने फूंकी नई जान
– यमुना घाटी से विजेन्द्र रावत

उत्तरकाशी: यमुना और टौंस घाटी की विलुप्ती की ओर अग्रसर भवन शैली में उत्तरकाशी निवासी कृषन कुड़ियाल ने न सिर्फ नई जान फूंकी है बल्कि इस विधा के करीगरों के लिए रोजगार के नये द्वार खोल दिए हैं।

आईआईटी रूड़की से भवन शैली में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर उनका ध्यान पहाड़ खासकर यमुना और टौंस घाटी की शानदार प्राचीन भवन शैली की ओर गया जिसका तेजी से क्षरण हो रहा था और उनके स्थान पर कंक्रीट व लोहे के भवन लेने लग गए थे। इससे इस प्राचीन भवन शैली के कारीगर भी विलुप्ती के कगार पर पहुंचने लगे थे।

इन्होंने गांव वालों से मिलकर प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार कर उन्हें उसी शैली में निर्माण करने का निर्णय लिया तथा लोगों को अपनी समृद्ध भवन एवं मंदिर शैली को जिंदा रखने के लिए तैयार किया।
इसका असर यह हुआ कि उनके नेतृत्व में अब तक यमुना एवं टौंस घाटी में करीब चार दर्जन मंदिरों का निर्माण हो चुका है।

उन्होंने प्राचीन भवन शैली के करीब 30 कारीगरों को अपने साथ जोड़ा है और उन्हें न सिर्फ काम दिया बल्कि उन्हें आधुनिक औजार व नये स्किल देकर प्रशिक्षित भी किया जो कार्य पहली पीढ़ी छोड़ना चाहती थी, अब उनकी दूसरी पीढ़ी इस काम में जुड़ने लगी है।

पूरे केदारनाथ में कंक्रीट के जंगल के बजाए पहाड़ी भवन शैली वाले लकड़ी के मकान लेंगे जिसमें इन कारीगरों के लिए रोजगार के नए द्वार खुल रहे हैं। श्री कुड़ियाल ने बताया कि उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान का विशाल म्यूजियम एवं लैंसडाऊन में गढ़वाल रेजिमेंट का करीब तीन सौ साल पुराना मुख्यालय भवन का जीर्णोद्धार करके उसे पहाड़ी शैली मे बनाया जायेगा जिसमें करीब 15 से 20 करोड़ रूपये की लागत आयेगी।

उनके निर्माण में इन्हीं कारीगरों की जरूरत पड़ेगी। इस अभियान में उनका मार्ग दर्शन केदारनाथ के भागीरथ के नाम से प्रसिद्ध कर्नल अजय कोठियाल कर रहे हैं।

उनका कहना है कि अब पहाड़ के कई होटल व्यवसायी अपने होटलों को पहाड़ी भवन शैली में ही बनवाना चाहते हैं। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े रूद्रप्रयाग के भंडारी ब्रदर्स तो कंक्रीट से बने अपने विशाल होटल मोनाल रिजाॅट को तोड़कर पहाड़ी भवन शैली में बदल रहे हैं।

इस प्रकार नागराज के सेम मुखीम मंदिर के भव्य गेट निर्माण से शुरू हुआ उनका अभियान गंगटीड़ी (रघुनाथ मंदिर रवांई) महासू मंदिर बिसोई (जौनसार बावर) होते हुए केदारनाथ तक पहुंच गया है।

उनका कहना है कि उनके पास जितने कारीगर मौजूद हैं उनके लिए उनके पास अभी से दस साल तक का रोजगार उपलब्ध है। जिस तेजी से लोगों का रूझान इस ओर बढ़ रहा है भविष्य में यह क्षेत्र पढ़े लिखे युवाओं के लिए रोजगार के नये द्वार खोलेगा। जौनसार बावर व रंवाई जौनपुर के स्नातक एवं स्नात्तकोत्तर शिक्षा प्राप्त युवा इस शानदार काम से जुडकऱ प्रतिमाह 20 से 30 हजार रूपये कमा रहे हैं।

वैसे भी इस विधा के कारीगरों को लोग बड़ी इज्जत की दृष्टि से देखते हैं और काम के दौरान उनके आवास व भोजन की विशेष व्यवस्था की जाती है।
इन्हें लोग ईंटगारे वाले मजदूरों के बजाये विशिष्ट करीगरों की श्रेणी में रखते हैं।
श्री कुड़ियाल ने बताया कि इन कारीगरों ने एक फोल्डिंग तेवारी को सेना के लिए देहरादून में बनाया जिसे वे अपने कश्मीर के मुख्यालय ले गये।
देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल में शिक्षा पाये कुड़ियाल का कहना है, उनके जीवन में दून स्कूल के शिक्षक एवं “टेंपल आॅफ गढ़वाल” जैसी प्रतिष्ठित पुस्तक के लेखक रतन मित्रा एवं आईआईटी रूड़की के आर्किटेक्चर विभाग के प्रमुख आर0शंकर उनके प्रेरणा श्रोंत रहे हैं, जिन्होंने उन्हें अपने पहाड़ में काम करने के लिए पे्ररित किया। अब उन्हें कर्नल कोठियाल का मार्ग दर्शन मिल रहा है जिनके रोम रोम में पहाड़ और हिमालय बसता है।

उन्हें सरकार से इस बात की नाराजगी है कि उत्तराखंड की राजधानी के लिए तैयार गैरसैण तथा दिल्ली सहित अन्य शहरों में बनने वाले उत्तराखंड भवन भी पहाड़ी शैली में बनने चाहिए थे पर ऐसा नहीं हो सका। दिल्ली में अन्य राज्यों के अपने अपने भवन उस राज्य की भवन शैली को दर्शाता है पर उत्तराखंड भवन में ऐसा कहीं नजर नहीं आता।

उनकी योजना है कि उत्तराखंड के मंदिरों का डाकोमंेटेशन किया जायेगा उसके बाद यहां की भवन शैली पर शोध करने के लिए न सिर्फ देश के बल्कि विदेश के आर्किटेक्चर के छात्र एवं शोधकर्ता बड़ी सख्या में अध्ययन के लिए आ सकते हैं।
वे कई स्थानों पर पलायन के बाद जर्जर हो चुके भवनों का पहाड़ी शैली में जीर्णोद्धार कर ग्रामीण पर्यटन को नये पंख लगाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं।

उन्हें इस बात की खुशी है कि उनके छोटे से प्रयास से आज प्राचीन भवन शैली के कारीगरों की मांग उनकी उपलब्धता से अधिक पहुंच गई है। कई कारीगरों के पास काफी काम है। वे अब इस क्षेत्र में पहाड़ के युवाओं के कौशल विकास की योजना पर काम कर रहे हैं। आने वाले समय में यह क्षेत्र रोजगार के नये द्वार खोलेगा और इससे होनहार कारीगरों को अपने ही पहाड़ में शानदार रोजगार उपलब्ध होगा।

सम्पर्क- केसी कुड़ियाल एंड एसोसिएट्स, महिमानंद कुड़ियाल भवन, बाड़ाहाट उत्तरकाशी (उत्तराखंड)
मो0 9410522156

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